For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"नूर" ....कब चुना हमने मुसलमान या हिन्दू होना

२१२२/११२२/११२२/२२
कब चुना हमने मुसलमान या हिन्दू होना
न तो माँ बाप चुनें और न घर ही को चुना
हम ने ये भी न चुना था कि बशर हो जायें.

हम को इंसान बना कर था यहाँ भेजा गया,
कैसे मज़हब के कई ख़ानों में तक्सीम हुए?
क्यूँ सिखाये गए हम को ये सबक नफरत के?
.
हम ने दहशत से परे जा के बुना इक सपना
अपनी दुनिया न सही, काश हो आँगन अपना
ऐसा आँगन कि जहाँ साथ पलें राम-ओ-रहीम.
.
जुर्म ये था कि जलाया था अँधेरों में चराग़
हम ने नफ़रत की हवाओं के मुख़ालिफ़ बन कर
धर्म-ओ-मज़हब की सियासत की ख़िलाफ़वर्ज़ी की.
.
 मुआशरा तल्ख़ हुआ क्यूँ ये शिकायत भी नहीं  

दर्द बस ये कि कोई बात सुनी ही न गयी.
खून मिट्टी का था पर आप ने गद्दार कहा?
.
कौन हिन्दू है यहाँ कौन मुसलमान यहाँ
कब्र की ख़ाक, चिताओं के धुएँ से पूछो.
सब परिन्दे हैं मुहब्बत की फ़ज़ाओं वाले. 
.
आइये मिल के जलाते हैं मुहब्बत का चिराग़
तेल भी हम ही बनें और हमीं बाती बनें,
इल्म का नूर बरसने और सहर होने तक.
.
उसने पूछा ही नहीं कुछ तो बताते क्या हम
उस की मर्ज़ी है, यहाँ हम जो चले आए हैं,
वो जो वापस भी बुला ले तो कोई बात नहीं.
.
दिल ने चाहा था सितारें या दीयें हो जायें
या कि ख़ुर्शीद या जुगनू या क़मर हो जायें
छाँव देता हुआ फलदार शजर हो जायें.

हम ने ये तो न चुना था कि बशर हो जायें  
न तो माँ बाप चुने और न घर ही को चुना.
कब चुना हमने मुसलमान या हिन्दू होना.    
कब चुना हमने मुसलमान या हिन्दू होना
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 628

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 16, 2017 at 10:57pm
बेहतरीन ..बहुत शानदार आत्मचिन्तन कराती रचना..
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2017 at 7:47pm

शुक्रिया आ. समर सर,
आप ने जिन बिन्दुओं पर ध्यान दिलाया है मैं उन पर विचार कर के उन में तरमीम सोचता हूँ ...
बहुत बहुत आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 16, 2017 at 7:46pm

शुक्रिया आ. सुशिल सरना जी 

Comment by Samar kabeer on March 16, 2017 at 4:41pm
जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,बहुत उम्दा जज़्बाती और सच्ची नज़्म लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
कुछ मिसरों की तरफ़ तवज्जो दिलाना चाहूँगा :-
'धर्म-ओ- मज़हब की सियासत की ख़िलाफ़ वर्ज़ी की'
इस मिसरे में 'धर्म'और 'मज़हब'दोनों एक ही तो हैं,धर्म कहें या मज़हब ?ये मिसरा लय में भी नहीं है,देखियेगा ।
'मुआशरा तल्ख़ हुआ क्यों ये शिकायत भी नहीं'
इस मिसरे में 'मुआशरा' शब्द का 'मु'दब रहा है,देखियेगा ।
'इल्म का नूर बरसने और सहर होने तक'
इस मिसरे में भी सक्ता है, देखियेगा ।
'दिल ने चाहा था सितारें या दीयें हो जाएं'
शायद ये मिसरा टाइपिंग मिस्टेक का शिकार है ?
बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Sushil Sarna on March 16, 2017 at 2:34pm

आदरणीय नीलेश जी गहन भावों की इस सुंदर ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 15, 2017 at 9:21pm

शुक्रिया आ. राघव साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 15, 2017 at 9:19pm
शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब
Comment by Mohammed Arif on March 15, 2017 at 10:31am
आदरणीय नीलेश जी आदाब, समंवय, साम्प्रदायिक सद्भावना से परिपूर्ण बेहतरीन अशआर के लिए दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service