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कुण्डलिया

[१]

साज़िश की ही बात में, बहके नित्य सुगंध.
फूलों से कहते रहे, बस तुमसे सम्बंध.
बस तुमसे सम्बंध, नहीं भौरों से रिश्ता.
पीकर वह मकरंद, चंद्र को समझे पिस्ता.
नित्य प्रभा का लाल, सृष्टि की करता पालिश.
मगर दिवा अवसान, रात्रि मिल रचती साजिश.


[२]

आंखों के आंसू बहे, जैसे गंगा नीर.
अधरों ने झट पी लिये, जैसे पियें फकीर.
जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.
औरों का सुख देख, स्वयं ही दुख पी जाते.
कहतीं नदिया ताल, सदा सबका मन राखो.
दीन - हीन संसार, देखता है इन आंखो.


मौलिक व अप्रकाशित
रचनाकार ..... केवल प्रसाद सत्यम

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2016 at 9:50am

आ० भण्डारी भाई जी, कट -पेस्ट करने में ऐसी गल्तियां हो ही जाती हैं...अब सुधार कर लिया है.  जी, ''मालिश'' की तुकांतता से सहमति प्रकट करने के लिया आपका तहेदिल से शुक्रिया.  सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2016 at 9:45am

आ० रक्ताले भाई जी,  आपकी कोशिश बहुत अच्छी  है...आपने रचना पर अधिक ध्यान दिया जिसके लिये आपका आभार....////फूलों से कहते रहे....... कहते या कहती //...द्वितीय छंद में //जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.//.........यहाँ सम विषम चरणों का मेल देख लें,//राखो /आँखों .......तुक जांच लें//////  

यह बात आपने किस आधार पर कही....सम-विषम किसे कहते हैं?...उसका निर्वहन किस प्रकार किया जाता है?.....कुण्डलिया.. रचना के शब्द सन्योजन की प्रक्रिया किस प्रकार की जाती है? आप पुन: बारीकी से पढ़े..और स्वयं भी अम्ल करें.....फिर बतायें..कि क्या होना  चाहिये ?...सादर


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 9:34am

आ. केवल भाई , आपने दूसरी प्रतिक्रिया जो मेरे नाम से दीहै , उसमे शायद आप किसी और को सम्बोधित है , नाम सुधार लीजिये नही तो उन तक आपनी बात नही पहुँचेगी ।

मालिश सच मे अच्छा तुकांत हो सकता है । आप वही कर लें। सादर ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2016 at 8:55am

आ० भण्डारी भाई जी,  आपकी कोशिश बहुत अच्छी  है...आपने रचना पर अधिक ध्यान दिया जिसके लिये आपका आभार....कोशिश ..से अच्छा या बेहतर तुकांत..मालिस... भी हो सकता है...सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 27, 2016 at 8:05am

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, अच्छे कुण्डलिया छंद रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई. फिरभी कुछ जगह एक बार देख लें. पहले छंद में //फूलों से कहते रहे....... कहते या कहती //./////द्वितीय छंद में //जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.//.........यहाँ सम विषम चरणों का मेल देख लें,//राखो /आँखों .......तुक जांच लें//सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 27, 2016 at 7:04am

आदरणीय ये कैसा रहेगा -- छंदों मे अल्पज्ञ हूँ , फिर भी एक प्रयास किया है ।

नित्य प्रभा का लाल,   दीप्ति की करता कोशिश

मगर दिवा अवसान, रात्रि मिल रचती साजिश

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2016 at 9:23pm
आ० भण्डारी भाई जी, सादर प्रणाम! आपको कुण्डलिया आपको अच्छी लगी. यूं ही स्नेह बनाये रखे. भाई जी साजिश के तुकांत में मक्खन नहीं चल सकता इसलिए आम भाषा का स्तेमाल किया है..//पालिश शब्द का उपयोग सही है क़्या ?// के सम्बंध में आप सुधी जन ही बता सकेंगे...क्या उचित होगा.?./ आपका हार्दिक आभार. सादर्
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2016 at 9:22pm
आ० भण्डारी भाई जी, सादर प्रणाम! आपको कुण्डलिया आपको अच्छी लगी. यूं ही स्नेह बनाये रखे. भाई जी साजिश के तुकांत में मक्खन नहीं चल सकता इसलिए आम भाषा का स्तेमाल किया है..//पालिश शब्द का उपयोग सही है क़्या ?// के सम्बंध में आप सुधी जन ही बता सकेंगे...क्या उचित होगा.?./ आपका हार्दिक आभार. सादर्
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2016 at 9:17pm
आ० सतविंद्र भाई जी, सादर प्रणाम! आपको कुण्डलिया आपको अच्छी लगी. मेरा प्रयास सफल रहा इस हेतु आपका हार्दिक आभार. सादर्
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 26, 2016 at 9:15pm
आ० श्याम नारायण भाई जी, सादर प्रणाम! आपको कुण्डलिया आपको अच्छी लगी. आपका हार्दिक आभार. सादर्

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