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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा-अंक 72 में शामिल सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन 

72वें तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| मिसरों को दो रंगों में चिन्हित किया गया है, लाल अर्थात बहर से खारिज मिसरे और हरे अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|

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Nilesh Shevgaonkar

इक जोश था जवानी में, क़िस्तों में कट गया,
फिर बाप का बुढापा वसीयत में बट गया.


झुमका, कफ़न से ऐसे किसी का लिपट गया,
मैं क्या कहूँ ये शेर यहीं पर सिमट गया.


नीली पडी है रूह तुम्हारे फिराक़ में, 
यादों का नाग ज़ह’न को डँस कर पलट गया.

कितना हसीन था ये सफ़र यार!! तेरे साथ,
रस्ता था जो सदी का वो लम्हों में कट गया.

जलती चिता ये कह पडी जीवन को देख कर,
“कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया”

लिखने गया जो तेरी ज़मीं पर ग़ज़ल क़तील, 
मेरी नज़र में क़द ये मेरा और घट गया.


अपनी बुलंदियों से भी रुसवा रहा है “नूर”
गोया शजर ज़मीन के रिश्तों से कट गया. 

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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)

दुनिया की राह छोड़ के जो हक़ पे डट गया

दरिया भी उसके कुजे में आकर सिमट गया

 

उसका यकीन कौन करेगा जहान में

जो अपनी हक़ बयानी से खुद ही पलट गया

 

बाहें गले में डाल के कुछ यूं मिला रक़ीब

जैसे कि कोई नाग बदन से लिपट गया

 

सदियों से जो टिका रहा चट्टान की तरह

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

दीवानगी में दर्द का आलम न पूछिए

ऐसी लगी है चोट कलेजा ही फट गया

 

मुश्किल सफर हयात का कटता भी किस तरह

जो दे रहा था साया शजर आज कट गया

 

इस वास्ते सुकून है गुलशन के मालो ओ ज़र

जो भी दिया ख़ुदा ने गरीबों में बट गया

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गिरिराज भंडारी

दामन से मेरे, खार वो ऐसे चिमट गया

सदियों का मेरा दोस्त ज्यूँ मुझसे लिपट गया

 

ग़म जा रहा था दूर मेरे घर को छोड़ कर

तन्हाइ मेरी देख के वो फिर पलट गया

 

किस्से का अंत, जो था अदालत पे मुन्हसिर

दौलत की रोशनी में वो किस्सा निपट गया

 

अब हो कोई शिवा या तो राणा प्रताप हो

सरहद की बाड़ों को सभी, जयचंद चट गया

 

यूँ कुदरती है चाँद का घट जाना रोज़ ही

तुझसे नज़र मिली तो लगा और घट गया

 

तेरी छुवन निगाह की जादू से कम नहीं

दौरे ख़िज़ाँ में बाग़ भी फूलों से पट गया

 

क्या कोहसार भी कभी हटते हैं राह से ?

‘’कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

यूँ भी खड़ा था दूर वो साहिब मेरे से पर 

शायर हूँ जान कर ज़रा सा और हट गया

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Tilak Raj Kapoor

इस खुशनुमा चमन का मुक़द्दर पलट गया

बेबात ज़िद में देख तेरा घर ही बट गया।

 

ये दौर था नसीब, चलो ये भी कट गया

है बात और इसका सबक़ दिल को रट गया।

 

जिस देह के लिए मैं जिया खुद को भूलकर

उसका वुजूद एक कलश में सिमट गया।

 

मज़्बूत तो बहुत था मेरा तर्क, सत्य भी

हाकिम तेरे रुसूख़ औ रुतबः से कट गया।

 

करते ही जेब गर्म मुझे आ गया समझ

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया।

 

दिल में है आरज़ू कि तुझे रू-ब-रू मिलूँ

तेरे रचे फरेब से ये दिल उचट गया।

 

