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ओबीओ लाईव लघुकथा गोष्ठी अंक-14 में स्वीकृत सभी रचनाएँ

(1). श्री प्रदीप नील वसिष्ठ जी

सच्चा प्रमाण-पत्र


” तुम यहीं रूको मैं इसका मैडीकल बनवा कर अभी आता हूं । समझे? “ वह लड़की की बांह पकड़े खड़ा था । 
”मैं फिर पूछता हूं झूठे मैडीकल से कल को कोई चक्र तो नहीं पड़ेगा?“ नीली पगड़ी के माथे पर परेशानी की दो लकीरें खिंच आई थीं । 
” मूर्खता क्यों करते हो ? इतनी जान-पहचाम तो मेरी है ही कि तुम्हारा कुछ न बिगड़ने दूं ।“ कह कर उसने सहमी हुई लड़की को अन्दर धकेला था । फिर खुद भी अन्दर घुस कर उसने किवाड़ बन्द कर लिए । नीली पगड़ी बाहर बैठ कर हाथ मलने लगी ।
अन्दर स्टेथोस्कोप ने उठ कर हाथ मिलाते हुए कहा था ” कैसे दर्शन दिए, मेरे हुज़ूर ? “
खादी ने कुर्सी पर पसरते हुए कहा था ” इस लड़की का सर्टिफिकेट बना कर दे दो कि इसके साथ ज़्यादती हुई है । “
” क्या सचमुच ही ज्यादती हुई है ? “ स्टेथोस्कोप लालची निगाहों से घूरने लगा, लड़की को । 
” अरे नहीं यार । इसके बाप का केस अदालत में चल रहा है । विरोधी पक्ष को सात साल के लिए अन्दर करवाने का यही एक रास्ता बचा है जो मैंने सुझाया है । “ खादी ने ठहाका लगाया था ।
” पर, जब इसके साथ...“
” डरते क्यों हो, यार ? इलाके की खाकी तो मेरी जेब में है । “
” पर अदालत ने कहीं और से इसका चैक- अप करा लिया तो ? नकली सर्टिफिकेट के चक्कर में मैं तो अन्दर जाऊंगा ही, यह लड़की भी । “
” सच्चा प्रमाण-पत्र तो दे ही दोगे, न ? “
” क्यों नहीं ? उसमें क्या दिक्कत है ? “
खादी ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा था ” तो ठीक है, तुम प्रमाण-पत्र बनाना शुरू करो तब तक मैं...“
और लड़की यह सुन कर बेहोश हो गई थी ।

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(2). सुश्री नयना(आरती)कानिटकर जी

हलवे का घी

माँ से बिछडने का गम उसे अन्दर तक साल रहा थाबरसों से तरह-तरह की बीमारियो ने उन्हे जकड रखा थाI लेकिन साथ ही  कहीं ना कहीं उसे इस बात का संतोष अवश्य था कि अंतत:उनको कष्टों से छुटकारा मिल गयाI

उनके कमरे के सामने से गुजरते बरबस आँखे भर आईIअब गठरिया कौन सहेजेगा ,मकई का आटा,मूँग बडी,नींबू अचार , कितना कुछ होता ,अपने आँचल से कोरों को पोछने हुई  कि भाभी ने आवाज लगाई

"आ जाओ  बहना! खाना तैयार है. दामाद जी वापसी की जल्दी मचा रहे है। आओ! आज सब कुछ तुम्हारी पसंद का बनाया हैं. पुलाव, भरमा बैंगन, आटे-गुड का तर घी हलवा"

किंतु उसकी जिव्हा तो चिरपरिचित स्वाद के लिये व्याकुल थी

"अरे! चलो भी देर हो रही है जी मुझे दफ़्तर भी जाना है."

देहरी पार कर कार मे बैठने को हुई तो भैया ने हस्ताक्षर के लिये कागज आगे कर दिए। भरे नेत्रो से बस "स्नेह" ही लिख पाई कि...

कार अपने मंजिल को निकल पडी

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(3). सुश्री रीता गुप्ता जी

ग़लतफ़हमी

 

मृत्युशैया पर पड़े महापंडित रावण ने विभीषण की तरफ घृणा से देखते हुए कहा,
"कुलघाती तुमने दुश्मन के साथ षड्यंत्र रच मुझे धराशाही कर दिया".
" भैया मैंने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है",
स्वर्ण नगरी का भावी अधिपति ने विनम्रता से करबद्ध उत्तर दिया.

"रे कुल नाशक, आने वाली पीढ़ियाँ तुम्हे माफ़ नहीं करेगी और अपने पुत्र का नाम कभी कोई विभीषण नहीं रखेगा",
यमद्वार उन्मुख दशानन ने अनुज को कोसते हुए कहा.

"मैंने देश हित में श्री राम से संधि किया न कि षड्यंत्र रचा. मुझे कुल नाशक सुनना मंजूर है पर "देश-द्रोही" कदापि नहीं. मैंने भाई-भतीजावाद से परे देशहित का सोचा. मेरा देश अक्षुण रह गया और देवाशीष पा अमरत्व भी पा गया ",

सजल नयनों से विभीषण ने अपनी आखरी सफाई देनी चाही परन्तु तब तक स्वार्थ और अहंकार ने महापंडित की सारी पंडिताई को धता बताते हुए प्राणों का हरण कर लिया था. अग्रज की निष्प्राण-ठठरी सन्मुख विभीषण किमकर्तव्यविमूढ़ हो काल की गति समक्ष अबूझ ही रह गए.

