For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) - 8

.............................. कल से आगे

‘‘महाराज थोड़ा सा राजभोग और लीजिये, मैंने अपने हाथों से बनाया है।’’ कैकेयी ने अनुरोध किया।
दशरथ और कौशल्या भोजन पीठिकाओं पर बैठे थे। कैकेयी परोस रही थी। दासियाँ पीछे हाथ बाँधे खड़ी थीं।
‘‘नहीं महारानी बहुत हो गया। अब नहीं खा पाऊँगा।’’
‘‘बहुत कैसे हो गया। थोड़ा सा तो लेना ही पड़ेगा।’’ कैकेयी ने जबरदस्ती राजभोग की एक कटोरी और रखते हुये कहा।
‘‘ले भी लीजिये न महाराज। आप तो राजभोग का ढाई सेर का पतीला एक साँस में खाली कर डालते थे और फिर भी तृप्त नहीं होते थे। क्या हो गया है आपको, भूख बिलकुल मर सी गयी है। ऐसे कैसे चलेगा ?’’ कौशल्या ने भी कैकेयी का समर्थन किया।
‘‘हाँ जीजी ! आप ही बताइये ऐसे कैसे चलेगा ? पूरे राज्य का भार महाराज पर ही तो है। ये ही यदि ऐसे दुर्बल हो जायेंगे तो क्या होगा अयोध्या का ? क्या होगा हमारा ?’’
‘‘क्या करूँ अन्दर से मन ही नहीं होता। भूख मर सी गयी है। जबरदस्ती का खाया हुआ शरीर को पुष्टि नहीं देता कष्ट ही देता है।’’ दशरथ की आँखें गीली हो गयी थीं।
‘‘अरे महाराज दिल हल्का क्यों करते हैं ? कोई विशेष समस्या है ?’’ दशरथ की आँखें गीली होती देखकर कौशल्या की आँखें भी भर आईं।
‘‘जाओ तुम लोग।’’ हाथ में पकड़ा हुआ पात्र दासी को पकड़ाते हुये कैकयी ने सभी दासियों को जाने का निर्देश दिया और फिर राजकीय मर्यादा का विचार त्याग कर वहीं नीचे फर्श पर बैठ गयी।
‘‘महाराज ! महाराज ! ऐसे व्यथित होना तो दुर्बलता का लक्षण होता है। अयोध्या का चक्रवर्ती सम्राट ही यदि दुर्बल हो जायेगा तो कैसे चलेगा ! धीरज रखिये।’’ फिर वह पास रखा जल का पात्र उठाते हुये बोली ‘‘लीजिये हाथ धो लीजिये फिर आइये कक्ष में चलें।’’
दशरथ और कौशल्या दोनों ने हाथ धोये और फिर तीनों कक्ष में आ गये।
‘‘महाराज मैं देख रही हूँ इधर आपका चित्त अशांत सा रहता है। आप राजकीय व्यवस्था में भी मन नहीं लगाते।’’ कैकेयी ने महाराज के पर्यंक पर बैठते ही बात आगे बढ़ाई।
‘‘प्रयास तो करता हूँ महारानी, किंतु अशांत चित्त से क्या कोई कार्य सहजता से हो पाता है ?’’
‘‘किंतु महाराज ! जो कष्ट है वह तो हम तीनों को ही समान है। हम तो देखिये स्वयं को अन्य चीजों में बहला लेती हैं। आप भी प्रयास कीजिये।’’ कौशल्या ने कहा।
‘‘नहीं होता ! लाख प्रयास करता हूँ पर नहीं होता। धीरे-धीरे वयस व्यतीत हो रही है।’’
‘‘अभी कहाँ वयस व्यतीत हो रही है ? अभी तो पैंतालीस के भी नहीं हुये आप।’’ कौशल्या ने कहा।
‘‘हाँ ! आर्यावर्त के सम्राट तो अस्सी वर्ष तक युवा ही रहते हैं। अनगिनत उदाहरण हैं इसके। और आप अभी से निराश होने लगे।’’ कैकेयी ने माहौल की बोझिलता को कम करने का प्रयास करते हुये कौशल्या की बात पूरी की।
