For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"तेरे पिता उस संगठन से जुड़े हैं जो इन्हें देखना तक नहीं चाहता और तू कहता है कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता?" कार्तिक आज भी उसी रेस्टोरेंट में बैठा था जहाँ सुमित ने कभी उससे ये बातें कही थीं। उसके हाथ में परवीन शाकिर की किताब थी तो ज़ेहन में ये ग़ज़ल, तुझसे कोई गिला नहीं है, क़िस्मत में मेरी सिला नहीं है।

"क्या ख़ूब ग़ज़ल सुनाई तुमने। किसकी है?" न्यू ईयर की पार्टी में लोगों ने ज़ोया से पूछा जिसने अभी हाल ही में ऑफिस ज्वाइन किया था।

"परवीन शाकिर की।" यह पहली बार था जब उर्दू अदब से दूर-दूर तक कोई वास्ता न रखने वाले कार्तिक ने यह नाम सुना था।

ज़ोया एक भोली-भाली, ख़ूबसूरत और प्यारी सी लड़की थी जिसे देखते ही कार्तिक को प्यार हो गया था। वह उसे दिलो-जान से चाहता था। "ये लीजिए, बेसन के लड्डू। मेरी माँ ने बनाये हैं।" वह उसके पास जाने के बहाने ढूँढता था।

कार्तिक आज जिस रेस्टोरेंट में बैठा था उसके ठीक सामने एक और रेस्टोरेंट था जहाँ अक्सर ज़ोया आया करती थी। यदि आप इस रेस्टोरेंट की खिड़की वाली सीट पर बैठे हों तो आप सामने वाले रेस्टोरेंट में आने-जाने वालों को साफ़ देख सकते हैं। कार्तिक वहीं अकेले बैठा था।

"देख! तू जानता है न कि ज़ोया ऑफिस में सबसे दूरी बना के रखती है सिवाय हामिद के। सोच क्यों? क्योंकि यहाँ आदमी की क़ाबिलियत उसके नाम से तय होती है और कई बार मुहब्बत भी।" सुमित की बातें उसके कानों में गूँज रही थीं।

कार्तिक खिड़की की तरफ़ एकटक देख रहा था कि तभी ज़ोया रेस्टोरेंट से बाहर आयी। उसके हाथ में हामिद का हाथ था तो होठों पर भीनी सी मुस्कान। शादी के बाद ज़ोया और भी ख़ूबसूरत लग रही थी। उसके दूसरे हाथ में ग़ुलाब का फूल था जो शायद उसे हामिद ने दिया था। आज दोनों की पहली सालगिरह थी। उन्होंने टैक्सी ली और वहाँ से दूर निकल गए।

सुमित ने उसे पहले ही समझाया था, "नशा जब आदमी के अन्दर हो तो आदमी नशे में ही रहता है फिर इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि वह क्या पी रहा है। ये तेरी आठवीं कॉफ़ी है। उसे भूल और होश में आ!" मगर वह अब भी नशे में था। उसने कॉफ़ी की तरफ़ देखा, वह वैसी की वैसी ही भरी थी।

सामने लगी टीवी से फिर वही आवाज़ें आ रही थीं, "मुसलमानों की इस देश में कोई जगह नहीं। इन्हें हिन्दुस्तान से चले जाना चाहिए..." उसने कॉफ़ी का मग उठाया और ज़ोर से टीवी पर मारते हुए कहा, "और हिन्दुओं को पाकिस्तान से।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 565

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on September 25, 2017 at 9:43pm

रचना को मान देने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया आ. मोहित जी. दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 25, 2017 at 9:42pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आ. अफरोज़ ही. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on September 25, 2017 at 9:41pm

सादर आदाब आ. समर सर. रचना पर उपस्थित हो कर मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Afroz 'sahr' on September 21, 2017 at 9:36pm
आदरणीय महेंद्र कुमार जी रचना बहुत ही अच्छी लगी मेंरी और से आपको ढेरों बधाई । साथ ही मोहतरम समर साहब को धन्यवाद की उनकी पोस्ट ने रचना की तरफ़ ध्यान दिलाया ।सादर,,,,
Comment by Samar kabeer on September 21, 2017 at 9:22pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,वाक़ई हैरत की बात है,मुझे इस बात का अफ़सोस है कि ये रचना मेरी नज़र क्यों नहीं पड़ी ।
बहुत उम्दा रचना हुई है महेन्द्र कुमार जी,जो लोग इसे नहीं पढ़ सके ये उनकी कम नसीबी है, रचना की नहीं,इस बहतरीन रचना के लिए आपको दिल से ढेरों बधाई देता हूँ ।
Comment by Mahendra Kumar on September 21, 2017 at 7:47pm

आश्चर्य मुझे भी बहुत हुआ था फिर मुझे लगा कि शायद मेरी रचना में ही कोई कमी होगी जो यह एक भी प्रतिक्रिया पाने से वंचित रह गयी. खैर, बहुत ख़ुशी हुई कम से कम इसे पाठक तो नसीब हुआ. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आ. नीरज जी. सादर.

Comment by Niraj Kumar on September 20, 2017 at 8:10pm

आदरणीय महेंद्र जी,
मुझे आश्चर्य है कि इस रचना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं है.
इस विषय को कथा में प्रभावी ढंग से समेटने के लिए साधुवाद!
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकारें बाक़ी गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
7 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Mahendra Kumar ji, अच्छी ग़ज़ल रही। बधाई आपको।"
9 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. Euphonic Amit जी, ख़ूब ग़ज़ल हुई, बधाई आपको।  "आप के तसव्वुर में एक बार खो जाए फिर क़लम…"
13 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें गुणीजनों की इस्लाह से और निखर जायेगी"
19 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी आ अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें भाई चारा का सही वज्न 2122 या 2222 है ? "
21 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"अच्छी ग़ज़ल हुई आ बधाई स्वीकार करें सातवाँ थोड़ा मरम्मत चाहता है"
25 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत ख़ूब। समझदार को इशारा काफ़ी। आप अच्छा लिखते हैं और जल्दी सीखते हैं। शुभकामनाएँ"
26 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
34 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
35 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी बहुत बहुत शुक्रिया आ ज़र्रा-नवाज़ी का"
35 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बारीकी से इस्लाह व ज़र्रा-नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया आ इक नज़र ही काफी है आतिश-ए-महब्बत…"
36 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
51 minutes ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service