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किस्सा
............

जिंदगी सपनों का संसार हुई.
आँखें जब से उन से चार हुई.
.
महकी इश्क की खुश्बू बहुत
दास्तानें सारी अखबार हुई.
.
याद करने का अंदाज देखो
हचकियाँ चिट्ठी पत्री तार हुई.
.
आफत में अब दिल आ गया
तेज धड़कनों की रफ्तार हुई.
.
सिलसिला कसमों का चला
रस्में ऊँची जब दीवार हुई.
.
हकीकत जमानें से बस यही
मुहब्बत किस्सों में साकार हुई.
.
(सुरेश बीनागंजवी)

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 10:21pm

आ० मीटर भी बताना चाहिए था , गजल के लिए  मुबारकवाद . 

Comment by suresh jadav 'Binaganjvi' on June 19, 2017 at 6:22pm
शुक्रिया जनाब नरेंद्र जी एवं जनाब मो. आरिफ जी.
Comment by narendrasinh chauhan on June 19, 2017 at 5:13pm

सुन्दर रचना 

Comment by Mohammed Arif on June 19, 2017 at 7:56am
आदरणीय सुरेश जादव जी आदाब,बहुत ही बेहतरीन रचना । प्यार का अहसास कराती और साथ ही सादगी का परिचय भी देती हुई । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आपकी यह रचना ग़ज़ल की श्रेणी में आती है और आपने कविता लिख रखा है । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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