For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जरा-सा छुआ था हवाओं ने,  कि नदी की देह सिहर गयी - अजय तिवारी

मुतफाइलुन   मुतफाइलुन    मुतफाइलुन   मुतफाइलुन
11212         11212          11212         11212

जरा-सा छुआ था हवाओं ने,  कि नदी की देह सिहर गयी

तभी धूप सुब्ह की गुनगुनी,   उन्हीं सिहरनों पे उतर गयी

 

खिली सरसों फिर से कछार में, भरे रंग फिर से बहार में

घुली खुश्बू फिर से बयार में, कोई टीस फिर से उभर गयी   

 

उसी एक पल में ही जी लिए, उसी एक पल में ही मर गए

वही एक पल मेरी सांस में,  तेरी सांस जब थी ठहर गयी

 

जमी जर्रा-जर्रा थी रात भर, हरी बालियों की जो नोक पर            

उसी ओस जैसी है जिंदगी, जरा-सी हिली कि बिखर गयी

 

तुझे कुछ तो होगा अता पता , फ़कत इतना मुझको तू दे बता

वो जो मेरे हिस्से की थी ख़ुशी, वो अगर गयी तो किधर गयी

 

तू जो कहता है वो है खूबतर, ये है कैसा जादू बता मगर

जो भी चीज आनी थी मेरे घर, वो पलट के तेरे ही घर गयी

 

कभी ठीक से मै जिया नहीं, कभी ध्यान खुद पे दिया नहीं

जो भी करना था वो किया नहीं, युँ ही उम्र सारी गुज़र गयी 

                          मौलिक/अप्रकाशित

Views: 644

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Tiwari on March 24, 2018 at 12:24pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Ajay Tiwari on March 24, 2018 at 12:23pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2018 at 8:19am

आ. भाई अजय जी, खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2018 at 5:59am

आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन। बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने, अंदाजे बयाँ का क्या कहना। जादू है। 

जमी जर्रा-जर्रा थी रात भर, हरी बालियों की जो नोक पर            

उसी ओस जैसी है जिंदगी, जरा-सी हिली कि बिखर गयी।

वाह वाह। शेर दर शेर दाद और मुबारकबाद कुबूल करें, सादर

Comment by Ajay Tiwari on March 21, 2018 at 9:36am

आदरणीय सुशील जी, आपके पुनः उत्साहवर्धन  के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक अनुरोध ये कि 'सर' न लिखे, आप हर लिहाज़ से वरिष्ठ हैं. सादर.      

Comment by Ajay Tiwari on March 21, 2018 at 9:26am

आदरणीय समर साहब, आपके आश्वासन के लिए, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Sushil Sarna on March 20, 2018 at 6:40pm

जरा-सा छुआ था हवाओं ने, कि नदी की देह सिहर गयी

तभी धूप सुब्ह की गुनगुनी, उन्हीं सिहरनों पे उतर गयी

वाह क्या बात है ... इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by Samar kabeer on March 20, 2018 at 6:33pm

कोई बात नहीं ।

Comment by Ajay Tiwari on March 20, 2018 at 1:28pm

असावाधनी से 'मौलिक/अप्रकाशित' न लिखा होने की वजह से ग़ज़ल फिर से पोस्ट करनी पड़ी और आप सब की मूल्यवांन प्रतिक्रियाएं रीस्टोर नहीं हो पायीं. इस के लिए आप सब से क्षमाप्रार्थी हूँ.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, बेह्तरीन ग़ज़ल से आग़ाज़ किया है, सादर बधाई आपको आखिरी शे'र में…"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी बहुत धन्यवाद"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी, आपकी बहुमूल्य राय का स्वागत है। 5 में प्रकाश की नहीं बल्कि उष्मा की बात है। दोनों…"
2 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी। आप की मूल्यवान राय का स्वागत है।  2 मय और निश्तर पीड़ित हृदय के पुराने उपचार…"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय महेंद्र कुमार जी नमस्कार। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी ।सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए। अच्छी ग़ज़ल हेतु आपको हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,सादर अभिवादन स्वीकार कीजिए।  ग़ज़ल हेतु बधाई। कंटकों को छूने का.... यह…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा यादव जी ।सादर नमस्कार।ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।गुणीजनों के इस्लाह से और निखर गई है।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय euphonic amit जी आपको सादर प्रणाम। बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय त्रुटियों को इंगित करने व…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से हर बात बताने समझाने कनलिये सुधार का प्रयास…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय, अमित जी, आदाब आपने ग़ज़ल तक आकर जो प्रोत्साहन दिया, इसके लिए आपका आभारी हूँ ।// आज़माता…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय DINESH KUMAR VISHWAKARMA आदाब ग़ज़ल के उम्द: प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। मुश्किलों की आँधी…"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service