For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जितना बड़ा जो झूठा है वो, उतना ही अधिक चिल्लाता है - शिज्जु शकूर

221 1222 22 221 1222 22

जितना बड़ा जो झूठा है वो, उतना ही अधिक चिल्लाता है

आवाज़ के पीछे चुपके से, रस्ते से यूँ भी भटकाता है

 

तुम बाँच रहे हो जो इतना, अज्दाद के किस्से मंचों से

उन किस्सों को सुनने वाला अब, पत्थर पे जबीं टकराता है

 

इंसान फ़कत है इक ज़र्रा, मिट जाएगा खुद इक झटके में

आकाश को छूती मीनारें, बेकार ही तू बनवाता है

 

है रंग बदलने में माहिर, हर शख़्स सियासत के अंदर

कुछ भी कहे वो लेकिन मतलब, कुछ और निकलकर आता है

 

इस लोक का तुझको क्या कोई, है ज्ञान ज़रा बतला बाबा!

अनदेखी कहानी गढ़-गढ़कर, परलोक मुझे दिखलाता है

अज्दाद - पुरखे

(मौलिक, अप्रकाशित)

Views: 743

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 28, 2018 at 4:28am

आद0 शिज्जू शकूर जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने।ह्रे शैर कुछ न कुछ अपने अंदर समेटे हुए है। मतला बहुत खूबसूरत।

इस लोक का तुझको क्या कोई, है ज्ञान ज़रा बतला बाबा!

अनदेखी कहानी गढ़-गढ़कर, परलोक मुझे दिखलाता है

वाह क्या कहने। शैर दर शैर मुबारकवाद कुबूल करें।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 26, 2018 at 8:24pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शिज्जू शकूर जी।लाज़वाब गज़ल।

है रंग बदलने में माहिर, हर शख़्स सियासत के अंदर

कुछ भी कहे वो लेकिन मतलब, कुछ और निकलकर आता है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 26, 2018 at 6:29pm

आ. भाई शिज्जू जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 26, 2018 at 11:02am

क्या कहने आदरणीय शानदार ग़ज़ल पढ़ने को मिली..सादर

Comment by somesh kumar on March 25, 2018 at 3:26pm

है रंग बदलने में माहिर, हर शख़्स सियासत के अंदर

कुछ भी कहे वो लेकिन मतलब, कुछ और निकलकर आता है

 

सियासत का यह शे र बेहद पसन्द आया |सारी गजल ही व्यंग्य से भरी हुई है |इस रचना पर दिली बधाई |

Comment by Samar kabeer on March 25, 2018 at 3:01pm

जनाब शिज्जु शकूर साहिब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Ajay Tiwari on March 25, 2018 at 12:05pm

आदरणीय शिज्जू जी,

आपकी इस ग़ज़ल के बारे में एक दिलचस्प चीज ये है कि इसकी तकती 'हज़ज मुसद्दस अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़ मुखन्नक मुजाइफ़' (मफ़ऊलु  मफ़ाईलुन  फेलुन मफ़ऊलु  मफ़ाईलुन  फेलुन > 221 1222 22 221 1222 22) और 'मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून मुस्सकिन मुज़ाइफ़'  (फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन > 22  22 22 22 22  22  22  22)  दोनों में हो सकती है. और दोनों के हिसाब से यह ठीक है.

इसको 221 1222 22 221 1222 22 पर निभाना एक असाधारण चीज है. इसके लिए अतिरिक्त दाद!

सादर 

Comment by Ajay Tiwari on March 25, 2018 at 11:17am

आदरणीय शिज्जू जी,  उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

 

जितना बड़ा जो झूठा है वो, उतना ही अधिक चिल्लाता है

आवाज़ के पीछे चुपके से, रस्ते से यूँ भी भटकाता है 

:)))))))))

आखिरी शेर भी बहुत अच्छा लगा .

सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2018 at 8:47am

आ. शिज्जू भाई,
कल आयोजन में आपकी कमी खली...
लेकिन   आप है कि दीपावली   खत्म होने के बाद पटाखे चला रहे हैं..
बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है ...
.

इंसान फ़कत है इक ज़र्रा, मिट जाएगा खुद इक झटके में

आकाश को छूती मीनारें, बेकार ही तू बनवाता है...इस शेर के लिए बधाई ..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
12 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
12 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
12 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
12 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
12 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service