दशरथ कुछ नहीं बोले।
‘‘अच्छा महाराज महामात्य काशीनरेश के किसी प्रस्ताव के बारे में बात कर रहे थे। हमें बताया ही नहीं आपने ?’’ इस बार कैकेयी ने उपालंभ सा देते हुये कहा।
‘‘क्या फायदा है महारानी। आपका जीवन तो हम बरबाद कर ही चुके, अब पुत्री की आयु की किसी दूसरी कन्या का जीवन पुनः बरबाद करने का पाप नहीं कर सकते हम।’’
‘‘कैसा प्रस्ताव है कैकेयी, मुझे भी तो बताओ।’’ कौशल्या ने जिज्ञासावश पूछा।
‘‘जीजी ! काशी नरेश ने अपनी पुत्री सुमित्रा के विवाह का प्रस्ताव भेजा है।’’
‘‘तो महाराज स्वीकृति भेज क्यों नहीं देते ? संभव है जो सौभाग्य हम दोनों को प्राप्त नहीं हो सका वह सुमित्रा को प्राप्त हो जाये।’’
‘‘नहीं महारानी ! जब हमारा भाग्य ही खोटा है तो हम किसी दूसरी का भाग्य कैसे सँवार सकते हैं ?’’
‘‘किसने कह दिया कि आप का भाग्य खोटा है ?’’
‘‘समाप्त कीजिये इस विषय को अब आप लोग।’’
‘‘नहीं महाराज ! आप इस तरह भाग नहीं सकते।’’
‘‘इसे राजाज्ञा समझिये महारानी ! हमें इस विषय में कोई बात नहीं करनी।’’
‘‘महाराज ऐसे हताश क्यों होते हैं ? राजगुरु ने आपको चार पुत्रों का योग बताया है। राजगुरु की ज्योतिष झूठी तो नहीं हो सकती।’’
‘‘इस बार तो झूठी होती ही लग रही है।’’ महाराज ने अनमने भाव से कहा।
‘‘अच्छा रहने दो कैकेयी अभी। महाराज को विश्राम करने दो।’’ कौशल्या ने कहा।
‘‘हाँ ! थोड़ी देर के लिये मुझे एकान्त में छोड़ दें आप लोग।’’
दोनों रानियों ने उस समय बात समाप्त कर दी और बाहर निकल गयीं। किंतु बात समाप्त नहीं हुई थी। रानियों के कई दिनों के प्रयास के बाद अन्ततः महाराज को झुकना ही पड़ा।

क्रमश: ...........

मौलिक एवं अप्रकाशित

- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on June 29, 2016 at 9:10am

आदरणीय !
सामी जी ने अपने उपन्यास ‘लंकेश्वर’ में ऐसा ही माना है जैसा आप कह रहे हैं। उनकी जानकारी का आधार क्या रहा है मुझे नहीं पता किंतु उसके अलावा सब कहीं कैकेयी ही मंझली रानी बताई गयी हैं। मैंने अपनी इस कथा में वाल्मीकि रामायण को ही आधार के रूप में रखा है और उसमें भी कैकेयी मंझली रानी और सुमित्रा छोटी रानी के रूप में वर्णित हैं। तुलसीदास ने भी यही माना है। अध्यात्म रामायण में भी यही माना गया है।

Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on June 28, 2016 at 11:35am

आदरणीय सुलभ जी  
आपका राम-रावण कथा अंक पढ़ा,रोचकताबरकरार है किंतु मेरी जानकारी के अनुसार केकेयी राजा दशरथ की तीसरी और सबसे छोटी रानी थीसुमित्रा मझलीऔर कौशल्या सबसे बड़ी रानी थी .कृपया मेरी संदेह दूर करें.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service