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ग़ज़ल (कोई आ गया दम निकलने से पहले )

(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फऊलन)

मेरे प्यार का शम्स ढलने से पहले |
कोई आ गया दम निकलने से पहले |

बहुत होगी रुसवाई यह सोच लेना
रहे इश्क़ में साथ चलने से पहले |

तेरे ही चमन के हैं यह फूल माली
कहाँ तू ने सोचा मसलने से पहले|

कहे सच हर इक आइना सोच लेना
बुढ़ापे में इसको बदलने से पहले |

ख़यालों में आ जाओ कटती नहीं शब
मिले चैन दिल को मचलने से पहले |

अज़ल से है उल्फ़त का दुश्मन ज़माना
लगाए यह ठोकर संभलने से पहले |

है शतरंज का खेल तस्दीक़ उल्फ़त
न दिल की तू सुन चाल चलने से पहले |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 17, 2017 at 10:42pm
जनाब नरेन्द्र चौहान साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by narendrasinh chauhan on August 16, 2017 at 12:26pm

बहुत ही उम्दा गज़ल...

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 14, 2017 at 10:59am
मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।---उर्दू में शब्द यह ही होता है ,ये नहीं ,इसलिए इसे इस्तेमाल किया है -----
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 14, 2017 at 10:56am
जनाब आशीष साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया। जनाब ,ये और यह का मिसरे में मतलब एक ही है -----

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Comment by rajesh kumari on August 14, 2017 at 9:08am

मोहतरम जनाब तस्दीक जी ,बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई दिल से मुबारकबाद कुबूलें पोस्ट पर देरी से पंहुचने का खेद है आशीष श्रीवास्तव जी की बात से सहमत हूँ यह को ये कर लें |

Comment by Ashish shrivastava on August 13, 2017 at 9:57pm
मोहतरम तस्दीक़ साहब , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है । मुबारकबाद ।
'तेरे ही चमन के हैं यह फूल माली '
इस मिसरे में फूल बहुवचन में हैं । अत: 'यह' की जगह 'ये' उपयुक्त होगा ।
Comment by surender insan on August 8, 2017 at 2:26pm
जी बेहद शुक्रिया जी आपका आदरणीय अब समझ आ गया जी। बहुत बहुत आभार जी। सादर नमन जी।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2017 at 12:17pm
जनाब सुरेन्द्र इंसान साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।
रह और इश्क़ शब्दों में इज़फत लगाकर रहे इश्क़ बना है जिसका मतलब इश्क़ की राह होता है । रह का मतलब भी राह है ,शायद अब समझ में आ गया होगा ----
Comment by surender insan on August 6, 2017 at 9:02am
मोहतरम तस्दीक अहमद खान साहब आदाब। सभी अशआर बेहद उम्दा हुए है जी। शेर दर शेर दिली मुबारक़ बाद कबूल करे जी।
मोहतरम एक मिसरा मुझे समझ नहीं आया। इस पर थोड़ा मेहरबानी कर बताये जी।।

रहे इश्क़ में साथ चलने से पहले

बार बार पढ़ा तो यूँ हो सकता है समझ आया
राह-ए-इश्क़ में साथ चलने से पहले।
क्या राह-ए को रहे कहा गया है या रहे इश्क़ इस तरह से ही मिसरा कहा गया है
जो आपने कहा है उस पर थोड़ा मदद करे जी समझने में। सादर जी।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 25, 2017 at 8:00am
मुहतरम जनाब विजय साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया

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