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पकड़कर हाथ राधा का चले जो नूर का बेटा (फिल्बदीह ग़ज़ल 'राज '

पड़े आफ़ात तो छुपता किसी मशहूर का बेटा 
कलेजा शेर का रखता मगर मजदूर का बेटा 

कहीं ऊपर जमीं के उड़ रहा मगरूर का बेटा 
जमीं को चूमता चलता किसी मजबूर का बेटा

कई तलवार बाहर म्यान से आती दिखाई दें  
पकड़कर हाथ राधा का चले  जो नूर का बेटा

सिखाने पर परायों के भरा है जह्र नफरत का 
चला हस्ती मिटाने को कोई अखनूर का बेटा

कदम पीछे हटा लेता जहाँ उसकी जरूरत हो 
हर इक रहबर फ़कत कहने को है जम्हूर का बेटा 

सरापा थाम लेती है तुम्हें अंगूर की बेटी 
अगर होता तो क्या देता तुम्हें अंगूर का बेटा 

हुनर में डूब कर उसके कलम करता ग़ज़ल गोई 
ग़ज़ल में नाम उसका लिख दिया संतूर का बेटा

--------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on August 25, 2016 at 11:07am

आद० गिरिराज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ आपका दिल से शुक्रिया | आपने सही कहा सार्थक चर्चा से सार्थक बातें सामने निकल कर आती हैं |


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Comment by rajesh kumari on August 25, 2016 at 11:05am

आद० दिनेश कुमार जी ,आपको ये शेर पसंद आया भुर भुर शुक्रिया |


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Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 9:44am

आदरनीया राजेश जी , बहुत कठिन रदीफ ले कर आपने बेहतरीन गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको । आ. समर भाई जी से चर्चा भी लाभ प्रद हुआ ! हार्दिक बधाई ।

Comment by दिनेश कुमार on August 25, 2016 at 6:02am
पकड़कर हाथ राधा का चले जो नूर का बेटा.... कमाल का शेर हुआ है। वाह वाह ।
Comment by Samar kabeer on August 24, 2016 at 9:50pm
बहना "अखनूर"की जानकारी देने का शुक्रिया,आपका शैर बहुत उम्दा और जज़्बाती है, बधाई आपको ।

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Comment by rajesh kumari on August 24, 2016 at 7:09pm

बहुत बहुत शुक्रिया आपका भाई जी 

Comment by Samar kabeer on August 24, 2016 at 6:48pm
"तभी तलवार बाहर म्यान से आती दिखाई दे" ये बहतर है बहना ।

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Comment by rajesh kumari on August 24, 2016 at 6:47pm

आद० समर भाई  जी अखनूर एक कश्मीर में शह्र है जहाँ दंगे फसाद होते रहते हैं ये शेर उसी सन्दर्भ में लिया है |सादर 


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Comment by rajesh kumari on August 24, 2016 at 6:13pm

प्रिय प्रतिभा त्रिपाठी जी जार्रनावाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया स्नेह बनाते रखें आभार |


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Comment by rajesh kumari on August 24, 2016 at 6:12pm

आद० समर भाई जी, आपके हर सुझाव का स्वागत है | आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया |१२२२ १२२२ में कई तलवारें कर सकते हैं क्या ?या दूसरा ऑप्शन है तभी तलवार बाहर म्यान से आती दिखाई दे | अब आपका क्या मशविरा है इन्तजार रहेगा भाई जी |

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