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है गिला, तो गिला कीजिए(गजल)/सतविन्द्र

212 212 212
बात जो हो कहा कीजिए
दिल में ही क्यों रखा कीजिए?

चार दिन की है ये जिंदगी
बस ख़ुशी से रहा कीजिए

जो बुराई करे आपकी
आप उसका भला कीजिए।

रूठना बात अच्छी नहीं
है गिला, तो गिला कीजिए

मिल गये जब जरूरत हुई
बे ग़रज भी मिला कीजिए।

टूटता वो अकड़ता है जो
वक्त आए झुका कीजिए।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 6, 2017 at 9:43pm
आदरणीय समर कबीर सर,आदरणीय नीलेश जी,इस मिसरे को पुनः परिष्कृत कर रहा हूँ!आप दोनों के मार्गदर्शन हेतू आभारी हूँ!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 6, 2017 at 9:43pm
आदरणीय समर कबीर सर,आदरणीय नीलेश जी,इस मिसरे को पुनः परिष्कृत कर रहा हूँ!आप दोनों के मार्गदर्शन हेतू आभारी हूँ!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 6, 2017 at 9:41pm
आदरणीय बृजेश भाई जी,प्रोत्साहन के लिए तहेदिल शुक्रिया,मेहरबानी!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 6, 2017 at 9:41pm
आदरणीय बृजेश भाई जी,प्रोत्साहन के लिए तहेदिल शुक्रिया,मेहरबानी!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 6, 2017 at 9:40pm
आदरणीय गिरिराज सर,प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत हारदिक आभार,सादर!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 6, 2017 at 9:39pm
आदरणीय आशुतोष जी प्रोत्साहन हेतु सरद हार्दिक आभार,नमन!
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2017 at 11:13am

टूटता है अकड़ता है जो
सादर

Comment by Samar kabeer on May 6, 2017 at 11:08am
भाई सतविन्द्र जी फिर ये मिसरा ऐसे होगा:-
'जो अकड़ता है वो टूटता'
निलेश जी का इन्तिज़ार करते हैं ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 11:55pm
सुन्दर सरस ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ आदरणीय
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 5, 2017 at 11:11pm
आदरणीय नीलेश जी सादर,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया।आदरणीय समर कबीर जी की इस्लाह अनुसार परिष्कार कर लिया ।आपने जिस मिसरे में है की कमी लगी,यदि है जोड़ें तो कहाँ/कैसे जोड़ें?इतना मार्गदर्शन भी करें कृपया।

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