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(4). श्री मनन कुमार सिंह जी

गुलामी


-......नहीं, भला क्यों लगायेंगे दुश्मन-देश के पक्ष में नारे?
-छोड़िये न इतना भर से देश-द्रोह मुकम्मिल नहीं होता।
-दीगर बात हुई।पर एेसे नारों की जरूरत ही क्या है?
-कहने की आजादी का नाम दे रहे हैं सब।
-भला यह भी कोई आजादी की बात है? जोश में अपना देश मुर्दाबाद भी हो गया,छि: छि:।
-सो तो है।ये कुछ स्वतंत्र विचारधारा के लोग हैं।
-तो हम कौन परतंत्र विचार वाले हैं कि भारत माता की जय बोलते रह गये,बोलते रहेंगे भी .....।
-असल में वे लोग देश में व्याप्त बेरोजगारी,भुखमरी इत्यादि से मुक्ति चाहते हैं।
-तो क्या 'हिंदुस्तान मुर्दाबाद', अन्य जिंदाबाद कहने से इन सबसे छुटकारा मिलेगा? कि और अव्यवस्था फैलेगी?जरा बताओ तो, मीनू।
-दादाजी, कहते तो आप बिलकुल सही हैं।हमलोगों ने विरोध किया भी था, पर संगठन का एक धड़ा उधर हो गया।
-कौन? एक धड़ा?
-हाँ, वे सब कई वर्षों से यूनिवर्सिटी में जमे हैं ।उनके बाहर के दोस्त भी हैं जिनका अब यूनिवर्सिटी से कुछ लेना-देना नहीं है।
-फिर उनका वहाँ क्या काम?
-यही तो बात है ,दादाजी। वहाँ की गतिविधियों में उनकी ही चलती है ...जब कहें तो क्लास चले,न कहें तो सस्पेंड।जैसे अभी पढ़ाई ठप्प है वहाँ।मुद्दे तो रेडिमेड मिल जाते हैं।
-और यूनिवर्सिटी प्रशासन? कुछ करता क्यों नहीं?
- करता है दादाजी .....बहुत कुछ करता है। (अ)सहिष्णुता,सेक्युलरिज्म आदि से तालमेल कर यथास्थिति बरकरार रखता है।
-और इन दशभक्तों का भरण-पोषण होता रहता है, यही न?
-जी।
-मीनू, अपना हिंदुस्तान पहले ही ऐसे कारणों से बहुत झेल चुका है। सदियों के दर्द का इतिहास है हमारा,दर्द देने का नहीं,सहने का।हमने यातना झेली है।अपने लोग ही कारक रहे हैं।अंग्रेज या उनके पूर्ववर्त्ती तो हमारी दुरभि युक्त देशभक्ति के कर्म रहे जिन्हें हम भुगतते रहे।
-तब की परिस्थिति अलग थी न ?
-समस्याएँ कमोबेश हमेशा रही हैं,मीनू।हाँ,उनसे निपटने का गुर पता रहना चाहिए।तब भी हम बँटे रहे, रियासतें आपस में लड़ती रहीं।एक-दूसरे को नीचा दिखाने के दाँव- पेंच चलते रहे ।
-फिर क्या हुआ दादाजी?
-फिर बाहरी लुटेरे आते रहे,हिंदुस्तान लुटता रहा, हम देखते रहे। फिर कुछ व्यापार करने आये और हमारे शासक बन गये। ह म परस्पर पगड़ियाँ उछालते रहे।
-तो दादाजी, पहले भी एेसा ही हाल था,नहीं?
-हाँ बेटा, तभी न हिंदुस्तान को गुलाम बनाने के लिये कुछ खास लड़ाई नहीं लड़नी पड़ी किसीको।
-ओह.....मीनू की आँखें भर आयीं।
-और बेटा, जब अंगरेजों ने यहाँ के एक राजा को बंदी बनाकर उसका जुलूस निकाला तो यहाँ के लोग तमाशा देखकर ताली बजा रहे थे।
-दादाजी, अपने देश की लंबी गुलामी के पीछे आपसी वैर-भाव और षड्यंत्र की भूमिका अहम बतायी बतायी जाती है।
-हाँ मीनू, वही तो.........बूढ़ी आँखें बोझिल हो गयीं ।

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(5). सुश्री जानकी वाही जी

ज़र जोरू और ज़मीन

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 अँधियारी रात में नागिन सी सड़कों पर असंख्य बिजलियाँ दौड़ रही हैं।दोनों ख़ामोशी से ये मंज़र देख रहे हैं।एक की आँखों में निर्मलता के साथ सौम्यता झलक रही है पर दूसरे की आँखों में लपलपाती कुटिल चमक को गहरी कालिमा भी छुपा नहीं पा रही है।
इंसान को इतनी तरक्की करते देख दिल को बड़ा सुक़ून मिलता है।ईश्वर की ये अनुपम कृति हैलाज़वाब।" सौम्य आँखों वाले फ़रिश्ते ने गहरी तुष्टि व्यक्त करते हुए कहा।
दूसरा मुस्कुरायाकितना भी चमत्कार कर ले तुम्हारा इंसान?रहेगा मेरे काबू में ही।मैने अपने जहरीले नाख़ून उसके दिलोदिमाग पर गहराई से गड़ा रखे हैं। यूँहीं हर कोई मुझे शैतान नहीं कहता?"
मुझे भरोसा है इस हाड़ माँस के पुतले पर। तुम चाहे कितनी भी कोशिश कर लो।बुराई इसको छू तक नहीं पायेगी।"फ़रिश्ते की आवाज़ में उम्मीद थी।
हज़ारों लाखों साल हो गये तुम्हें ख्याली पुलाव बनाते हुए।कई सभ्यताएं आई और मिट गई।क्या तुम्हारे इस पुतले का लालच खत्म हुआ? "
जानता हूँ पर हर बार निकल आता है तृष्णा के जाल से।"
"
इंसान की कोई भी क़ौम हो।कोई भी नस्ल हो। कैसा भी रंग रूप हो।ये साज़िशें बुनते रहेंगे ये तो तुम मुझसे बेहतर जानते हो?"
वो भला किस लिए ?" फ़रिश्ते की आवाज़ में निश्छलता थी।
ज़र,जोरू,और ज़मीन के लिए। ... ये कह छलावे से भरी मुस्कान के साथ शैतान अँधेरे में विलीन हो गया।

