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ऐसे लूटा गया साँवला कोयला (ग़ज़ल)

बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२

 

था हरा औ’ भरा साँवला कोयला

हाँ कभी पेड़ था, साँवला कोयला

 

वक्त से जंग लड़ता रहा रात दिन

इसलिए हो गया साँवला, कोयला

 

चन्द हीरे चमकते रहें इसलिये

जिन्दगी भर जला साँवला कोयला

 

खा के ठंडी हवा जेठ भर हम जिये

जल के विद्युत बना साँवला कोयला

 

हाथ सेंका किये हम सभी ठंड भर

और जलता रहा साँवला कोयला

 

चंद वर्षों में ये ख़त्म होने को है

ऐसे लूटा गया साँवला कोयला

------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 8, 2016 at 10:21am

आदरणीय आशुतोष जी, इस स्नेह का मैं हक़दार हूँ या नहीं ये तो पता नहीं पर इसके लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 30, 2016 at 10:08am

आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी इस ग़ज़ल से आपने जहाँ एक और अद्भुत सन्देश दिया है वही इस ग़ज़ल में आपकी सोच सीधे दिल में जगह बनाती है ..आपकी तारीफ़ के लिए मैं शब्दहीन हूँ .कमाल की इस रचना पर ढेर सारी शुभकामनायें स्वीकार करें सादर बधाई के साथ

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2016 at 9:55am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2016 at 9:55am

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय सूर्या बाली साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2016 at 9:54am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील सरना जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2016 at 9:54am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय हर्ष महाजन जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2016 at 9:53am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेश कुमार जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2016 at 9:53am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय महेन्द्र कुमार जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2016 at 9:53am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 10:46am

आदरणीय धर्मेंद्र भाई , लाजवाब रदीफ और लाजवाब जज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

वक्त से जंग लड़ता रहा रात दिन

इसलिए हो गया साँवला, कोयला   --  इस हासिले गज़ल शेर के लिये बहुत बधाई ।

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