सच से बड़ा है झूठ मुलम्मे की ओट में

ये क्या हुआ कि मोल यहाँ सच का घट गया।

 

मैंने न कुछ कहा न सुना, देखकर उसे

बस मुस्करा दिया तो वो मुझसे लिपट गया।

 

तक़्दीर में लिखे को बदलने की चाह में

तक़्दीर में लिखे से मेरा ध्यान हट गया।

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rajesh kumari

खुद्दार का वजूद पलों में सिमट गया

दो भाइयों के बीच की रंजिश में बट गया

 

पँहुची जमीं पे चाँद सितारों की जब कलह

आकाश का गुरूर सरेआम घट गया

 

आँखें उठी हज़ार निगाहें मचल गई

हालात से गरीब का आँचल जो फट गया

 

वो सर्द सर्द रात कड़कती वो बिजलियाँ

चूजा सहम के माँ के बदन से चिपट गया

 

तूफ़ान है छुपा हुआ इसकी खबर न थी   

छेड़ा जरा निकाब तो मौसम पलट गया

 

होता अगर ख़याल तो आता पलट के फिर   

अपना वो कैसा था कि जो अपनों से कट गया

 

इंसान तो समझ न सका पाठ आज तक

वो मेल का मिलाप का तोतो को रट गया

 

मंजिल तो मिल गई है मगर ‘राज’ सोचती   

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

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Manoj kumar Ahsaas

कैसा अज़ीब हादसा महफ़िल में घट गया

जिस पर भरोसा था वही परदा उलट गया

 

जब तेरे इश्क़ के सिवा दिखता नहीं था कुछ

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

माझी का देखो हौसला,पूछो न दोस्तो

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

सूरज का तेज़ उसकी हया सह नहीं सकी

घूँघट ज़मी का ओढ़ के महताब घट गया

वो पास रहके दूर थे है दूर रहके पास

इस झूठ के भरोसे मेरा वक़्त कट गया

 

एक दस का नोट देके जो माँगा बहुत हिसाब

वो ज़िद पे आके सामने कांसा पलट गया

 

सारे जहाँ की दौलतें खामोश रह गई

मासूम भूखे पेट कफ़न से लिपट गया

 

इसको समझिये काफ़िया पैमाई दोस्तों

इससे हमे क़तील का इक शेर रट गया

 

नाकामियों ने दिल के सितारे बुझा दिये

उसका हरेक ख्वाब नज़र में सिमट गया

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shree suneel

जिस तर्ह वो मिला, गले से भी लिपट गया

कब ये लगा कि दिल वो कभी था उचट गया.

 

उसने बयाँ की राय कुछ ऐसी कि ज़ीस्त ये

जाने कहाँ भटक गई, मैं भी सिमट गया.

 

जब राफ़ स़ाफ़ हो गये रिश्तों के पेंचोख़म

फिर भी लगा कि कुछ न कुछ इस दिल में घट गया.

 

बच्चे भी बैट-बॉल रख आये कहीं पे अब

मेरा भी स़ह्न देख दो हिस्सों में बट गया.

 

हैरानगी नहीं कफ़ ए फ़र्हाद पे, है ये कि

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया.

 

जो अब्तरी ए ज़ीस्त से उकता के डट गये

तक़्दीर मे जो सा़फ़ था लिख्खा पलट गया.

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Manan Kumar singh

कितनी रियासतों से अपन देश पट गया

तख्तों की चाह में ही सकल रोब घट गया।1

 

लड़ते रहे मुए खुदी का दे हवाला तब

कटता रहा वही जो बैरी के निकट गया।2

 

अब भी अगर विचार लो वक्ती हवा चली

काटा गला कभी जो समय वो विकट गया।3

 

चेतो जरा अभी भी सुनो ध्वजधारियो

घातें रहीं दुधार बखत कितना रट गया।4

 

