For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सतवंत पहले से ही मेरे साथ इस के बारे में बात कर चूका था। लेकिन जिस दिन से उसने मुझसे बात की थी, कोई भी पुराना साथी उसके पास नहीं आया और न ही वह किसी को मिलने गया था। मगर उस दिन से घर के लोगों ने उस से बात करना बंद कर दी थी ।
हद तो उस रोज़ हो गई जब इक दिन बाप हाथ में जूती ले कर सतवंत के पीछे दौड़ पड़ा और ये ध्यान भी नहीं किया के लोग क्या कहेंगे, तब सतवंत को लगा था कि इस जिंदगी का क्या फायदा जब बीस को पार कर चुके बच्चे पे माँ बाप को यकीन न रहे , तब कोई और क्या करे ? बड़े भाई से सतवंत ने फोन पर बात करते हुए कहा ।
आज फिर फोन कॉल जब पिता जी की आई कि सतवंत कोई भी खतरा मोल ले सकता है, तुम आ घर आ जाओ , उसे समझा दो, वर्ना हमारे से तो वह कोई बात नहीं करता है ।
इक बार तो मुझे बहुत गुस्सा आया, काम छोड़ रोज़ रोज़ कौन जाए, मगर मैने गुस्से को दबाते हुए कहा, "उस दिन उसने मुझे फोन पर मुझे आश्वासन दिया था, कि वह कोई भी ऐसा वैसा काम नहीं करता है।"
जब दुसरे दिन मैं घर पहुंचा तो सभी तरफ सुनसान पसरी हुई थी, सतवंत बिना बत्ती जलाए सोफे पे बैठा था, जब उस ने मेरी आवाज़ सुनी तो सर ऊपर कर मेरी तरफ देखने लगा, उसके लब्ब खुश्क हुए थे, जब मैं कमरे में दाखल ही हुआ तो माँ ने कहना शुरू कर दिया, "पुत्त ! कल से इसने कुछ नहीं खाया” हमारा क्या कसूर है, अगर बाप बेटे में नहीं बनती तो” माँ कहती चली जा रही थी ।
"हमारा तो घर बर्बाद हो गया, आप ही कुछ हल निकालें” माँ ने फिर से रोना शुरू कर दिया।
“मैंने तो डेडी से कहा था मैं कुछ नहीं लेता न ही मैं किसी पुराने साथी से मिलता हूँ, वह मानते ही नहीं ” सतवंत ने बहुत मुश्कल से कुछ शब्द कहने की कोशिश की।
"इस ने तो हमें बर्बाद कर दिया, अंदर आते ही बाप ने चीकना शुरू कर दिया"
“मैं पागल हाँ जो बोलता रहता हूँ” पिता ने फिर कहा ,
"तो हम भी पागल नहीं मैंने कहा, इस की जांच करवा देता हूँ " अगर कुछ भी न निकला तो फिर........ ।
इस बात पर बाप को मैंने पहली बार झुकते देखा था, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था ।
मगर आज की बात चीत के बाद वह बिलकुल ही बदल गए लगे, खुद को शर्मिंदा महशुश करने लगे, पता नहीं क्यूँ उस को मेरी बातों पे यकीन होने लगा था ।
"तुमने सही कहा, मैं डर गया था, यह देर तक घर नहीं आता था मैंने सोचा .... ।
कुछ दिन के बाद फिर डेडी का फ़ोन आया, "अब ठीक है, पुत्त तुम ठीक कहते थे, अब मुझे यकीन हो गया है।कि............।
ये मेरी बहुत बड़ी भूल थी, ये कहते हुए डेडी की आवाज़ भारी होने लगी, मगर मैंने देर तक फ़ोन को कान पे लगाए रखा।

मौलिक व अप्रकाशित

       

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 6, 2018 at 7:24am

बहुत बढ़िया पेशकश आदरणीय मोहन बेगोवाल साहिब।

Comment by Nita Kasar on May 5, 2018 at 3:13pm

पिता पुत्र के रिश्ते पर आधारित कथा ,वे एक दूसरे की परवाह करते है,एक दूसरे को समझते है पर कह नही पाते ।कथा के लिये बधाई आद० मोहन बेगोवाल जी ।

Comment by babitagupta on May 4, 2018 at 1:14pm

आदरणीय सर जी आपने लघु कथा के माध्यम से भटकती युवा पीढ़ी के प्रति माता-पिता की भ्रमित चिंता को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया हैं,बधाई स्वीकार कीजिएगा.

Comment by Neelam Upadhyaya on May 4, 2018 at 11:39am

आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, नमस्कार । बहुत अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 3, 2018 at 5:55pm

जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 3, 2018 at 5:25pm

बेहतरी व उम्दा और विचारोत्तेजक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहन बेगोवाल साहिब।

Comment by pratibha pande on May 3, 2018 at 1:30pm

आपकी कथा का एक अलग ही फ्लेवर होता है।  एक युवा जो नशा छोड़ चुका है पर परिवार वाले उसका विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। बहुत सरल पर प्रभावशाली ढंग से ऊभारा है आपने इस कथ्य को। हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service