For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अबतक तो बस तन्हा हूँ - गजल ( लक्ष्मण धामी मुसाफिर)

२२ २२ २२ २


पूछ न इस  रुत कैसा हूँ
अबतक तो बस तन्हा हूँ।१।


बारिश तेरे  साथ गयी
दरिया होकर प्यासा हूँ।२।


आता जाता एक नहीं
मैं भी  कैसा  रस्ता हूँ।३।


जब तन्हाई डसती है
सारी रात भटकता हूँ।४।


हाथों में  चुभ  जाते हैं
काँटे जो भी चुनता हूँ।५।


जाने कौन चुनेगा अब
उतरन वाला कपड़ा हूँ।६।


तारों सँग कट जाती है
शरद अमावस रैना हूँ।७।


अनमोल भले बेकार पड़ा
विधवा का  ज्यों गहना हूँ।८।


मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 786

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 22, 2018 at 10:09am

जनाब अजय तिवारी साहिब विस्तार से बता चुके हैं,मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

Comment by Ajay Tiwari on August 22, 2018 at 9:08am

आदरणीय लक्ष्मण जी,

नासिर काज़मी की ज़मीन में ख़ूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

'अनमोल भले बेकार पड़ा' = अनमो (फ़ेलुन 22) ल भले (फ़इलुन 112) बेका(फ़ेलुन 22) र पड़ा (फ़इलुन 112)

इस ग़ज़ल की बह्र बह्रे-मीर का एक परिवर्तित रूप है. इस बह्र में फ़इलुन(112) का प्रयोग नहीं हो सकता. इस बह्र में मीर के शेर देखें :

http://www.openbooksonline.com/group/kaksha/forum/topics/5170231:To... 

लय में फर्क पड़ने की वजह फ़इलुन का प्रयोग और मिसरे में दो हर्फों का अधिक होना है. 

'इक अनमोल मगर बेकार' या इसी वज़न का कुछ और रख सकते हैं.

  

सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 11:07pm

आ. भाई छोटेलाल जी, स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 10:01pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति से मान बढा़ने के लिए आभार ।

क्या इंगित पंक्ति को ऐसा करने से लयबद्ध हो रही है ? सुझाईये

अनमोल मगर बेकार पड़ा 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on August 21, 2018 at 8:33pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब अनमोल भावों को समेटे सुंदर गजल के लिए बहुत बहुत बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2018 at 7:30pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on August 21, 2018 at 6:47pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

अनमोल भले बेकार पड़ा'

इस मिसरे की मात्राएँ पूरी हैं, लेकिन लय नहीं है,जबकि मात्रिक बह्र में लय बहुत ज़रूरी होती है,देखियेगा ।

Comment by Sushil Sarna on August 21, 2018 at 4:48pm

बारिश तेरे साथ गयी
दरिया होकर प्यासा हूँ।२।

वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी वाह अद्भुत भावों की शानदार ग़ज़ल। १ से ८ तक हर शेर लाज़वाब है सर। दिल से बधाई स्वीकार करें सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service