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लघुकथा शीर्षक " श्राद्ध "/अर्पणा शर्मा

पितृपक्ष चल रहे थे और नगर के बड़े सेठजी ने अपने पिताजी के श्राद्ध पर एक भव्य आयोजन किया था। 11 पंड़ित मंत्रोच्चार कर सेठजी के पिताजी की तस्वीर को नाना प्रकार के व्यंजन समर्पित कर रहे थे। नाते- रिश्तेदारों के साथ ही बाहर माँगनेवालों और दरिद्रों की भीड़ प्रतीक्षारत थी कि कब भोजन शुरू हो और उनको भी मिले। दान की सामग्री पंड़ाल में एक मेज पर रखी थी जिसे सेठजी का ज्येष्ठ पुत्र संभाल रहा था। अंदर पंड़ित जी ने श्राद्ध की महिमा का बखान करते हुए कहा कि 84 लाख योनियों में जन्म से मुक्ति के लिये विधि विधानपूर्वक श्राद्ध आवश्यक हैं । सेठजी ने हर पंड़ित को कामधेनु गाय का एक-एक चाँदी का प्रतीक दिया । जिसकी पूँछ पकड़ कर वे भवसागर पार करेंगे । बड़ी ही धूमधाम थी।

बाहर उनके ज्येष्ठ पुत्र ने अंदर आने की चेष्टा करते एक सूअर को दो लाठी जमाईं । दर्द से बिलबिलाता वो भागा और बाहर एक कोने में खड़ा पंड़ाल के तोरणद्वार पर लगी, पुष्पमाल सज्जित अपनी तस्वीर को देखकर सजल नयनों से सोचने लगा - " अपने ही पोते के हाथों लाठी खानी पड़ीं, हे ईश्वर, तू मुझे उठा ले...!!!"

ये लघुकथा मेरी सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना है।
- अर्पणा शर्मा

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Comment by Arpana Sharma on October 5, 2016 at 11:17pm

आपकी सराहना का बहुत आभार आदरणीया कल्पना जी 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 9:30pm

बढ़िया कटाक्ष | इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई |

Comment by Arpana Sharma on October 1, 2016 at 11:41am
मेरी कहानी को पसंद करने के लिये आप सभी का बहुत आभार श्रीमान् कालीपद प्रसाद मंड़ल जी, श्रीमान् शेख़ श़हजाद उस्मानी जी एवं श्रीमान् शिज्जू "शकूर "जी
Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 29, 2016 at 11:29pm

आदरणीया अपर्णा जी ,अच्छी लघु कथा है\लोग तो जीवित अवस्था में पुत्र के हाथ से डंडा खा रहे है |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2016 at 12:59am
समसामयिक परिदृश्य पर बढ़िया कटाक्ष युक्त रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीया अपर्णा शर्मा जी।

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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 28, 2016 at 4:32pm
आ. अर्पणा जी संवेदनशील विषय को लेकर आपने एक सार्थक लघुकथा की रचना की है बधाई आपको

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