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(6). श्री तेजवीर सिंह जी

मेरी भोली माँ

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सुजाता गर्भ से थी!उसकी सासु माँ  उसे बार बार भ्रूण  परीक्षण के लिये उकसा रही थी! उनका मानना था कि इससे बच्चे के लिंग के अलावा बच्चे के स्वास्थ्य और पूर्णता के बारे में भी जानकारी मिलती है! सुजाता टालमटोल कर रही थी! फिर  जब  उसके पति ने भी अपनी माँ  के सुर में सुर मिलाया तो मन मार कर सुजाता को राज़ी होना पडा!

दोपहर में लेटे लेटे, सुजाता की आंख लग गयी!

"माँ, तू कितनी भोली है, फिर  वही भूल करने जा रही है"!

"कौन हो तुम और कौन सी भूल की बात कर रही हो"!

"माँ, मैं तेरी कोख में पल रही तेरी बेटी हूं"!

"मेरी बेटी , क्या कह रही हो तुम, मैं कुछ समझ नहीं पा रही"!

"पिछली साल भी मैं तुम्हारे गर्भ में आई थी! तुम्हारी सासुजी ने जाँच के बहाने लिंग परीक्षण कराया था! उनको यह पता लग गया था कि तुम्हारे गर्भ में कन्या है तो धोखे से तुम्हारे दूध में गर्भपात की दवा देती रहीं, और मुझे नष्ट कर दिया! अब फिर  वही कहानी दोहराई जायेगी"!

सुजाता की आंख खुल गयी! सपने की बातों से वह सिहर गयी, पिछले साल की घटना चलचित्र की तरह उसकी आंखों में घूम गयी! उसने अपने  उदर पर हाथ फिरा  कर, गर्भस्थ शिशु को सहलाया और उसे आश्वस्त किया कि इस बार वह  अपनी बच्ची के साथ कोई साज़िश नहीं होने देगी!

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(7). श्री पवन जैन जी

चैम्पियन

दौड़ शुरू ही होने वाली थी ,तभी सरिता की एक सहेली ने आकर पूंछा - 
"सरिता क्या तेरे पैर में चोट लगी है?"
"नहीं तो।"
"घुटने के पास दबाते हुए, इधर, इधर देख तुझे दर्द नहीं होता।"
"नहीं तो।"
"जरुर कुछ गड़बड़ है, तुम्हें दर्द भी नहीं हो रहा।"
"नहीं तो।"
"क्या नहीं तो,नहीं तो,लगा रखा है,यह घुटने के नीचे देख नील सा पड़ गया है, पांव चला के देख।"
"ठीक तो है।"
तभी दूसरी सहेली ने पूछा, "क्या हो गया सरिता?"
"कुछ भी तो नहीं।"
"तू ग्राउण्ड पर कुछ लंगड़ा रही थी, मैं तो तुरंत बोलने वाली थी।"
"नहीं मुझे कुछ नहीं हुआ है।"
"अच्छा खड़े होकर देख, थोड़ा वजन डाल इस दाहिने पैर पर।"
"हाँ,कुछ लग तो रहा है।"
"तूं बिल्कुल सीरियस नहीं है,अपने शरीर के प्रति,बस एक ही धुन।"
सब देख-सुन रही तीसरी सहेली भी आ पहुंची "यह क्या भीड़ लगा रखी है ,क्या हुआ हमारी चैम्पियन को।"
"घुटने में कुछ समस्या है, लगता है चिकनाई कम हो गई है।"
"अरे, सरिता, थोड़ा दौड़ के तो बता।"
सरिता उठी - "आह ,कुछ दर्द सा तो हो रहा है।"

प्रतियोगिता प्रारंभ होने की सीटी बजी,
"आह, आउच, मैं नहीं दौड़ पाऊंगी, इस साल भाग नहीं ले पाऊंगी।" 
सरिता की तीनो सहेलियों की नजरें एक दूसरे से मिलीं और कुटिल मुस्कान समेंटती खुश हो, जा रही उसे अकेला छोड़ कर।

हड़बड़ा कर चादर फैंक ,उठ बैठी सरिता।

नहीं, मैं कमजोर नहीं हो सकती, मैं ही चैम्पियन हूँ और रहूँगी।

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(8). सुश्री प्रतिभा पाण्डेय जी

चिंतामणि

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चिंतामणि की नजरें  बाहर दरवाज़े पर टिकी  थीं Iपत्नी की लायी चाय को उसने बगल में स्टूल में सरका दिया थाI

पत्नी और साली  निशा का जोर जोर से बोलना  और हँसना उसे असहज कर रहा था I

“आपकी चाय ऐसे ही रखी है ,पी क्यों नहीं ?”