ललकार कर बढ़े जो' थमे कब 'मनन' कहीं

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया।5

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Tasdiq Ahmed Khan


जैसे ही बिजली कड़की वो मुझ से लिपट गया ।

फ़ौरन वरक़ किताबे वफ़ा का उलट गया ।

 

राहे वफ़ा में जिसको मैं समझा था पट गया ।

मंज़िल से क़ब्ल वादे से वह भी पलट गया ।

 

कोशिश उन्हें भुलाने की नाकाम क्यों न हो

दिलबर का नाम मेरी ज़बाँ को ही रट  गया ।

 

आता नहीं है गुज़रा ज़माना कभी मगर

वह वक़्त याद आता है जो साथ कट गया ।

 

हैरतज़दा था खोद के फरहाद इस लिए

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया ।

 

गुज़रेंगे वह कभी तो यहां से ये सोच कर

रस्ते को घर बना के यहीं पर मैं डट गया ।

 

हैं और आज़माइशें राहे  ख़ुलूस में

एक इम्तहाँ ज़रूर हमारा निपट गया ।

 

जब तक था दूर देखता उनको रहा मगर

मदहोश यकबयक हुआ जिस दम निकट गया ।

 

होते हैं ऐसे मोजिज़े दुनिया में अब कहाँ

मारा असा जो मूसा ने सागर ही फट गया ।

 

राहे वफ़ा में साथ चला जो यही है गम

वह चलके सिर्फ दो ही क़दम पीछे हट गया ।

 

तड़पा है दिलजला कोई तस्दीक रात भर

बिस्तर कई जगह पे न यूँ ही सिमट गया ।

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जयनित कुमार मेहता

पर्दा जो मेरे "मैं" का निगाहों से हट गया

दुनिया से उस ही वक़्त मेरा जी उचट गया

 

आँचल से माँ के जब भी मैं जा कर लिपट गया

ग़म का उफ़ान मारता दरिया सिमट गया

 

अटका हुआ था फाइलों में जो मुआमला

टेबल के नीचे हाथ बढ़ाया, सलट गया

 

लम्हे ज़रा सुकून के क्या वक़्त ने दिए,

झोंका तुम्हारी याद का वो भी झपट गया

 

कल तक हमारी मुफलिसी पे हँस रहे थे वो

मुट्ठी जो हम ने खोल दी पांसा पलट गया

 

दौलत की इक चमक ने मिटाया ग़रूर भी

"कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया"

 

तू किस के दम पे खुद को समझता रहा अमीर

ईमान का जहान में "जय" मोल घट गया

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Kalipad Prasad Mandal

हैरान हूँ मैं प्यार का धागा क्यूँ कट गया

सारे जहाँ के रिश्ते सकल क्यूँ सिमट गया ?

 

सरकार चाहती कि प्रगतिशील देश हो

उत्थान कर्म छोड़ के नारों को रट गया |

 

सरकार और कौम में बढती गई दुरी   

जनता हुई निराश टूटे दिल उचट गया |

 

चट्टान सा खड़ा था वही दोस्त ना रहे

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया |

 

नामोंनिशान ख़त्म सभी भ्रान्ति ना रहे

जातीय भेद भाव अभी दूर हट गया |

 

अच्छा है जीर्ण शीर्ण सकल कायदा टूटी

बदलाव का समाज यही दे आहट गया |

 

ऊँची दूकान तुच्छ पकोवान पक गए 

सम्बन्ध तो तमाम मुखौटे से कट गया |

 

रिश्ते मेंचोर चोर ममेरे भाई हुए

शेयर ग्रहण में एक इतर के निकट गया |

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शिज्जु "शकूर"

दरिया मेरे क़रीब जो आकर सिमट गया

तनहा मै अपने आपसे खुद ही लिपट गया

 

अपने ही दायरे में फ़क़त क्यों सिमट गया

"कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया"

 

पन्ने कई मरोड़ के फेंके ज़मीन पर

नाक़ामियों से जैसे ये कमरा ही पट गया

 

