For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुरानी किताबें ....

पुरानी किताबें ........

पुरानी किताबें
कुछ भी तो नहीं
सिवाय पुरानी कब्रों के
जिनमें दफ़्न हैं
चंद सूखे गुलाब
कुछ सिसकते हुए
मुहब्बत के ख़ुश्क से हर्फ़
कुछ पुराने पीले
टुकड़े टुकड़े से
अधूरे प्रेम के
प्रेम पत्र

पुरानी किताबें
जिनमें सो गयी
जीने की आस लिए
कई आकांक्षाएं
घुटी हुई सांसें
मोटी सी ज़िल्द की
अलमारी में
कैदियों से जीते
मौन कई अफ़साने
जंज़ीरों में जकड़े
इश्क और मुहब्बत के
बीते हुए  ज़माने


पुरानी किताबें
कैद हैं जिनमें
चेहरे की झुर्रियों में
जीवन समेटे
बज़ुर्गों के
कुछ धुंधले से चेहरे
जिनकी नसीहतें
उनके साथ
पन्नों में
सो गयी

पुरानी किताबें
फ्रेम में जड़े
ज़िस्मों की तरह
खामोश यादों के सिवा
शायद
कुछ भी नहीं
पन्नों में सिमटे
बीते पल
बस
बीते कल के सिवा
कुछ भी नहीं

पुरानी ही सही
मगर कैसे कह दें
इन किताबों में
कुछ भी नहीं

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 6, 2016 at 3:12pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति के भावों को अपने जिस आत्मीयता से अलंकृत किया है उसके लिए आपका हार्दिक हार्दिक आभार। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 9:27pm

पुरानी किताबें
फ्रेम में जड़े
ज़िस्मों की तरह
खामोश यादों के सिवा
शायद
कुछ भी नहीं
पन्नों में सिमटे
बीते पल
बस
बीते कल के सिवा
कुछ भी नहीं

पुरानी ही सही
मगर कैसे कह दें
इन किताबों में
कुछ भी नहीं|

बहुत ही लाजवाब रचना हुई है आदरणीय सुशिल सर जी | हार्दिक बधाई | आपकी हर कविता एक अलग अंदाज़ की होती है | नमन आपको |

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2016 at 1:36pm

आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब आप जैसे गुणीजनों से प्रशंसा पाकर रचना गर्व महसूस कर रही है।  आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2016 at 1:34pm

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी प्रस्तुति को अपने स्नेहिल और आत्मीय शब्दों से अलंकृत कर मान बढाने का तहे दिल से शुक्रिया। आदरणीय बिलकुल सही सर मैं जल्दी में बार बार हुई को हुए पढता जा रहा था और आदरणीय समर कबीर साहिब ने उसे बीती हुई जमाने कह कर इंगित किया और मैंने जब उसे पुनः पढा तो उसमें बीते लिखा हुआ था   .... मैंने हुई को नहीं पढ़ा इसलिए मैंने कहा कि वो पंक्ति ठीक है। ... खैर इस टंकण त्रुटि को अभी एडिट कर रचना को दुरुस्त कर देता हूँ। आपका और समर कबीर साहिब का मैं दिल से आभारी हूँ। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 2, 2016 at 11:54am

पुरानी ही सही
मगर कैसे कह दें
इन किताबों में
कुछ भी नहीं-----------------वाह वाह सरना जी . अच्छा रूपक बांधा है . सादर .

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 2, 2016 at 10:59am

आदरणीय सुशील सरना साहब सादर नमस्कार, पुरानी किताबों को आधार बनाकर सुंदर रचना की है आपने. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. कैदियों से जीते .....यह पंक्ति तो सही लग रही है. किन्तु 'बीते हुई जमाने' पर आदरणीय समर कबीर साहब का सुझाव सही है. सादर.

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 7:29pm

आदरणीय समर कबीर साहिब मेरी हर प्रस्तुति आपकी आहटों का इंतज़ार करती है। प्रस्तुति के भावों पर आपकी गहन दृष्टि अपनी छैनी से और भी उन्नत कर देती है। आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। आपके द्वारा इंगित पंक्तियों में सुधार के बारे में
अलमारी में
कैदियों से जीते (इसमें जीते से अभिप्राय जीना है ) इसलिए इसमें परिवर्तन की आवश्यकता नहीं लगती।
मौन कई अफ़साने
और
''बीते हुई ज़माने'' ये पंक्ति तो सही है।

आपकी पैनी समीक्षा एवम सुझाव का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on October 1, 2016 at 6:09pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,आपकी कविता के विषय चोंकाने वाले होते है,पुरानी किताबों को बिम्ब बनाकर बहुत कुछ कह दिया आपने,वाह वाह बहुत खूब,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल की गहराइयों से बधाई स्वीकार करें ।
20वीं पंक्ति में 'कैदियों से जीते'को क्या"कैदियों सी जीतीं" होना मुनासिब होगा ?
इसी तरह 24वीं पंक्ति में'बीती हुई ज़माने'को"बीते हुए ज़माने" करना उचित होगा क्या ?
Comment by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 4:10pm

आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' jee   ... प्रस्तुति के भावों को  पने मनोहारी शब्दों से अलंकृत करने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 1, 2016 at 3:09pm
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
32 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service