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३००वीं कृति .... श्रृंगार दोहे ...

३००वीं कृति .... श्रृंगार दोहे ...

मन चाहे करती रहूँ , दर्पण में शृंगार।
जब से अधरों को मिला, अधरों का उपहार।1।

अब सावन बैरी लगे, बैरी सब संसार।
जब से कोई रख गया, अधरों पे अंगार।2।

नैंनों की होने लगी , नैनों से ही रार।
नैन द्वन्द में नैन ही, गए नैन से हार।3।

जीत न चाहूँ प्रीत में , मैं बस चाहूँ हार।
'दे दे मेरी देह को', स्पर्शों का शृंगार।4।

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on November 21, 2017 at 5:32pm

आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी सृजन को अपनी मनोहारी प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 21, 2017 at 5:30pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन के भावों को सहमति देती आत्मीय प्रशंसा से सृजन सार्थक हुआ।  आपकी शुभकामनाओं का हार्दिक आभार। 


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Comment by Dr.Prachi Singh on November 19, 2017 at 1:17pm

वाह बहुत सुन्दर शृंगारिक दोहे 

नैंनों की होने लगी , नैनों से ही रार। 
नैन द्वन्द में नैन ही, गए नैन से हार।....शानदार शब्द चित्र 

सभी एक से एक बढ़िया है 

बहुत बहुत बधाई आ० सुशील सरना जी 

Comment by नाथ सोनांचली on November 18, 2017 at 11:45am
आद0 सुशील सरना जी स्आदर अभिवादन। 300वी कृति पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं। आप सृजन पथ पर नित नए आयाम गढ़ते रहें, ऐसी शुभकामना प्रेषित है। सादर
Comment by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 8:02pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ... सृजन के भावों को आत्मीय सम्मान देने का दिल से आभार।  आपका कहन  बिलकुल सही है।  मैं इसे अभी एडिट कर सुधार  हूँ। इस हेतु आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Samar kabeer on November 15, 2017 at 5:19pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'दे दे देह को मेरी'
इसके विषम चरण में 212 होना चाहिए यहां 222हो रहा है,इसे यूँ कर सकते हैं:-
'देदे मेरी देह को'
Comment by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 4:44pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी सृजन आपकी स्नेहिल अभिव्यक्ति का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 4:43pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब, सृजन के भावों को अपनी अमूल्य प्रशंसा से शोभित करने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 4:43pm

आदरणीय सलीम रज़ा साहिब, आदाब , सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 15, 2017 at 3:52pm
उत्तम दोहे आदरणीय..बहुत बहुत बधाई

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