जब भी मिले हरीफ़ मुझे अपने ही मिले

दिल से मुहब्बतों का यूँ अहसास घट गया

 

आरी बहुत ही तेज़ थी लालच की इसलिए

आया जो दरमियान वही पेड़ कट गया

 

क़ुदरत कहाँ बनाये जगह अपने वास्ते

जंगल तमाम काट के इंसान डट गया

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harkirat heer

जब भी मिला वो' यार सा' मुझसे लिपट गया

क्यूँ नामुराद दर्द ये दिल से चिमट गया

 

कुछ इस क़दर ख़फ़ा तू रही मुझसे' ज़िंदगी

जिस पर किया यकीन, वही छोड़ कट गया,

 

वो चमत्कार था कि, दुआ कर गई असर

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

कैसा हसीं ख्व़ाब था' लगा ज्यूँ रुका को'ई

था कौन वो क़रीब जो'आकर पलट गया

 

रहता खिला-खिला था' कभी दिल का' जो मकाँ

दिलगीर अब हुआ क्यूँ', बता क्यों उचट गया

 

चाहा मुझे  था' तूने' दिलो जान से कभी

मैं तो वही हूँ' फ़िर क्यों' तिरा प्यार घट गया

 

यूँ बार-बार इश्क़ की' चोटों से' 'हीर' ज्यूँ

तेरी उम्र का' ख़ुशरँग इक वरक़ फट गया

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Ahmad Hasan

सरमाया बात बात में मेरा जो चट गया ।

कुछ और की तलाश में मुझ से वो कट गया ।

 

मुद्दत से इंतज़ार था हाँ का मेरी उसे

अल्लाह रक्खे हाँ पे मेरी अब वो नट गया ।

 

औक़ात उसकी पहले तो दो चार घूँट थी

अबके तो एक सांस में बोतल ही गट गया ।

 

उस शोख़ की पतंग कटी मेरी पेच से

मैं भी गुलाबी आँख के डोरे से कट गया ।

 

सोते में कितना खुश था,बहुत चैन था मुझे

खुलते ही आँख ख्वाब का मंज़र उलट गया ।

 

चलता बना वो अज़मेसफर मेरा देख कर

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया ।

 

बारिश ने ढेर कर दिया मेरे मकान को

हमसाये का महल भी तो मलवे से पट गया ।

 

ख़दशा दिमाग में था न जुम्बिश थी पैर में

पीछे बला पड़ी थी मगर अज़्म डट गया ।

 

इण्टर का इम्तहान न दीजे बिहार से

टॉपर से मिलके जेल में अहमद भी नट गया ।

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Mahendra Kumar

रोया यूँ ज़ार ज़ार समन्दर भी घट गया

वो आज मुझ से टूट के ऐसे लिपट गया

 

कैसी नदी थी मैं कि रही जो थमी हुई

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

तब ग़म मिला किसी को, किसी को मिली ख़ुशी

बूढ़ा दरख़्त जब कई हिस्सों में कट गया

 

पहली दफ़ा मिली ग़मे आवारगी हमें

पहली दफ़ा हुआ कि मैं ख़ुद में सिमट गया

 

वो प्यार, इश्क़ और मुहब्बत भरी वफ़ा

इक बोझ था पहाड़ सा जो आज हट गया

 

हर बार क्यूँ ग़मों में इज़ाफ़ा हुआ मेरे

उन मुस्कुराहटों के मैं जब भी निकट गया

 

शायद इसी बहाने मिलें ख़ुद से हम कभी

अच्छा हुआ कि आइना कमरे से हट गया

 

दुनिया बुला रही थी मगर जा न पाये हम

जाने कहाँ जनाब हमारा टिकट गया

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gumnaam pithoragarhi

जब ज़िन्दगी का चेहरा अचानक उलट गया

हर शख्स अपने जिस्म में दर से सिमट गया

 

