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१. 

निद्राधीन निस्तब्धता

कुलबुलाता शून्य

सनसनाता पवन

डरता है मन

अर्धरात्रि में क्यूँ

कोई खटखटाता है द्वार

प्रलय, सोने दो आज

        ------

२.

मेरी ही गढ़ी तुम्हारी आकृति

बारिश की बूँदें

तुम्हारे आँसू

तुम्हारी खिलखिलाती हँसी

कल्पना ही तो हैं सब

वरना 

मुद्दतें हो गई हैं तुमसे मिले

          -----

३.

कभी अपना, कभी

अपनी छाया का भी 

वियोग

दर्द किसका

किसने किसको दिया

किसने ज़्यादा सहा

किसने ज़्यादा दिया

         ------

४.

रह गया है बस

सुनसान के संग

अजाना सुनसान

परिचित में  भी मानो

हैं सब अपरिचित

अवशेष है

परिचित उच्छवास

         ----

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Arpana Sharma on April 26, 2017 at 9:36pm
सुंदर क्षणिकाएं, कम शब्दों में गहन अर्थ समेटे, " परिचित में भी अपरिचित ..." तथा " किसने ज्यादा सहा, किसने ज्यादा दिया ...", ये शायद आज अंतस की व्यथा है। आपकी लेखनी को बहुत शुभकामनाएँ ।
Comment by Mohammed Arif on April 26, 2017 at 5:31pm
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब, बेहतरीन भावपूर्ण कविताएँ । इन रचनाओं को क्षणिका कहने के बजाय कविता कहना ज़्यादा उचित होगा क्योंकि क्षणिकाओं में करारा व्यंग्य या कटाक्ष होता है और कविता में तीव्र भावाभिव्यक्ति होती है । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2017 at 5:26pm
आदरणीय निकोर सर बहुत ही सूंदर छनिकाएं हैं इस सूंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सादर

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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2017 at 3:56pm
वाह आदरणीय विजय निकोर सर अच्छी भावपूर्ण क्षणिकाएँ हुईं हैं, सादर बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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