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ग़ज़ल...गमे दिल अब मुझे आराम दे दो

1222 1222 122
मेरी बेचैनियों को नाम दे दो
बहुत टूटा हूँ अब अंजाम दे दो

उन्हें मैं याद कर के थक चुका हूँ
गमे दिल अब मुझे आराम दे दो

पुरानी बात है आहें, तड़पना
मुहब्बत को नये आयाम दे दो

कि जिसको सोचते ही मुस्कुरा दूँ
तसव्वुर के लिए वो शाम दे दो

कहाँ है मीत वो किस हाल में है
हवाओ कोई तो पैगाम दे दो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 7, 2017 at 3:00pm

कि जिसको सोचते ही मुस्कुरा दूँ
तसव्वुर के लिए वो शाम दे दो.................अहा अहा बहुत सुन्दर 

सभी अशआर पसंद आये , ये वाला बतौर-ए-ख़ास 

हार्दिक बधाई 

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 12:39pm

गज़ल पढ़ कर लुत्फ़ आ गया। आपको बहुत बधाई देता हूँ, आदरणीय बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 6, 2017 at 8:52am
आदरणीय समर कबीर जी आपकी पारखी नजरों से गुजर कर बड़ा शुकुन मिलता है..आपका हार्दिक धन्यवाद..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 6, 2017 at 8:50am
आदरणीय आरिफ जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार..सादर
Comment by Samar kabeer on July 5, 2017 at 12:24pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Mohammed Arif on July 5, 2017 at 11:42am
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी रिय देंगे ।

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