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राजनीति की औकात (लघुकथा)

लव कुश के मुख से रामायण का गान सुनकर लोग अचंभित थे। लोगों में बातचीत हो रही थी," अयोध्या का और श्री राम चरित का वर्णन बहुत सुन्दर किया है।"
श्री राम दरबार में सीता जी के वनवास जाने के दृष्टान्त में लोगों की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे।
इस वृत्तांत को सुनाते हुए लव और कुश के चेहरे पर क्रोध झलक रहा था।
किसीने पूछा,"बेटा तुम क्रोधित क्यों हुए?"
लव ने प्रतिप्रश्न किया ," ये कैसा न्याय कि किसी व्यक्ति के शक करने पर राजा ने रानी को देश से निष्कासित कर दिया.....!"
सब के झुके चेहरों को देखकर श्री राम मौन ही रहे।
तब कहीं से वह धोबी आया, जिसकी वजह से ही सीता को ऐसी सज़ा मिली थी, उसने पूछा," यह पूछने वाले तुम कौन होते हो? "
"साहित्य का विद्यार्थी .... " लव ने धोबी को उत्तर दिया।
राज दरबार अब चुप था।
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by Mohammed Arif on April 1, 2018 at 5:32pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,

                                आख़िरकार लगातार प्रयत्न के बाद आपने सर्वश्रेष्ठ लघुकथा की सौग़ात दे ही दी । कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सशक्त पेशकश के लिए ।

Comment by Ajay Tiwari on April 1, 2018 at 5:03pm

आदरणीया कल्पना जी, 

साहित्य हमेशा राजनीति को प्रश्नाकित करता रहा है. कथा के माध्यम से साहित्य के मर्म को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई.  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 1, 2018 at 10:44am

बेहतरीन विचारोत्तेजक सृजन।  /लव// और/साहित्य के विद्यार्थी/के बढ़िया बिम्बों में सार्थक संदेश वाहक लघुकथा के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरमा कल्पना भट्ट जी।

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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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