“खाली पेट खून की जांच करवानी है I अभी आता होगा लैब वाला”I पत्नी की सवालिया नज़रों से बचने के लिए वो फोन में उँगलियाँ  फिराने लगा था I

“पिछले हफ्ते ही तो करवाई थी दो जगह से जाँच I ,सब ठीक ही निकला था I ,अपने डॉक्टर साहब ने भी  आपको अच्छी  तरह देख लिया था I अब फिर से जाँच क्यों  ?” निशा भी बहन के पास आकर खड़ी हो गई थीI

“हाँ हाँi पर वो दोनों लैब यहीं पर करती हैं जांच और ये वाली  दिल्ली भेजती है सैंपल I  मैंने एक दूसरे डॉक्टर को भी दिखा दिया था I उन्होंने ही कहा कि इस लैब में जांच करवाओ” I  उसे गुस्सा आ रहा था कि क्यों उन दोनों को सफाई देनी पड़ रही हैI

“मिलीभगत चल रही है आजकल दवा कंपनी ,लैब और कुछ  डॉक्टरों के बीच जीजा जी I आप भी लग रहा है फंस रहे हो ऐसे ही किसी जाल में “I

“ऐसा कुछ नहीं है I मै भी इन्टरनेट से जानकारी लेता रहता हूँ “I‘’

“वो भी एक भागीदार ही है इस साजिश काI डरा डरा कर शिकार को घेर कर लाने की जिम्मेदारी उसी की तो है “I

सही नब्ज़ पर हाथ रख दिया था निशा ने उसकी I इन्टरनेट में बीमारियों के बारे में पढ़कर ही  वो वहम पालने लगा था पिछले कुछ दिनों सेI

“ मेरे लिए दूसरी चाय बना लाओ प्लीज ” पत्नी  से प्यार से बोला I “ उस लैब वाले को मना कर देता हूँ I  वैसे तुम दोनों कहाँ जाने के लिए तैयार हो ?”

“पापा के यहाँ , पूजा है ना I दादी सौ साल की हो जायेगी कल  I  आपको बताया तो था I,भूल जाते हैं आप आज कल “I पत्नी के लहज़े में प्यार भरा उलाहना था I                                                                    

चिंतामणि का दिल अब फिर डूबने लगा था I दोनों के बाहर जाते ही वो फोन में लग गयाI

“ हलो i यूनीक लैब? ,हाँ , आप पहुँच रहे हैं ना ,ठीक है.. “I फिर  कुछ रुक कर बोला “ एक  बात और पूछनी है, ,क्या आप किसी अच्छे डॉक्टर के बारे में बता सकते हैं ? कुछ मेमोरी  प्रॉब्लम है , मेरा मतलब, चीज़ें भूल जाता हूँ जल्दी” I

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(9). सुश्री राहिला जी

षड्यंत्र

एक युवा विहीन देश के लिये, एक युवाओं से संवृद्ध देश की प्रगति और बढ़ती ताकत लगातार खतरा बनती जा रही थी । उनकी बढ़ती ताकत और विकास में सेंध लगाने के लिये, एक खूफिया मिशन की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी । मिशन पर जाने वाले कमांडो को प्रशिक्षित किया जा रहा था ।
"हम तुम्हें अय्यार (हमशक़ल बहरूपिया)बनाकर वहां के शिक्षा मंत्री के साथ बदल देंगें।"
"लेकिन मुझे वहां करना क्या होगा?"
"ज्यादा कुछ नहीं..बस इस पद का फायदा उठाते हुये, आधुनिक शिक्षा के नाम पर शिक्षा प्रणाली के वो सारे नियम जो वहां की शिक्षा की नींव मजबूत करते है,सभी में बदलाव।जिसके तहत बच्चों को प्राथमिक से माध्यमिक तक बिना रूकावट के कक्षोन्नत करना है । "
"लेकिन चीफ!इससे तो और ज्यादा संख्या में युवा शिक्षित होकर निकलेगें । जिससे हमारी समस्या घटने की जगह और बढ़ जायेगी।"
"हा..हा. .हा..,नहीं बढ़ेगी, ये सब जैसा देखने,सुनने में लग रहा है ना,बिलकुल इसके उलट होगा । इस नियम के चलते कुछ ही बर्षों में वहां युवा तो होंगे लेकिन अल्प शिक्षित, निठल्ले और बेरोजगार आपराधिक प्रवृति के, जो कि अपने ही देश को पोला करेंगें और अप्रत्यक्ष रूप से हमारे लिये काम करेंगें ।" कहते, कहते उस छोटी-छोटी आंखो और चपटी नाक वाले चीफ के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर गई ।
"मैं अभी भी नहीं समझा!"
"बहुत साधारण सी बात है कमांडो! खैरात(भीख)के पैसे हों या कामयाबी, इससे ना कोई अमीर बन सकता है ना काबिल।"

