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ग़ज़ल -तब अलग थी, अब जवानी और है ( गिरिराज भंडारी )

ग़ालिब साहब की ज़मीन पर एक प्रयास

तब अलग थी, अब जवानी और है

2122   2122    212  --

शक्ल में जिनकी कहानी और है

क्या उन्होनें मन मे ठानी और है

 

लफ़्ज़ तो वो ही पुराना है मगर

आज फिर क्यों निकला मअनी और है

 

हाथ में पत्थर है, लब खंज़र हुये

तब अलग थी, अब जवानी और है

 

है समंदर की सतह पर यूँ सुकूत

पर दबी अब सरगिरानी और है

 

साजिशें सारी पस ए परदा हुईं

पर अयाँ जो है ज़बानी,.. और है  

 

बात सारी दोस्ती की कर रहे  
पर अमल की कुछ बयानी और है

 

अब हक़ीकत है यहाँ बदली हुई

अब उधर की भी कहानी और है
******************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:51am

आदरणीया कल्पना जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:51am

आदरनीय काली पद भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:50am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:50am

आदरनीय श्याम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:49am

आदरणीय तस्दीक भाई , आपकी सलाह और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 7:49pm

इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 5, 2016 at 7:29am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीया गिरीराज जी , बधाई स्वीकार करें |

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 4, 2016 at 9:38pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल कीजिए

Comment by Shyam Narain Verma on October 4, 2016 at 5:08pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 3, 2016 at 7:50pm

मोहतरम जनाब  गिरिराज   साहिब ,  अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ  मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---- मआनी का एक वचन   मअनी होता है ,अगर मुनासिब समझें तो शेर 2 का सानी मिसरा यूँ भी कर सकते हैं --"  आज फिर क्यों निकला मअनी और है "----शुक्रिया 

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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
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