For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल --इस्लाह के लिए (गुरप्रीत सिंह )

(2122-2122-2122-212)

पहले सूरज सा तपें खुद को ज़रा रोशन करें
फिर थमें मत फिर किसी को चाँद सा रोशन करें।

ये नहीं, कोई दिया बस इक दफ़ा रोशन करें
गर करें, बुझने पे उसको बारहा रोशन करें।

मेरी भी वो ही तमन्ना है जो सारे शह्र की
आप मेरे घर में आएं घर मेरा रोशन करें।

सामने है इक चराग़ और आप के हाथों में शमअ
आप किस उलझन में हैं जी?क्या हुआ? रोशन करें!

तीरगी के हैं नुमाइंदे सभी इस शह्र में
कौन है ये अजनबी?किस ने कहा रोशन करें

        (मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 882

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 23, 2017 at 6:54pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय बसंत कुमार जी
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 23, 2017 at 6:54pm
शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 23, 2017 at 6:53pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी आपका ह्रदयतल से आभार
Comment by Samar kabeer on May 23, 2017 at 6:45pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,इसके लिये बधाई ।
बाक़ी निलेश जी ने कहने के लिये कुछ छोड़ा ही नहीं ।
Comment by Gajendra shrotriya on May 23, 2017 at 2:56pm
अच्छे अशआर हुए हैं आदरणीय। निलेश जी के सुझावों से और निखार आएगा। मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 23, 2017 at 2:16pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय नीलेश सर जी ,,,,आपके सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, बहुमूल्य हैं ,,
तीसरे शियर के बारे में आपसे सहमत हूँ,,, आपने जो बताया उस नज़रिए से मैं सोच ही नहीं पाया,,
इन कमियों को दूर करने की ज़रूर कोशिश करूँगा,,, ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें.

सामने है इक चराग़ और आप के हाथों में शमअ
इस शियर को अगर ऐसे कहें तो क्या कुछ बेहतर होगा सर जी??
है बुझा सा दिल मेरा और आपकी आँखों में (शमअ) (लौ)


बाकी के बारे में कोशिश करके देखता हूँ

Comment by Sushil Sarna on May 23, 2017 at 1:39pm

सामने है इक चराग़ और आप के हाथों में शमअ
आप किस उलझन में हैं जी?क्या हुआ? रोशन करें!.... वाह बहुत सुंदर अशआर कहे हैं आदरणीय गुरप्रीत सिंह जी. . दिल से मुबारक कबूल फरमाएं।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 23, 2017 at 1:23pm

आ. गुरप्रीत भाई,

अच्छी ग़ज़ल है ...
मतले के  सानी में दो  बार फिर  और थमें मत ....ग़ज़ल  की ज़बान नहीं बोल रहे हैं ..
फिर न रुकिये ..दूसरों को चाँद सा .......... 

दूसरे शेर को यूँ कहकर देखें ..
.
ये नहीं बस इक दफ़ा कोई दिया रोशन करें 
आँधियाँ जब जब बुझायें हर दफ़ा  रोशन करें।
.
तीसरे शेर में आप कहना चाह रहे हैं कि शहर में हर कोई चाहता है कि "वो" ..उसी  का हो जाये जिससे घर रौशन हो ..लेकिन आपके शेर के शब्द ..
.

मेरी भी वो ही तमन्ना है जो सारे शह्र की 
आप मेरे घर में आएं घर मेरा रोशन करें।.... कह रहे हैं मानों सारा शह्र आप के और उसके मिलन की तमन्ना कर रहा है ...(महीन नुक्ता है ..शायद समझेंगे मेरी बात)
चौथे शेर में चिराग़ को जलता हुआ चिराग़ भी बताइये..
आख़िरी शेर में क्या रौशन होने की कही जा रही है स्पष्ट नहीं हुआ...
उद्देश्य आपकी ग़ज़ल की कमियाँ निकालना नहीं है.. उद्देश्य फाइन ट्यूनिंग है जिससे आप श्रोता से बेहतर कनेक्ट हो सकें 
सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 1:05pm

आदरणीय  गुरप्रीत सिंह जी वाह क्या बात है 

Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2017 at 12:39pm
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service