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(10). श्री समर कबीर जी

विश्व रिकॉर्ड

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गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड के नेशनल हेड मनीष विश्नोई जैसे ही मंच पर आये तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका स्वागत हुआ,उन्होंने अपने सारगर्भित, संक्षिप्त उद्बोधन में कहा - "धर्म आस्था अद्ध्यात्म के इस अद्भुत संगम के साथ साथ आज नया विश्व रिकॉर्ड भी बना । एक साथ पाँच हज़ार चार सौ पैंतालीस सफ़ाई कर्मियों ने झाड़ू लगाकर नया कीर्तिमान स्थापित किया । इसके पहले चीन में तीन सौ पचास ,मैक्सिको में एक हज़ार लोगों ने कीर्तिमान बनाया था । पिछले सारे रिकार्ड्स ब्रेक हो गये । शह्र वासियों को बधाई ।"
इसके बाद मनीष विश्नोई जी ने निगम आयुक्त अविनाश लवानिया के चेस्ट पाकेट पर रिकॉर्ड होल्डर का बैज लगाया ,महापौर श्रीमती मीना जोनवाल को दक्षता प्रमाण-पत्र प्रदान किया । कुछ औपचारिकताओं के बाद कार्यक्रम संपन्न हो गया । घंटे भर बाद ही वही सफ़ाई कर्मचारी नारे लगाते हुए हाथों में तख़्तियाँ लिये एक क़तार होकर विरोध प्रदर्शन करते निकले ।ठेकेदार ने उनके साथ ठगी की । थोक बंद कर्मचारियों को बुला लिया ,वैतन मान का भुगतान पिछले एक माह से नहीं किया । हम ठेकेदार और उज्जैन म्युनिस्पल कॉर्पोरेशन कि साज़िश के शिकार हो गये ,उनका प्रदर्शन देख कर एक राहगीर अपने मित्र से बोला - " सफ़ाई कर्मचारी यह क्या जानें कि कुछ विश्व रिकॉर्ड ऐसे भी बनाये जाते हैं ।"

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(11). श्री विनय कुमार सिंह जी

चाल

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"मालिक, आज भी रघुवा काम पर नहीं आया, लगता है उ शहरी बाबू के चक्कर में पड़ गया है| अंदेशा तो ठीक नहीं लगता है", कड़क मूछ वाले भूरा ने थोड़े चिंतित स्वर में कहा|
"हूँ, इ सब के सब इसी तरह बिगड़ने लगे तो काम कौन करेगा खेतों पर| अच्छा ये बताओ कि करता क्या है उ शहरी बाबू"| स्टूल पर उनके पास रखी हुई जलती लालटेन खुद का ही अँधेरा दूर करने में असफल थी|
"कुछ काम तो नहीं करता है, लेकिन किताब कॉपी बहुत है उसके पास| सबको इकठ्ठा करके कुछ तो पढ़ाता है और लोग भी बहुत ध्यान से सुनते हैं उसको", भूरा ने सारा ब्यौरा एक सांस में कह दिया|
मालिक के पेशानी पर बल पड़ गए, ये तो सोचा ही नहीं था उन्होंने| एकदम से उन्हें अपना बेटा याद आ गया, उनको क्या पता था कि पढ़ने के बाद लोगों की मति फिर जाती है, नहीं तो भेजते ही नहीं पढ़ने| जब गाँव वापस आया था तो उनको ही समझाने लगा था कि मजदूरों को उनके काम की वाजिब कीमत मिलनी चाहिए, लोगों के लिए चिकित्सा सेवाएं भी उपलब्ध होनी चाहिए, बच्चों के लिए स्कूल भी खोलना चाहिए| उन्होंने बहुत समझाया था कि सरपंच होने का मतलब ये थोड़े ही है कि सब पैसे इन्हीं लोगों पर उड़ा दिए जाये| लेकिन महीनों की असफ़ल बहस के बाद आखिर वो चला ही गया घर छोड़ कर और आज तक नहीं लौटा|
क्या करें, बेटे को तो कुछ कह नहीं सकते थे लेकिन इसका क्या करें| अगर ये ज्यादा दिन रहा तो पूरा माहौल ही खराब कर देगा और एक फैसला उन्होंने मन ही मन कर लिया|
थोड़ी देर बाद वो उस शहरी बाबू की कुटिया पर पहुंचे, वो बाहर ही खाट पर सो रहा था| वो धीरे से कुटिया के अंदर घुसे और वहां रखी सब किताबों को इकठ्ठा किया| झोले से केरोसिन का गैलन निकालकर उन्होंने किताबों पर डाला और माचिस निकालकर उसमें आग लगा दी| भागते हुए जब वो वापस आ रहे थे तो उन्हें अपने षड्यंत्र में सफलता मिलती नज़र आ रही| उनके जेहन में बेटे का कहा हुआ वाक़्य आज भी ताज़ा था "पिताजी, किताबों को पढ़िए तब समझ आता है कि सही क्या है और गलत क्या"|

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(12). श्री सुधीर द्विवेदी जी