जो हाथ लोहा पीट के औजार ढाल दे

वो शख्स मुफलिसी और फाकों में बट गया

 

दो चार ही दिनों रहा था दूर मुझसे गम

कल चौक में मिला तो हँसा और लिपट गया

 

शोकेस में सजी सी मिली ज़िन्दगी मुझे

महंगी बहुत लगी जो मैं उसके निकट गया

 

तू साथ मेरे थी तो मुकम्मल रहा सदा

तेरे बगैर आज तो लगता मैं घट गया

 

उस पार के गरीबों की देख ऐसी हालतें

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"

इंसान कंकरीट में जब से सिमट गया।

सम्वेदना का दायरा बिल्कुल ही घट गया।।

 

जाये कोई परिंदा कहाँ, प्यास जो लगे।

शह्रों का इंच इंच तो पत्थर से पट गया।।

 

जलती हुई सड़क के किनारे उदास थे।

पूछा तो बोल उट्ठे कि सब पेड़ कट गया।।

 

अब मीडिया ही घर है रिश्ते भी मीडिया।

अब आदमी पड़ोस से बिल्कुल ही कट गया।।

 

भूखा कई दिनों से वो बच्चा ज़रूर था।

कुत्ते से रोटियों का जो पैकेट झपट गया।।

 

जिसको विकास आप सभी कह रहे सुनें।

उस धन के दास से तो मेरा चित्त फट गया।।

 

तूफ़ाँ नहीं झुका तो यही पूछियेगा सब।

"कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया"।।

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Ashok Kumar Raktale

आया नहीं पनाह में दिल पे उमट गया

तेरा गरूर ढंग मेरा दिल उचट गया

 

कातिल तेरी निगाह बढ़ाती थी धड़कनें

जो रास्ते बदल गए वो खौफ़ घट गया

 

दौलत ये शान ही तेरी चाहत बनी रही

इस वास्ते मैं राह से हर तेरी कट गया

 

सारी हकीकतें सभी अरमान भूलकर

मैं छोड़कर जहान खुदी में सिमट गया

 

जो प्यार से मिला गले तो सोचता हूँ मैं

“कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया”

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मोहन बेगोवाल

लाखों बहाने मुझसे बना जो पलट गया

कैसे  कहूँ मेरे  लिए दुनिया से डट गया

 

ये जिंदगी मुझे  लगा मंजिल दिखा गई

अब सोचता हूँ अपने बिगाने  में बट गया

 

क्यूँ लोग घर बना कि बाजारों में  बेचते

छोड़ा कभी इसे तो कलेजा  था फट गया

 

बातें बता गया हमें दुनिया जहाँ  की  वो

जब  हो जुबाँबजार तो, एहसास घट गया

 

कोई हमें बता गया टीसी है जिंदगी

“कैसा था वो पहाड जोरस्ते से हट गया”

 

ऐसा लगा कि भूख यहाँ कूच कर गई 

देखी हमें पहाड मुसीबत का फट गया

 

हम को जरा बता कोई कैसे यहाँ रहे

जो घर कभीरहा लगा खुद में सिमट गया

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munish tanha

सरकस में देख शेर को बच्चा सिमट गया

माँ पास में खडी थी उसी से लिपट गया

 

पहले थी रात दिन मुझे चिंता बनी हुई

मंजिल मिली मुझे तो समय फिर विकट गया

 

सुख दुख है साथ फ़िक्र के रस्ता कहाँ मिले

माँगा खुदा फकीर ने किस्सा पलट गया

 

पहले लगे बुरा जो वो अच्छा अभी लगे

सोचा खुदा को मन से निकल के कपट गया

 

हैरान तुम बहुत हो बताऊँ अगर तुम्हें

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

किस्मत कहूँ नहीं तो छलावा कहूँ उसे

वो दूर आज उतने मैं जितना निकट गया

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Sachin Dev

ऑटो हमारे इश्क का उस दिन पलट गया

महबूब आया चाय पे औ दूध फट गया

 

