For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

थक गए थे जलील चचा, कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था| सबको बस एक ही बात समझ आ रही थी कि बड़ी बड़ी बंदूकें उठाओ और हर उस शख्श को रास्ते से हटा दो जो उनकी बात नहीं माने| पता नहीं ये उन भड़काऊ तकरीरों का असर था या उनके द्वारा दिखाए गए प्रलोभन का असर| आज उनको बेहद अफ़सोस हो रहा था, अपने ऊपर और पत्नी के ऊपर भी जो उनको अकेला छोड़कर जन्नत सिधार गयी थी| काश उनको एक औलाद दे गयी होती तो कम से कम उसे तो सही रास्ते पर चला पाते|
आज शाम की मीटिंग में फिर से सबने उनके शांति और सौहार्द के प्रस्ताव को नकार दिया था| एक नौजवान ने उनकी तरफ काफी हिक़ारत से देखते हुए कहा था "चचा, वो ज़माना लद गया, जब गोली के बदले गुलाब देते थे लोग| आज तो गोली के बदले धमाका करना ही सही तरीका है| हुक्मरानों ने कब शांति के सन्देश को सुना है और पीड़ितों को उनका हक़ बगैर खून खराबे के दिया है"| और फिर उसके समर्थन में बजते हुए तालियों ने उन्हें लोगों के रुख से परिचित करा दिया था| उन्होंने फिर भी कहा कि अगर हम लोग बंदूक नहीं उठायें तो कोई क्यों हमपर हथियार उठाएगा| कुछ नौजवानों ने हँसते हुए कहा "चचा, एक बार सेना के सामने जाकर देख लो, वापस लौटने लायक नहीं रहोगे"|
"ठीक है, कल मैं जाऊंगा सेना के जवानों के सामने| और अगर मुझे कुछ नहीं हुआ तो तुम लोग साथ दोगे मेरा", चचा ने उनकी तरफ देखते हुए पुरे भरोसे से कहा| एक बार तो सब खामोश हो गए, फिर उनको लगा कि चचा ने ऐसे ही कह दिया होगा|
"अगर ऐसा हुआ तो हम वादा करते हैं कि आप की बात मान लेंगे", और फिर सभा से लोग अपने अपने घरों की और चल दिए|
उनकी बस्ती मुख्य सड़क से काफी दूर थी इसलिए कर्फ्यू के बाद भी सेना या पुलिस के जवान वहां नहीं आते थे| फज़र की नमाज़ का वक़्त हो चला था और पूरी रात वो इसी उधेड़बुन में सो नहीं पाये थे| उन्होंने नमाज़ पढ़ी और फिर अपनी दरी और क़ुरआन को हाथ में लेकर मुख्य सड़क की तरफ चल पड़े| दूर से गाड़ियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी और रह रह कर उनसे होने वाले प्रसारण की आवाज़ भी आ रही थी "इलाके में कर्फ्यू लगा है, कृपया अपने अपने घरों में ही रहें और अमन और शांति बहाल करने में मदद करें"| आहिस्ता आहिस्ता वो मुख्य सड़क की और बढ़ रहे थे, मन में ये यकीन था कि उनको कोई क्यूँकर कुछ कहेगा|
जैसे ही वो सड़क पर पहुंचे, सामने से आती गाड़ी रुकी और उसमें से एक गन बाहर निकली| अभी वो फायर करता ही, तब तक बगल के अफसर ने उसे रोक दिया और गाड़ी नज़दीक ले जाने के लिए बोला| चचा ने अपनी दरी वहीँ सड़क पर रखकर उसपर क़ुरआन रख दी और खड़े हो गए| अफसर ने उनकी उम्र देखी और उसे इत्मीनान हो गया कि इनके इरादे गलत नहीं हैं| वो गाड़ी से बाहर उतरा और चचा के पास जाकर डपटते हुए बोला "तुमको पता नहीं है कि कर्फ्यू लगा है, अभी कोई गोली मार देता तुमको| भागो वापस अपनी बस्ती में और दुबारा यहाँ दिखाई मत देना"|
चचा ने एक बार अपने दोनों हाथ ऊपर उठाये और उसे धन्यवाद दिया| फिर धीरे से वो आगे बढे और अफसर के पास जाकर बोले "तुमने मेरा अमन पर भरोसा बरक़रार रखा, मेरी सारी दुआएं तुम्हारे साथ हैं| बस तुम कुछ ऐसी निशानी मुझे दे दो, जिसे वापस जाकर मैं अपने लोगों को दिखा सकूँ और उनको बता सकूँ कि उजाले की लौ जल रही है, बस थोड़े प्रयास की जरुरत है"|
अफसर ने उनको गौर से देखा और उनपर यकीन न कर सक्ने का कोई कारण उसे नहीं समझ आया| उसने अपनी टोपी उतारी और उसमें अपने जेब से सफ़ेद रुमाल निकालकर डालते हुए चचा की और बढ़ाया| अपने हाथ में उसने चचा का हाथ पकड़ा और कुछ न कहते हुए भी उसने उनसे सब कुछ कह दिया| बदले में चचा ने अपनी क़ुरआन उसे पकड़ाई और मुस्कुराते हुए वापस मुड़ गए| उनके क़दमों में गज़ब का जोश आ गया था और वो अब एक पल भी गंवाए बिना अपनी बस्ती में लौट जाना चाहते थे| उस अफसर ने क़ुरआन को एक बार दिल से लगाया और अमन की दुआ करते वापस गाड़ी में बैठ गया| गाड़ी एक बार फिर मुख्य सड़क पर सायरन बजाते आगे बढ़ गयी|
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 572

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 25, 2016 at 12:53am

बहुत बहुत आभार आ शुभ्रांशुजी, ऐसी हिम्मत बहुत कम लोग ही उठा पाते हैं 

Comment by Shubhranshu Pandey on July 24, 2016 at 11:06pm

आदरणीय विनय जी. बहुत सुन्दर कथा कही है, आपने एक ऎसा मुद्दा उठाया है जिसे चाहते तो सब हैं लेकिन पहल करने में सभी पीछे हट जाते हैं या जलील चचा की तरह हिम्मती नहीं होते हैं. सादर.

Comment by विनय कुमार on July 22, 2016 at 8:20pm

बहुत बहुत आभार आ अशोक कुमार रक्ताले जी 

Comment by विनय कुमार on July 22, 2016 at 8:19pm

बहुत बहुत आभार आ मनोज कुमार एहसास जी

Comment by विनय कुमार on July 22, 2016 at 8:19pm

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 19, 2016 at 7:23am

अमन का सन्देश देती सुंदर लघुकथा. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय विनय कुमार सिंह जी. सादर.

Comment by मनोज अहसास on July 18, 2016 at 3:43pm
बहुत बढ़िया
सन्देश देती लघुकथा
मैं आपको बहुत बहुत बधाई देता हूँ
सलाम करता हूँ
सादर प्रणाम
Comment by TEJ VEER SINGH on July 18, 2016 at 11:14am

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी!बहुत शानदार प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service