पूर्वोपाय (एहतियात)
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"विभूति जी !" बॉस का उष्ण स्वर गूँजा।
"जी सर" उन्होंने विनम्र प्रत्युत्तर दिया। वे बॉस के अविलम्ब बुलावे पर उनके केबिन में पहुंचे थे और वह युवक ,पहले से ही वहां मौजूद था। उन्हें आया हुआ देख, उसने अचकचा कर फौरन अपना चेहरा दीवार की तरफ़ घुमा लिया।
"देखिए ! आप का स्वास्थ्य तो ठीक रहता नहीं है, तो अब आप ...।" बॉस की बात पूरी होती इससे पूर्व ही वे बोल पड़े "पर सर ! वह नया प्रोजेक्ट...?"
"उसकी चिंता अब आप न कीजिये..। ये हमारे ,नए चीफ़- इंजीनियर सब सम्भाल लेंगे। ...है ,ना.. विविध! ?"
बॉस ने प्रश्न उस युवक की तरफ उछाला तो युवक नें फौरन मौका लपकते हुए, सहमति में सर हिलाया फिर विभूति बाबू की ओर कनखियों से देख कर मुस्कुरा दिया। माज़रा समझ ,उनके चेहरे का सारा खून मानों निचुड़ कर आँखों में भर आया, पर बेबसी में वे कुछ बोल न सके। बोझिल कदमो से वे अपने केबिन की ओर चल दिए।
'मुझे तो बड़े भाई जैसा सम्मान देता आया है और मैंने भी तो इसे अपने छोटे भाई का दर्जा देते हुए काम सिखाया। कैसे मेरे आगे-पीछे ही घूमता रहता था? ,बिल्कुल बच्चे की तरह..।' सोचते हुए अनायास वे मुस्कुरा दिए फ़िर सहसा गंभीर हो उठे ।
'कहीं..?' मारे उलझन के, उनकी भंवे सिकुड़ गयीं थीं पर उनका मन अभी भी, मस्तिष्क की अवहेलना कर रहा था ।
"नही..!! ऐसा नही हो सकता।" बुदबुदाते हुए उन्होंने मन का समर्थन किया । तभी पीछे से ऑफिस के चपरासी ने उन्हें पुकारा "सर ..सर...! बॉस ने आपको फौरन वापस बुलाया है।"
एकबारगी तो उनके मन में आया कि मना कर दे पर कुछ सोचकर ,अनमने, वे वापस चल दिए। झिझकते हुए उन्होंने केबिन में कदम रखा।
बॉस युवक को एक विदेशी क्लाइंट की मशीन की समस्या हल न कर पाने के कारण बुरी तरह लताड़ रहे थे। ज्यूँ ही उस युवक नें उन्हें देखा, क्रोध से बिलबिलाते हुए वह चीख उठा।
"इस मशीन के विषय में मुझे अनजान रख आपनें मेरे ख़िलाफ़ साजिश की है..! मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी। "
उन्होंने फौरन आगे बढ़ कर बॉस से फ़ोन ले लिया और क्लाईंट को मशीन के विषय में समझाने लगे। थोड़ी देर में ही माहौल सहज हो चला।
फ़ोन काट कर बॉस को वापस देने के लिए उन्होंने ज्यूँ ही हाथ आगे बढ़ाया तो बॉस ने मुस्कुरा कर उनका कन्धा थपथपा दिया।
अपनी दाई भंव उचका कर ,कनखियों से युवक की ओर देख ,अब वे मुस्कुरा दिए ।

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(13). सुश्री रश्मि तरीका जी

प्रतिघात

"शिखा जी ,आप का क्लब तो आज कल बहुत ऊँचाइयों को छू रहा है।हमें भी सदस्य बना लीजिये न।"राखी और श्वेता ने बनावटी मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
"मैंने तो तुम दोनों के आने से पूर्व तुम्हारे क्लब को भी इसी मुकाम तक पहुँचा दिया था ,जहाँ आज मेरा नया क्लब है। लेकिन मतलब निकलते ही मुझे तो वहाँ से दूध में से मक्खी की तरह निकाल दिया गया था ।"तल्ख सी आवाज़ में शिखा ने कहा।
"जो हुआ उसे भूल जाइये।हम आपको दुबारा अपने क्लब में लाना चाहते हैं।"मनाने की ग़रज़ से राखी ने साथ लाए पुष्प शिखा जी को भेंट करते हुए कहा।
"अच्छा ..?? फिर वो जो मेरा नाम मिट्टी में मिलाने का तुम्हारा प्लान था न ,उसका क्या होगा ? लगता है बात बनी नहीं वर्ना तुमने तो एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया था मेरे खिलाफ सबूत जुटाने का।"
"नहीं ,नहीं शिखा जी।आपको ज़रूर कोई ग़लतफ़हमी हुई है।"
"अरे हाँ !मैंने तो सुना कि तुम्हारे क्लब का स्तर पिछले साल से काफी नीचे गिर गया है और काफी सदस्य छोड़कर भी जा चुके हैं ? "
"नहीं , वो बस ।लेकिन ये सब आपको कैसे मालूम ?" श्वेता और राखी ने बौखलाए से अंदाज़ में पूछा।
"श्वेता , एक सीधी सरल सी बात कहती हूँ ....जो सीढियाँ नीचे से ऊपर की ओर जाती हैं वही ऊपर से नीचे भी तो आती हैं। वो क्या है न ,तुम्हारी सेक्रेटरी रीटा ने अब हमारे क्लब की ओर रुख कर लिया है।"शिखा ने एक कुटिल मुस्कुराहट के साथ कहा।

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(14). सुश्री अनीता जैन जी

दरकता विश्वास

मुरझाए चेहरे और थके कदमों से घर में प्रवेश करते ही सुदीप कटे पेड़ सा बिस्तर पर गिर पडा ।मीना ज़ल्दी से पानी लाई और पसीने से तर बतर पति को हवा करने लगी । कुछ अप्रत्याशित की आशंका से वो भी घबरा गई पर थोडा सामान्य होने पर पति के चेहरे पर नज़रें जमाकर पूछा , " कैसा रहा दिन ?"
"हूँ ..ठीक रहा ।" इतना कह वो फ़िर शून्य में खो गया ।
" पर आप तो आज से गद्दी पर बैठने वाले थे न और... ? "सवालिया निगाह लिए बात अधूरी छोड दी ।
अब तक सुदीप भी दर्द समेट हिम्मत जुटाने की कोशिश में लगे थे । चेहरे पर कुछ समय पहले तक इंद्रधनुष से बिखरे रंग मटमैले हो चले थे । आखिर आँखों के कोर पर ठिठके मोती रोक सिर्फ इतना ही कह पाया -
"भाई ने दुकान के सारे कागज़ात अपने नाम करा लिए ...मीनू !"
" क्या ? उन्होने तो तुम्हारे हिस्से का व्यापार देने को कहा था ।इसीलिए तुम्हें अपनी जान से प्यारी नौकरी भी छोडने को कहते रहे ! अब क्या होगा ? हमारे तो दोनों हाथ कट गए ।"
"कुछ नही , गड्ढे से बाहर निकल फ़िर इमारत खडी करेंगे ।" और पास रखे अखबार में नौकरी के इश्तहार देखने लगा।

