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तरही ग़ज़ल/सतविन्द्र कुमार

बह्र :2212  2212  2212  2212

खलती रही अब तक हमें जिस साज की आवाज़ ही
अब कान में घुलती हुई अपनी तरफ हैं खींचती।


अब खा रहे हैं काग वो खाना किसी के श्राद्ध में
आते नहीं इंसान को गुरबत में जिसके ख़्वाब भी।

जो बेचते हैं भूख जनता को दिखा कर रोटियां
वो खुद सियासत में मजे से खा रहे हैं शीरनी।


दीपक बिकें तो फिर गरीबो का बने त्यौहार कुछ
बिजली से जगमग हो रही चारों तरफ दीपावली।


करके सितम इंसान पर तू जान क्यूँ है छीनता
जेहाद को बदनाम करती है तेरी दीवानगी।


जो मुल्क पर देते रहे हैं जान अपनी शान से
है फख्र के काबिल वही रणबांकुरे, माँ भारती


हो शाद सब आबाद भी राहो में हो नूरे अदब
"जलते रहें  दीपक सदा   क़ाइम रहे ये रौशनी।”


राणा तुम्हें भी हो चला है इश्क उन हालात से
जिसमें नज़र आती सभी को एक बस आवारगी।


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 2, 2016 at 1:19pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।सादर नमन ग़ज़ल प्रयास पर उपस्थित होकर स्नेहिल सराहना के लिए तहे दिल शुक्रिया।मैंने आप लोगों कके सुझाव के अनुसार दुरस्त कर लिया है।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 9:34am

आदरनीय सतविन्द्र भाई , अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाई ! आ. समर भाई से मै भी सहमत हूँ ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 1, 2016 at 8:43pm
आदरणीय समर कबीर साहब प्रयास का अनुमोदन करते हुए सराहना करने के लिए सादर हार्दिक आभार।मार्गदर्शन के लिए भी सादर आभार।मैं दुरुस्त करने निवेदन करूँगा।
Comment by Samar kabeer on October 1, 2016 at 5:33pm
जनाब सतविंदर कुमार'राणा'जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
आख़िरी शैर के ऊला मिसरे में 'उस हालात'की जगह "उन हालात" कर लें ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 30, 2016 at 9:56pm
आदरणीय जयनित भाई जी।सराहना के लिए हार्दिक आभार।आपको प्रयास पसन्द आया।ये सार्थक हुआ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 30, 2016 at 3:39pm
आदरणीय सतविंदर जी, आपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी। हार्दिक धन्यवाद!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 30, 2016 at 11:33am
अनुमोदन कर प्रोत्साहित करने के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय कालीपद प्रसाद् जी।सादर नमन
Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 29, 2016 at 11:04pm

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल है आ. सतविंदर जी |बधाई आपको |

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