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ग़ज़ल - यूँ ही गाल बजाते रहिये

यूँ ही गाल बजाते रहिये।
भोंपू सा चिल्लाते रहिये।

अपना उल्लू सीधा करके,
दो का चार बनाते रहिये।

जिससे काम बने बस वो ही,
पट्टी रोज पढ़ाते रहिये।

सूरज उगने ही वाला है,
ये एहसास कराते रहिये।

हम प्रतिपालक हम हैं रक्षक,
चीख चीखकर गाते रहिये।

जीती बाजी हार न जायें,
दाँव पेंच दिखलाते रहिये।

जिनको राह के रोड़े समझें
उनको रोज हटाते रहिये।

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

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Comment

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Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 21, 2017 at 4:52pm
आदरणीय तिवारी जी।
गज़ल की सरहना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by Ajay Tiwari on October 21, 2017 at 9:15am

आदरणीय राम अवध जी,

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनायें.

सादर  

Comment by Mohammed Arif on October 21, 2017 at 7:46am
आदरणीय अवध बिहारी जी आदाब, बढ़िया ग़ज़ल ।क्षशे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । आपने ग़ज़ल की बह्र नहीं लिखीं है ।
Comment by Afroz 'sahr' on October 20, 2017 at 11:49pm
आदरणीय राम अवध जी कोई बात नहीं एसा अनचाहे हो जाता है । पुन: आपको इस रचना पर बधाई देता हूँ।सादर,,,,
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 20, 2017 at 10:15pm
आदरणीय राम अवध जी इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें साफ
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 20, 2017 at 9:03pm
आदरणीय अफरोज़ सर जी आपकी टिप्पणी गल्ती से डिलीट हो गई है माफी चाहते हैं
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 20, 2017 at 8:58pm
अफरोज़ सर शुक्रिया आपका सराहना के लिये।

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