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(15). सुश्री नीता कसार जी

करतूत

'बचपन की दोस्ती की पगड़ी उछाल कर ,मेरी पीठ में छुरा घोंपते तेरे हाथ ना काँपे, आत्मा मर गई तेरी,एेसा क्यों किया,आज तुम्हारा बच्चा जेल मे है पर नाम तो कमल का बदनाम हो रहा है।बताओ तुमने एेसा क्यों किया।'
श्यामू की लाल लाल आंखे,और तीखे तेवर देख रामू की सिट्टी,पट्टी गुम हो गई।
'बैठ मैं बताता हूँ, रामू यार मुझे माफ करना।
5 साल पहले मैने कमल का नियुक्तिपत्र डाकिये से ले कर साँठगाँठ कर नयन को नियुक्त करा दिया।'
'किन्तु कमल के दस्तावेज, परिचय पत्र कहाँ से लाये।'
'याद कर जब तूने सत्यापन के लिये दिये थे उसी समय रख लिये , नयन का आधार कार्ड कमल के नाम बना लिया।'
'कमल के दस्तावेज तो हमारे पास है।'
'वह तो रंगीन फोटोकापी दी थी तुझे। मेरा बेटा तो कपूत निकला न पढ़ा, लिखा, न यह नौकरी संभाल सका।
मुझे माफ करो भाई, गुनहगार हूँ, तुम्हारा।'
"मैं यारी ही नही ज़मीर बेच कर खा गया ।"

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(16). श्री तस्दीक अहमद खान जी

भरोसा

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शहर के एक होटल में आने वाले विधान सभा चुनाव में उम्मीदवार के इंतखाब के लिए पार्टी हाई कमान द्वारा भेजे नेताओं की बैठक चल रही है , कई मुक़ामी नेता अपने अपने समर्थकों के साथ उम्मीद लगाए बाहर खड़े हैं ,  उनमें ही शहर के मुस्लिम नेता आज़ाद साहिब हैं-----उन्हें इस पार्टी से जुड़े पच्चीस साल से ज़्यादा हो गए , उनमें आजकल के नेताओं जैसी चालाकी ,फरेब ,  धोका और वादा खिलाफी की फितरत बिलकुल ही नहीं है , वह ईमानदार और सच्चे इंसान हैं , उन्हें इस बात का अफ़सोस ज़रूर है कि उनकी पार्टी जब सत्ता में होती है तो उन्हें हर पद से महरूम रखा जाता है और जब सत्ता में नहीं होती तो संगठन में कोई पद दे दिया जाता है । शहर में मुस्लिम क्या हर वर्ग के लोगों में उनकी अच्छी पकड़ है ---------- 

अचानक पार्टी नेताओं द्वारा मीडिया और लोगों की मौजूदगी में हर बार की तरह किसी बाहरी आदमी के नाम का एलान कर दिया जाता है ,आज़ाद साहिब मायूस हो जाते है ,  यकबयक उनका एक समर्थक जो किसी तरह अंदर की बातें सुन ने में कामयाब हो जाता है आकर कहता है कि इस पार्टी की कथनी और करनी में फ़र्क़ है ------वह बोल रहे थे कि हाई कमान का मानना है , मुसलमान मुख़ालिफ़ पार्टी को वोट नहीं देगा ,वह हमारे सिवा कहाँ जाएगा ,  मुसलमान को अगर टिकट देंगे तो वह विधान सभा पहुँच कर अपनी क़ौम के लिए आवाज़ उठाएगा , इसे  वोट बैंक ही रहने दो --------- इतना सुनते ही आज़ाद साहिब के चेहरे का रंग ही उड़ गया , वह सोचने लगे कि न जाने कब से यह साज़िश हमारे साथ रची जा रही है -------- 

इसी बीच उनके पास मुख़ालिफ़ पार्टी का एक बड़ा नेता आया ,  दोनों में कुछ बात चीत हुई और देखते ही देखते वहां का मंज़र ही बदल गया ,  आज़ाद साहिब के पास और कोई रास्ता नहीं था ,  उस नेता ने आज़ाद साहिब का हाथ पकड़ कर एलान कर दिया कि वह हमारी पार्टी की तरफ से उम्मीदवार होंगे

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(17). डॉ टी आर सुकुल जी

षडयंत्र

 ‘‘ जानते हो? मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने पदोन्नतियों में एससी एसटी के लिये दिये जाने वाले आरक्षण को अवैध निर्णीत किया है , इसलिये 2002 से अब तक जितने लोगों को इस प्रकार के आरक्षण का लाभ मिल गया है उन्हें रिवर्ट किया जायेगा?‘‘

‘‘नहीं ! मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की तैयारी कर ली है। आधार यह बताया जा रहा है कि यदि हाई कोर्ट के आदेश का पालन किया तो एससी एसटी के लोग धर्म परिवर्तन कर लेंगे। वे लोग यह धमकी दे भी रहे हैं।‘‘

 ‘‘परंतु एक बात संमझ में नहीं आती कि हमारी सरकारें इस भूत को क्यों पाले हुए हैं, आखिर जिन्हें सचमुच लाभ मिलना चाहिये उन्हें तो मिलता नहीं है, पिछले  पैंसठ सालों में भी इनकी स्थिति में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया।‘‘

