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प्रणय-हत्या

किसी मूल्यवान "अनन्त" रिश्ते का अन्त

विस्तरित होती एक और नई श्यामल वेदना का

दहकता हुया आशंकाहत आरम्भ

है तुम्हारे लिए शायद घूम-घुमाकर कुछ और "बातें"

या है किसी व्यवसायिक हानि और लाभ का समीकरण

सुनती थी क्षण-भंगुर है मीठे समीर की हर मीठी झकोर

पर "अनन्त" भी धूल के बवन्डर-सा भंगुर है

क्या करूँ ... मेरे साँवले हुए प्यार ने यह कभी सोचा न था

गिरते सूखे उढ़ते पत्तों-से अब तुम्हारे बूढ़े हुए बोल

भीतर से उठती भड़कती अग्नि से घिरे हुए तुम

यह शून्याकृति-सी तुम्हारी बाहरी ज़िन्दगी

अपना ही भार न सह सकते तुम्हारे गलित गठीले भाव

चेहरे पर अब प्रतिदिन नकली गंभीर झूठे आश्वास्न ओढ़े

कितना आसान था तुम्हारा कल अपरूप कह देना 

अन्तस्तल को बींधते वह पथरीले शब्द  ...

" सुनो, बिन्दो, अब मैं तुमसे प्यार नहीं करता"

प्रणय-हत्या !   

   

उफ़्फ़ !  महसूस कर पायोगे क्या ?

                 ------

--  विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on November 13, 2018 at 3:02am

आ. भाई समर कबीर जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on November 11, 2018 at 6:46pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,हमेशा की तरह एक सशक्त और गम्भीर भावपूर्ण रचना, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on November 11, 2018 at 1:27pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्र्सिंह जी

Comment by vijay nikore on November 11, 2018 at 1:23pm

आ. भाई शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by narendrasinh chauhan on November 10, 2018 at 2:59pm

सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाये 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 9, 2018 at 12:44pm

बेहतरीन बिम्ब और शिल्प में भावपूर्ण रचना हेतु सादर हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे साहिब।

कृपया ध्यान दे...

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