झगड़ा पड़ोसियों का निपटवाने हम गये 

इस आत्मघाती शौक में घुटना निपट गया

 

घर से गये मुशायरे में पढने हम गजल

रिक्शे से नीचे उतरे तो पैजामा फट गया

 

अम्मा ने नाम अपना रटाया हमें सदा

शादी के बाद नाम क्यूँ बीबी का रट गया

 

मैके गई जो पत्नि तो पतिदेव को लगा

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

लट से हुआ जो प्यार वही प्यार लट गया

आगाज में ही प्यार का किस्सा उलट गया

 

पैगाम आ गया गो कि उम्मीद ख़त्म थी   

संदेह का जो अब्र था वह अब्र छट गया

 

खुशबू तुम्हारी संदली चन्दन नहीं थी तुम

मै भी नहीं था नाग खुदारा लिपट गया

 

जो शर्मसार था कभी नजरें नहीं उठी

ताज्जुब है आज इश्क के मैदां में डट गया

 

किस्से तमाम आम थे गम के पहाड़ के

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

मैं रो रहा था बारहा भाई की कब्र पर

वह हाथ दाहिना था मिरा हाथ कट गया 

 

औरत थी इसलिए सभी कहते गिरी उसे 

वह आदमी था यार ज़रा सा रपट गया

 

आँचल के ओढ़नी के थे परचम कभी तने

बारूद जींस-टॉप में जाकर सिमट गया

 

आई है राधिका खिंची बंशी की तान से

‘गोपाल’ किन्तु सामने आने से नट गया

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vandana

जब भी जुनून ले के कोई जिद से डट गया

ये देखो आसमान तो सपनों से अट गया

 

आकर करीब देखा तो जलवा सिमट गया

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

बेख़ौफ़ बढ़ रहा था कि पिघली थी रोशनी

पर धूप जब चढ़ी तो लो साया भी घट गया

 

ऊंची दुकां में बिकती हैं फर्जी ये डिग्रियां

शिक्षा का हाल देखा तो कलेजा ही फट गया

 

रेखा मेरे करीब से लम्बी गुजर गयी

था कुछ वजूद छोटा तो कुछ और घट गया

 

हाँ बर्फ सी जमी तो मेरे चारों ओर है

पर क्या हुआ कि रिश्ता नमी से ही कट गया

 

वो ढूँढना तो चाहता था चैन की ख़ुराक

लेकिन दिलो-दिमाग की उलझन में बट गया

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Samar kabeer

देखा,पलक झपकते ही पाँसा पलट गया

उसका वजूद सैकड़ों हिस्सों में बट गया

 

गर्द-ओ-ग़ुबार ज़ह्न से यकलख़्त छट गया

'मारूफ़',पापा कहके जो मुझसे लिपट गया

 

मैं अपनी बैबसी का बयाँ किस तरह करूँ

फैलाया इस क़दर कि ये दामन ही फट गया

 

तलवारें मेरे जिस्म पे सब कुन्द हो गईं

लेकिन मैं एतिबार के ख़ंजर से कट गया

 

मातम कुनाँ हैं 'मीर' तो 'ग़ालिब' हैं ख़न्द:ज़न

सबकुछ ग़ज़ल में आ गया,मैयार घट गया

 

ये मौजिज़ा भी दर्ज है तारीख़-ए-हिन्द में

कासे में इक फ़क़ीर के दरिया सिमट गया

 

वो कामियाब हो गया ,बातिल के सामने

लेकर ख़ुदा का नाम जो मैदाँ में डट गया

 

अच्छा सवाल पूछा जनाब-ए-'क़तील' ने

"कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

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Ravi Shukla

कुछ लोग मानते है कि कद मेरा घट गया,

मैं गाँव के रिवाज से, रस्मों से कट गया ।

 

