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शह की संतान (लघुकथा)

तेज़ चाल से चलते हुए काउंसलर और डॉक्टर दोनों ही लगभग एक साथ बाल सुधारगृह के कमरे में पहुंचे। वहां एक कोने में अकेला खड़ा वह लड़का दीवार थामे कांप रहा था। डॉक्टर ने उस लड़के के पास जाकर उसकी नब्ज़ जाँची, फिर ठीक है की मुद्रा में सिर हिलाकर काउंसलर से कहा, "शायद बहुत ज़्यादा डर गया है।"

 

काउंसलर के चेहरे पर चौंकने के भाव आये, अब वह उस लड़के के पास गया और उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा, "क्या हुआ तुम्हें?"

 

फटी हुई आँखों से उन दोनों को देखता हुआ वह लड़का कंधे पर हाथ का स्पर्श पाते ही सिहर उठा। यह देखकर काउंसलर ने उसके कंधे को धीमे से झटका और फिर पूछा, "डरो मत, बताओ क्या हुआ?"

 

वह लड़का अपने कांपते हुए होठों से मुश्किल से बोला, "सर... पुलिस वालों के साथ...  लड़के भी मुझे डराते हैं... कहते हैं बहुत मारेंगे... एक ने मेरी नेकर उतार दी... और दूसरे ने खाने की थाली..."

 

सुनते ही बाहर खड़ा सिपाही तेज़ स्वर में बोला, "सर, मुझे लगता है कि ये ही ड्रामा कर रहा है। सिर्फ एक दिन डांटने पर बिना डरे जो अपने प्रिंसिपल को गोली मार सकता है वो इन बच्चों से क्या डरेगा?"

 

सिपाही की बात पूरी होने पर काउंसलर ने उस लड़के पर प्रश्नवाचक निगाह डाली, वह लड़का तब भी कांप रहा था, काउंसलर की आँखें देख वह लड़खड़ाते स्वर में बोला,

 "सर, डैडी ने मुझे कहा था कि... प्रिंसिपल और टीचर्स मुझे हाथ भी लगायेंगे तो वे उन सबको जेल भेज देंगे... उनसे डरना मत.... लेकिन उन्होंने... इन लड़कों के बारे में तो कभी कुछ नहीं..."

 

कहते हुए उस लड़के को चक्कर आ गए और वह जमीन पर गिर पड़ा।

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Nita Kasar on February 8, 2018 at 2:34pm

बच्चे बच्चे होते है ।घर,स्कूल का परिवेश उसकी मानसिकता का निर्माण करता है।ज़िम्मेदार अपनी ज़िम्मेदारी से बच नही सकते ।सशक्त कथा के लिये बधाई आद० चंद्रेश छतलानी जी ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 7, 2018 at 6:26pm

बहुत ही गंभीर विषय का चयन किया है आपने..लघु कथा पूर्ण रूप से अपनी बात कहने में सक्षम रही..सादर बधाई

Comment by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 6:21pm

आद0 चंर्देश जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन लघुकथा लिखी आपने, बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2018 at 6:26pm

ओह्ह्ह ....बहुत मारक लघु कथा लिखी है एक ज्वलंत मुद्दे पर आजकल न जाने क्या हो गया लोगों कि इतनी कुत्सित मानसिकता क्यूँ हो रही है सोचनीय स्थिति है चारो और . बहुत बहुत बधाई आपको आद० चंद्रेश कुमार छतलानी जी |

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 6, 2018 at 7:06am

परिवेश भी शिक्षा देता है और बहुत प्रभावी और बहुत असरदार। यह बात परिवार के साथ-साथ हमें तो शायद अपने सम्पूर्ण परिवेश के सन्दर्भ में अभी भी सीखनी है।
बधाई, आदरणीय चंद्रेश कुमार छटलानी जी , सादर।

Comment by vijay nikore on February 5, 2018 at 2:40pm

लघु कथा अच्छी लगी। हार्दिक बधाई।

Comment by Mohammed Arif on February 5, 2018 at 10:13am

आदरणीय चंद्रेश छतलानी जी आदाब,

                            बहुत ही सामयिक और गंभीर मुद्दे पर लिखी गई लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on February 4, 2018 at 9:26pm

जनाब डॉ.चन्द्रेश छतलानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 4, 2018 at 10:22am

हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी।बेहतरीन लघुकथा।शिक्षा के मंदिरों में व्याप्त रैगिंग से जुड़े घटना क्रम और उससे होने वाले भयानक परिणाम को दर्शाती एक लाज़वाब लघुकथा।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 4, 2018 at 9:33am

 बहुत ही उम्दा और गंभीर सामयिक मुद्दों पर बढ़िया सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी साहिब। बहुत कुछ बाख़ूबी अनकहे में भी सम्प्रेषित हुआ है।

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