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बहर : २१२ २१२ २१२ २१२

पेट को चाहिए  खाद्य, नारा नहीं

पेट जितने से भर जाय, सारा नही |

भावना की कमी,  जाँचना चाहिए

भूखे  को चाहिए खाना,चारा नहीं | 

सारे रिश्ते बिगड़ते हैं, तकरार से  

शत्रुवत  और हो जाता  यारा नहीं |

बात है कर्ण प्रिय ,’आयगा अच्छा दिन”

अब किसी को भी यह, लगता प्यारा नहीं |

देख कर ठण्ड वातावरण क्या कहें

पी गए मय मधुर किन्तु प्यारा नहीं |

सिन्धु जल मेघ बन फिर बरसता कहीं

वह अमृत  वारि मीठा है खारा नहीं |   

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 9:57pm

बहुत खुबसूरत  ग़ज़ल हुई है आदरणीय | हार्दिक बधाई |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 26, 2016 at 10:23pm

आदरणीय शिज्जू शकूर और आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आप दोनों बहुत बहुत धन्यवाद | शब्द के लिंग की तरफ ध्यान नहीं गया था |उस पंक्ति को ऐसा कर देता हूँ 

"शत्रुवत और हो जाता, यारा नहीं "


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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2016 at 5:58pm

आदरणीय कालिपद सर यहाँ यारा शब्द के प्रयोग की बात कर रहा हूँ आपके बयान  के अनुसार यहाँ यारी शब्द होना चाहिए जबकि आपने यारा लिखा है

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2016 at 4:38pm
बहुत ही साफ़ तौर पर पते की बातें कही हैं आपने आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी। हां, तीसरे शे'र में गड़बड़ी हुई है जैसा कि मोहतरम जनाब शिज्जु शकूर साहब ने फ़रमाया है। वैसे भी 'दुश्मनी' के साथ 'यारी' सही होता या 'दुश्मन' के साथ 'यारा' !!!
Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 26, 2016 at 4:31pm

आदरणीय शिज्जू शकूर जी ,शुक्रिया हौसला अफजाई  के लिए |  तकरार शब्द है जो उला और सानी मिसरा को  जोड़ता है | तकरार होती है तो रिश्ते बिगड जाते है ,सानी में -तकरार से दुश्मनी हो जाती है ,दोस्ती नहीं | आशा है अब स्पष्ट हुआ होगा | सादर  


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Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2016 at 4:08pm

आ. कालिपद मंडल जी बहर खूब निभाया आपने बधाई, तीसरे शे र में देखिये सानी मिसरे में बात साफ नहीं है 

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