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जनाब निलेश 'नूर' की ज़मीन में ग़ज़ल नम्बर 2 (कुछ नये क़वाफ़ी के साथ)

मैं तो उसकी पे ब पे अंगड़ाइयाँ गिनता रहा

और वो दामन की मेरे धज्जियाँ गिनता रहा

सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये

मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा

मेरे सीने पर सितम की मश्क़ वो करते रहे

और मैं मासूम दिल की किर्चियाँ गिनता रहा

काम जब कुछ भी नहीं था ओबीओ पर दोस्तो

'नूर' साहिब की मैं कूड़ेदानियाँ गिनता रहा

मेरी बर्बादी पे ख़ुश होकर अज़ीज़ों ने "समर"

कितनी छोड़ीं रात भर महताबियाँ गिनता रहा

-----

पे ब पे---लगातार

मश्क़---अभ्यास

'नूर'---निलेश नूर

म्हताबियाँ---आतिश बाज़ी

'समर कबीर'

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on July 13, 2018 at 2:41pm

बहना राजेश कुमारी  जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on July 13, 2018 at 2:40pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on July 13, 2018 at 2:39pm

जनाब निलेश  जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on July 13, 2018 at 2:37pm

जनाब श्याम नारायण वर्मा जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2018 at 5:51pm

आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 12, 2018 at 10:33am

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।लाज़वाब गज़ल।

सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये

मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा

Comment by Ashish shrivastava on July 12, 2018 at 7:47am

बहुत ख़ूब , मुहतरम समर कबीर साहब !

क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है । हर क़ाफ़िया ख़ुद में न सिर्फ़ अलग है लेकिन साथ ही कहीं और देखने में आना भी दुश्वार भी है । मुबारकबाद ! महताबियाँ तो ममेरे लिये नया लफ़्ज़ ही है ।


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Comment by rajesh kumari on July 11, 2018 at 9:10pm

सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये

मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा---वाह्ह्ह्हह वाह्ह्ह्ह 

नीलेश की कूड़ेदानी जिंदाबाद.... हाहाहा 

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है समर भाई जी 

Comment by Mohammed Arif on July 11, 2018 at 7:09pm

सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये

मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा वाह! वाह! बहुत ही मारक क्षमता वाला शे'र ।

शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2018 at 3:43pm

वाह वाह वाह आ. समर सर.. क्या कहने 
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है... इस ज़मीन पर आपकी दूसरी ग़ज़ल के बाद मुझे भी कुछ करना पड़ेगा अब.. और कूड़ेदानी तो लगता है #कालजयी हो जायेगी :))))))
बहुत बहुत बधाई 

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