For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

याद आ जाती है फिर उलझी कहानी आपकी

2122 2122 2122 212
जब कभी भी देखता हूँ वो निशानी आपकी ।
याद आ जाती है फिर उलझी कहानी आपकी ।।

आज मुद्दत बाद ढूढा जब किताबों में बहुत ।
मिल गयी तस्वीर मुझको वह पुरानी आपकी।।

बेसबब इनकार कर देना मुहब्बत को मेरे ।
कर गई घायल मुझे वो सच बयानी आपकी ।।

याद है वह शेर मुझको जो लिखा था इश्क़ में ।।
फिर ग़ज़ल होती गई पूरी जवानी आपकी ।।

इक शरारत हो गई थी जब मेरे जज़्बात से ।
हो गईं आँखें हया से पानी पानी आपकी ।।

कुछ अना से कुछ नफ़ासत में हुआ जुल्मो सितम ।
आदतें जाती कहाँ हैं खानदानी आपकी ।।

हुस्न पर इतनी तिज़ारत आपकी अच्छी नहीं ।
आपके लहजे में देखा बदजुबानी आपकी ।।

चन्द लम्हे ही सही दिल का सुकूँ जिंदा हुआ ।
कर लिया मैंने कभी जब मेजबानी आपकी ।।

चाँद आएगा जमीं पर सोचते ही रह गए ।।
ख्वाहिशों में खो गईं रातें सुहानी आपकी ।।

वक्त शायद दे गया कुछ तज्रिबा भी आपको ।
अब शिकन माथे की लगती है सयानी आपकी ।।

ये हवाएं कर रहीं मदहोश मुझको बेहिसाब
आ रहीं हैं खुशबुएँ फिर जाफ़रानी आपकी ।।

हाल पूछा मुस्कुरा कर आपने जब से मेरा ।
मिट गईं तन्हाईयाँ सब मेहरबानी आपकी ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on October 24, 2017 at 8:54pm
'चन्द लम्हे ही सही दिल का सुकूँ ज़िंदा हुआ
कर लिया मैंने कभी जब मेज़बानी आपकी'
इस शैर में शिल्प बहुत कमज़ोर है, और व्याकरण दोष भी है,'मेज़बानी',शब्द स्त्रीलिंग है, इस शैर को यूँ किया जा सकता है:-
'चन्द ही लम्हे सही,दिल को सुकूँ हासिल हुआ
एक शब जब मैंने की थी मेज़बानी आपकी'
'ये हवाएं कर रहीं मदहोश मुझको बेहिसाब
आ रही हैं खुशबुएँ फिर जाफ़रानी आपकी'
इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है'कर रहीं'इसे 'कर गईं'कर लें,और इसका सानी मिसरा यूँ कर लें:-
'आ रही हैं लेके ख़ुशबू जाफ़रानी आपकी'

'मिट गईं तन्हाईयाँ सब मेहरबानी आपकी'
इस मिसरे में 'मेहरबानी'का वज़्न 2222हो रहा है जबकि इसका सही वज़्न है 2122इसे "मह्रबानी" कर लें ।
पहले भी आपसे निवेदन कर चुका हूँ कि सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रया देना आपका अख़लाक़ी फ़र्ज़ है, इस पर ध्यान दीजिये, बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on October 24, 2017 at 7:36pm
मेरी जिज्ञासा शांत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका, आदरणीय समर कबीर जी।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2017 at 7:34pm
अवश्य सर मैं प्रतीक्षारत हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 24, 2017 at 7:25pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'बेसबब इंकार कर देना मुहब्बत को मेरे'
इस मिसरे को यूँ होना चाहिए:-
'बेसबब इंकार कर देना महब्बत से मेरी'(महब्बत,स्त्रीलिंग है न(

'इक शरारत हो गई थी जब मेरे जज़्बात से'
इस मुसरे को यूँ होना चाहिए:-
'इक शरारत हो गई थी मुझसे जब जज़्बात में'

'आपके लहजे में देखा बदज़ुबानी आपकी'
इस मिसरे को यूँ करें :-
'आपके लहजे में देखी बदज़ुबानी आपकी'(बद ज़ुबानी-स्त्रीलिंग)
नमाज़ का वक़्त आ गया,बाक़ी अशआर पर पुनः आता हूँ ।
जनाब जयनित जी का ऐतिराज़ ख़ारिज है ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2017 at 5:33pm
जयनित जी कबीर साहब की इस्लाह की प्रतीक्षा करें ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on October 24, 2017 at 12:49pm
उम्दा ग़ज़ल हुई है आदरणीय नवीन जी।
आखिरी शेर को लेकर एक प्रश्न उठ रहा है मेरे मन में-

"हाल पूछा मुस्कुरा कर आपने जब से मेरा ।
मिट गईं तन्हाईयाँ सब मेहरबानी आपकी ।।"

सानी को देखते हुए क्या उला मिसरे में 'से' का प्रयोग अनुचित नहीं है?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service