For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक नवीनतम अतुकांत रचना

मैं तो सदा उसकी ही रहूंगी,
मुझे उसी की रहना है बस
इससे क्या
कि
मेरे जिस्म की मासूमी पर,
उसने दर्द के दाग लिखे हैं ।
मेरी सुर्ख आंखों का काजल ,
उसके जुर्म बह निकला है
और चेहरे की रंगत है
उसके दिए हुए निशान
अंतिम लफ्ज़ से उसके नाम के,
बस मेरी पहचान बची है
मैंने उसकी खातिर अपना,
चेहरा सब से छुपा लिया है

मैं फिर भी उसकी ही हूं
जबकि
वो जब चाहे मुझको अपनी,
जीस्त से रुखसत कर सकता है
वो जब चाहे मेरी देह को,
अंगारों में धर सकता है
मुझे बनाकर अपनी आबरु,
उसने अंधेरा उढा दिया है
अपने लफ्जों से वो जब चाहे,
मुझको को नंगा कर सकता है।

मैं उसकी आखिर क्योंकर हूँ
क्योंकि
मेरे जिस्म के सन्नाटे पर सबसे पहली आहट है वो,
मैंने कुबूल किया है उसको जान समझकर सारी बातें
सारे जग को बना साक्षी ,
पिता ने मुझ को दान दिया है
वह मेरे जीवन से बंधा है,
वह मेरे बच्चों का पिता है।
मेरी जरूरत के सब ताले
उसकी चाबी से बंद पड़े हैं।
और जहां के दरवाजे सब
मेरी खातिर बंद पड़े हैं
मेरी शोहरत,
मेरी इज्जत ,
मेरी दौलत ,
सब कुछ है वो
उसके लिए हर दर्द में भी
मेरे जीवन का आधार छुपा है
जीना है
तो जीना होगा
मुझको उसकी औरत बनकर

किसी की बेटी
किसी की बहन
किसी की दोस्त
का जीवन
मुझ को कभी स्वीकार नहीं है

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 431

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on March 31, 2018 at 6:00pm

आदरणीय समर कबीर साहब

आदणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज साहब

आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप

आदरणीय सोमेश कुमार

कविता पर आप सब की उपस्थिति उत्साह वर्धन आपके आशीर्वाद के लिए हार्दिक आभार

सादर

Comment by somesh kumar on March 30, 2018 at 10:54am

मर्मान्तक रचना है |विवाहिता स्त्री की बेबसी को बड़े सटीक शब्दों से अभिव्यक्त किया है |

रचना पर बधाई,भाई |

Comment by नाथ सोनांचली on March 30, 2018 at 2:47am

आद0 मनोज जी सादर नमन। बढिया अतुकांत लिखा आपने। बधाई इस प्रस्तुति पर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 29, 2018 at 8:00pm

बहुत उत्तम भावपूर्ण रचना आदरणीय..

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 28, 2018 at 8:21pm

//मेरे जिस्म के सन्नाटे पर सबसे पहली आहट है वो,/मैंने कुबूल किया है उसको जान समझकर सारी बातें /सारे जग को बना साक्षी,/पिता ने मुझ को दान दिया है /वह मेरे जीवन से बंधा है,//..... वाह ... बहुत कुछ कह दिया है आपसे इस रचना में‌। बाकी पाठक समझ रहे हैं। हार्दिक बधाई इस अतुकान्त कविता के लिए आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी।

Comment by Samar kabeer on March 28, 2018 at 12:13pm

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब,सुंदर भाव लिए अच्छी अतुकान्त कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service