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आएं न आएं वो लेकिन - सलीम रज़ा रीवा

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आएं न आएं वो  लेकिन हम आस लगाए .बैठे हैं 

दिन ढलते ही शमए मुहब्बत घर में जलाए बैठे हैं 

..

आख़िर दिल की बात ज़ुबाँ तकआये तो कैसेआये 

अपनी  ख़ामोशी  में  वो  सब  राज़  छुपाये बैठे हैं 

..

हैरत है जो प्यार मुहब्बत से ना वाकिफ़ हैं यारो 

वह  इल्ज़ाम दग़ाबाज़ी का मुझ पे लगाए  बैठे हैं

..

कौन है अपना कौन पराया कैसे पहचाने कोई 

चहरों पर  तो फ़र्ज़ी चहरे लोग सजाए  बैठे  हैं

..

परदेसी और बेगानों की बात करें आख़िर कैसे 

हम तो अपनों  से  ही कितने धोके खाए बैठे हैं 

..

मुझको ये उम्मीद नहीं थी जाएंगे इक रोज़ बदल 

जिनके प्यार में हम अपना घरबार लुटाए बैठे हैं 

.......................................

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2017 at 9:13pm

आदरणीय सलीम भाई , बढ़िया गज़ल कही है , शेर दर देश मुबारक बाद पेश है .  कुबूल कीजिये ।

Comment by SALIM RAZA REWA on September 26, 2017 at 1:26pm
आ. नीलेश जी,
आपकी नज़रे इनायत और हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया, मुहब्बत बनाए रखें,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 26, 2017 at 11:58am

आ. सलीम साहब,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
बधाई 

Comment by SALIM RAZA REWA on September 26, 2017 at 9:26am
जनाब तस्दीक साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 26, 2017 at 9:24am
आली जनाब समर साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on September 13, 2017 at 10:19pm
शुक्रिया शकूर साहब ये बताने ने के लिए की मै कोशिश कर रहा हूँ,

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 13, 2017 at 9:56pm
अच्छी कोशिश है सलीम रज़ा साहब बहुत बहुत बधाई
Comment by SALIM RAZA REWA on September 13, 2017 at 1:31pm
आप सभी के मुहब्बातो इनायत का शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on September 12, 2017 at 9:08pm

आली जनाब तस्दीक़ अहमद  साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, आपकी मुहब्बत सलामत रहे ,

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 12, 2017 at 7:29pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

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