हैं आह, अश्क नाला ओ फ़रियाद इश्क़ में,

अफ़सोस तुम करो न गिरेबान फट गया ।

 

मौसम की बात मान के वो छोडकर लिहाज़,

सरसब्ज रास्तों पे हवा सा लिपट गया ।

 

झोंका हवा का था कि हमारी थी आरजू,

रुख़ से कोई नक़ाब अचानक उलट गया।

 

आई थी ये ख़बर कि मुलाक़ात कीजिये,

हैरान हूँ जुबान से वो फिर पलट गया ।

 

शब हाये वस्ल देख के फूलो की सेज को,

फूलो के साथ साथ वो खुद में सिमट गया।

 

फरहाद ने जुनूँ में ये सोचा नहीं कभी,

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया।

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सीमा शर्मा मेरठी

तुम क्या मिले जहाँ मेरा तुममे सिमट गया

लेकिन मेरा वजूद दो हिस्सों में बट गया।

 

मुझको जुदा करो न मेरे आशियाँ से तुम

पत्ता शज़र के पैरों में ऐसे लिपट गया।

 

रस्मों रिवाज़ तोड़ के दुनिया बसाई पर

चाहत का चाँद चार दिनों में ही घट गया।

 

मैं धूप के लिबास को निकली जो ओढ़ कर

दरिया का पानी घट गया खुद में सिमट गया।

 

वो बारहा गया मेरी चाहत को छोड़ कर

उससे इसी सबब से मेरा दिल उचट गया ।

 

मेरे ज़िगर की आग से सुलगे हैं लफ्ज़ लफ्ज़

अहसास का धुआं भी ग़ज़ल में सिमट गया ।

 

तूफान सहमा मेरे सफीने को देख कर

"कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया ।"

 

आतिशफ़िशा उबलता था दिल में जो हिज़्र का

देखा करीब तुझको तो "सीमा "वो फट गया।

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satish mapatpuri

वफ़ा नहीं, हया का परदा था हट गया

एक घाव था पुराना छुते ही फट गया

 

जो चाहिये मिलेगा इतना यकीन था

मंज़िल मिली जनाब का वादा पलट गया

 

गांव अपना गांव सा लगता भला कहाँ

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया

 

इकबाल के कलाम का  मतलब नहीं रहा

अब हिंद जात - धर्म के खेमे में बट गया

 

वो आपसी लगाव को किसकी नजर लगी

जज़्बात  प्यार का कहाँ -कैसे अटक गया

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laxman dhami

मत कह वफा की राह से साया भी हट गया

घबरा के तम से यार वो तुझमें सिमट गया।1।

 

हैरत हूँ वक्त आज ये क्या क्या उलट गया

नफरत जिसे थी खूब वो आकर लिपट गया।2।

 

सोचा था चल के दर्द का बहलाएं दिल तनिक

पड़ते ही पाँव बाग में पतझड़ सिमट गया।3।

 

ओहदे का दबदबा था कि उसकी गरज कोई

मिल के गले भी यार न मन से कपट गया।4।

 

जिद थी तेरी कि खाक हो उसका वजूद फिर

टकरा के उससे मान तो तेरा भी घट गया।5।

 

घर से चले थे सोच के जूझेंगे खूब हम

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया।6।

 

दिन को तलाश काम की बेचैन कर गई

उसका खयाल रात की नींदें उचट गया।7।

 

कैसे न उसकी राह में अश्कों की हो झड़ी

रस्ता हमारा यार जो शूलों से पट गया।8।

 

कैसे रचे भला कोई खेतों के गीत अब

हल बैल छूट गए हैं तो यारों रहट गया।9।

 

आई खुशी तो फिर से ये तन्हाई दे गई

जो भी बुरा था वक्त तेरे साथ कट गया

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योगराज प्रभाकर

जब से कुआँ नहीं रहा जब से रहट गया

खलिहान और खेत है काँटों से पट गया

 

