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क्षणिक सुख ...

कितने
दुखों से
भर दिया
बज़ुर्गों का दामन
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने

सैंकड़ों झुर्रियों में
छुपा दिया
बज़ुर्गों के सुख को
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने

मानवीय संवेदनाओं के
हर बंध अनुबंध
बिसरा डाले
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने

ममता की अनुभूति
जो भूले न
आज तक
उन्हें
कन्धों तक का
मोहताज़ बना दिया
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने

हयात भी
शर्माती है
अजल भी
शर्माती है
बात बात पे आंखें
माँ बाप की
भर आती हैं
न शक़्ल नज़र आती है
न रोशनी नज़र आती है
बिन खिड़की की
दीवारों में
ज़िंदगी गुजर जाती है
इक इक कल पे
अपने आज को
कुर्बान किया
अपने नाम का
आसमान दिया
ममता की गंगा से
जो हाथ
पल पल
नहलाते रहे
उन्हीं हाथों पे
दर्द भरा
अंत रख दिया
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित



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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 12, 2017 at 7:04pm

आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by narendrasinh chauhan on August 11, 2017 at 3:41pm

खूब सुन्दर रचना 

Comment by Sushil Sarna on August 10, 2017 at 5:57pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब सृजन पर  आपके स्नेहाशीष का दिल से आभार।  लेखन सफल हुआ। 

Comment by Samar kabeer on August 9, 2017 at 7:01pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत अच्छेछे विषय पर क़लम उठाया आपने और एक कामयाब कविता लिख दी,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on August 9, 2017 at 5:10pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2017 at 8:27pm

बहुत सही कहा है आपने आज कल बुजुर्गों को भूलते ही जा रहें हैं क्षणिक सुख की सोच में | बहुत बढ़िया रचना हुई है आदरणीय 

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