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बेबसी की किताब है यारोँ

2122 1212 22
वो दिखी बेनकाब है यारों।
सारा चेहरा गुलाब है यारोँ ।।

अच्छी सूरत भी क्या बुरी शय है ।
सबकी नीयत खराब है यारों ।।

है लबों पर अजीब सी जुम्बिश ।
कैसा छाया शबाब है यारों।।

होश खोया है देख कर उसको ।
वह पुरानी शराब है यारों ।।

एक मुद्दत के बाद देखा है ।
हुस्न का इंकलाब है यारों।।

पैरहन ख्वाब में वो आती है ।
कितनी आदत खराब है यारोँ ।।

मैं जिसे सुबहो शाम पढ़ता हूँ ।
वह ग़ज़ल लाजबाब है यारों ।।

मत पढो जिंदगी का हर पन्ना ।
बेबसी की किताब है यारों।।

पैरहन ख्वाब में वो आती है ।
कितनी आदत खराब है यारों ।।

क्या सुनाऊँ मैं बात रातों की ।
वो कोई माहताब है यारों ।।

जिस से मिलने गए थे महफ़िल में ।
वह मेरा इंतखाब है यारों ।।

---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on July 16, 2017 at 8:02pm
आ0 कल्पना भट्ट जी सादर नमन।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 7:35pm

बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई है आदरणीय | हार्दिक बधाई |

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 30, 2017 at 1:09pm
भाई बृजेश कुमार ब्रज जी आभार
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 29, 2017 at 9:50pm
वाह वाह बहुत खूबसूरत..सादर
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 28, 2017 at 4:27pm
आ0 गुरु प्रीत साहब आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 28, 2017 at 4:26pm
आ0 मो0 आरिफ साहब आभार
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 27, 2017 at 9:35pm
वाह वाह आदरणीय नवीन जी..बहुत दिलकश ग़ज़ल हुई है..पहले दोनों शेर तो लाजवाब लगे
Comment by Mohammed Arif on May 27, 2017 at 9:30pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,छोटी बह्र की बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र उम्दा । मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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