इक रेडिओ गरीब के कानों से सट गया

अच्छे दिनों की आस जगा फिर बजट गया

 

पेट और पीठ में था उनके फासला बहुत

खेती गई वो फासला तेजी से घट गया

 

जंगल हुआ जो कत्ल तो बेवा हुई ज़मीं

जिसकी फुगाँ से खेत का सीना ही फट गया 

 

लेकर हटा किसान के कुनबे की जान ही

जब कर्ज़ नाग खेत से आकर लिपट गया

 

बारिश के बादलों को गुज़रने दिया था क्यों

"कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया"

 

ये भी अमीरे शहर की साज़िश लगे मुझे 

सावन जो अपने कौल से ऐसे पलट गया

_________________________________________________________________________________

Sheikh Shahzad Usmani

पर्यावरण बिगाड़, खिलाड़ी निपट गया,

इंसान स्वार्थ में ही रहा, कर कपट गया।

 

हर इक मुशायरा हमें सिखवाता शायरी,

ओ.बी.ओ. में रियाज़ मुकम्मिल सिमट गया।

 

अशआर पढ़ के आज यहाँ शेर कह रहा,

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया।

 

गतिविधियाँ फेसबुक की बुरी क्यों कहें भला,

सब को सही-ग़लत, मैं सिखाने को डट गया।

 

इस्लाह, खींच-टांग विधायें सिखा रहीं,

'शहज़ाद' गोष्ठियों में हमेशा ही झट गया।

 ___________________________________________________________________________________

Harash Mahajan

मुजरिम हुआ ज़नाब वफ़ा से पलट गया,

बनके घटा सा आया वो बादल कि छट गया |

 

गुज़रा कभी जो साथ समां भूलूं कैसे मैं,

बरसों में इक था यार मिला पल में कट गया |

 

अब शोर है बहुत कि जहाँ से उठा रकीब,

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया |

 

नफरत व रंजिशे भी बता क्या बिगाडेंगी,

दिल में था इतना प्यार कि दुश्मन उलट गया |

 

सरहद पे सैनिकों ने मनाया था जब ज़शन,

जो भी जिसे दिखा वो वहीँ पर लिपट गया |

______________________________________________________________________________

Sulabh Agnihotri

जाने कहाँ गया वो कुआँ वो रहट गया !

आखिर क्यों मेरे खेत का सीना ही फट गया ?

 

टोपी पलट गयी है तुझे देखने में दोस्त

ऊँचा उठा है तू या मेरा कद ही घट गया ?

 

सीने में वो गुबार अभी जस का तस अड़ा

कैसा था वो पहाड़ जो रस्ते से हट गया ?

 

इक झोंके को जरा सी खुशी-खुश्बू बाँट दी

पर ऐसा क्या हुआ जो तू इतना सिमट गया ?

 

रोपूँ कहाँ पे तुलसी के बिरवे बताइये ?

आँगन का कोना-कोना तो काँटों से पट गया

_________________________________________________________________________

मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदरणीय मंच संचालक महोदय, ओबीओ लाइव तरही मुशायरा, अंक-72 ‌‌के सफल आयोजन एवं संकलन की हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। आपसे निवेदन है कि मेरे द्वारा प्रस्तुत ग़ज़ल के पहले ऐबदार मिसरे को निम्नलिखित मिसरे से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें

पहली दफ़ा मिला ग़म-ए-आवारगी मुझे
पहली दफ़ा हुआ कि मैं ख़ुद में सिमट गया

दूसरे ऐबदार मिसरे में मुझे कुछ बेहतर नहीं सूझा, इसलिए इसे मैं वैसा ही रखना चाहता हूँ। देर से कष्ट देने के लिए क्षमा करें। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।

मुहतरम जनाब राणा साहिब,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक -72 के संकलन और कामयाब संचालन के लिए मुबाकबाद क़ुबूल फरमायें

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