‘‘ अरे तुम नहीं समझोगे, यह भूत तो अंगे्रज ही छोड़ गये हैं!! भारत में जाति भेद और वर्गसंघर्ष को बनाये रखने, समाज में विद्रूपता का पोषणकरने और एकता को खंडित करने के लियेे। यह उन्हीं की सोची समझी चाल थी जिसे अब हमारी सरकारें भी अपनी कुर्सी बचाने के लिये अस्त्र की तरह प्रयुक्त करती रहतीं हैं।‘‘

‘‘कैसे?‘‘

‘‘ याद करो, अंग्रेजों ने भारत की इस ‘जाति भेद और ऊंचनीच‘ की आन्तरिक कमजोरी का लाभ उठाकर ऐंसे कानून बनाये जिन्होंने भारत की राजनीति में जहर भर दिया जैसे, उन्होंने हिंदु और मुसलमानों में घृणा भरकर, मुसलमानों के लिये ‘‘मिन्टो मारले सुधार कानून 1919‘‘ बनाया और इस जाति के मतदाताओं की व्यवस्था पृथक ही बना दी। बाद में, इसी वर्ष  ‘‘मान्टेज. केमस्फोर्ड सुधार कानून‘‘ में भी इनके साथ साथ अन्य अल्पसंख्यकों जैसे क्रिश्चियन, सिख और एंग्लो इंडियन्स के लिये भी जोड़  दिया गया। इस प्रकार, जाति की राजनीति और आरक्षण के षडयंत्र का बीजारोपण तो ब्रिटिश शासन में ही किया गया था। इसी का पालन करने की व्यवस्था हमारे संविधान के आर्टीकल 334 में भी बनाये रखी गयी है ‘

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(18). श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय जी

षडयंत्र 

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बारहवे के दिन भाइयों में बहस होने लगी.

“ भैया ! आप से पूछा था. आप दोनों ने ‘हाँ’ कहा था इसलिए मम्मी की सारी रकमजेवरात बहन को दे दी थी .” मझला बोला तो छोटे ने एतराज किया, “ आप ने झूठ बोला था. रकम पर बहनबेटी का नहीं बहूबेटी का हक़ होता है, इसलिए सभी रकम सभी औरतों के बीच भी बराबर बंटनी चाहिए.”

“ पर छोटे ! वह तो हम बहन को दे चुके हैं .”

यह सुनते ही वह बिफर पड़ा, “ हम नहीं, आप. आप से किस ने कहा था निर्णय लेने के लिए ? आप जानते हैं कि पैतृक संपति में सभी भाइयों का बराबर हक होता है.”

“ आप सब से पूछ कर निर्णय लिया था. मगर जाने दे. आज के दिन झगड़ा नहीं करते. इसलिए आप बताइए क्या करना है ?”

“ बहन से सभी रकमजेवरात ले कर हम सब में बराबर बाँट दो.” बड़े भैया ने निर्णय सुनाया तो मंझला बोला, “ भैया ! आप सब से पूछ कर, पंचो के सामने बहन को रकमजेवरात दिए थे . उस से वापस कैसे मांग लूं ? ऐसा कीजिए, आप ही वापस मांग लीजिए.”

यह सुन कर दोनों भाई भड़क गए. झगड़ा इतना बढ़ा कि दोनों नाराज हो कर अपने-अपने शहर जाने के लिए बस स्टैंड पहुँच गए,  “ भैया ! कैसी रही ?” मुस्कराते हुए छोटे बोला.

“ बहुत खूब रही छोटे. मान गए तुझे. यदि हम ठीक ढंग से बारहवां निपटा देते तो हमें मम्मी के इलाज और क्रियाकर्म के अपने-अपने हिस्से के दो-दो लाख रूपए देना पड़ते.”

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(19). श्री सुनील वर्मा जी

भ्रम का आवरण

बालों को तरीके से सँवारकर उसने उन्हें पीछे ले जाकर जूड़ा बनाया। दोनों हाथों में एक-एक कड़ा पहना और आँखों में काजल की हल्की लकीर बनायी। खुद को शीशे में निहारा। कुछ कमी पाकर हाथों ने जैसे ही सिंदूर की डिब्बी की तरफ हाथ बढाया तो प्रतिबिंब ने भवें चढाते हुए सवाल किया:

"अरररे रे यह क्या ? तुम कौनसी शादीशुदा हो जो सिंदूर लगा रही हो।"
सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश में उसे याद आये वो सवाल जो उसकी शादी को लेकर लोग अक्सर करते हैं। साथ ही घूरती हुई नज़रे जो हर रोज उसे अकेला देख उसके पास आने का षडयंत्र बुनती हैं। उम्र के पैंतीसवें वर्ष में आ पहुँची रजनी ने एक पल रूक कर सोचा। फिर अपने प्रतिबिंब के सवाल को नजरअंदाज करते हुए कार्य को अंजाम दिया। निश्चिंत होने पर बैग उठाया और ऑफिस जाने के लिए दरवाजे की तरफ कदम बढाये। दरवाजे तक पहुँचते ही याद आया कि नये शहर के नये लोगों के लिए इस बार उसने जो भ्रम का षडयंत्र रचा है उसका दूसरा भागीदार तो वहीं रह गया।
वापस आकर खूँटी पर लटके नकली मंगलसूत्र को उसने फटाफट गले में डाला और तेज कदमों से बाहर आ गयी।

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(20). सुश्री नीता सैनी जी

दाहिना हाथ

मिश्रा जी उम्मीद लगाए बैठे थे कि गुप्ता जी के रिटायरमेंट के बाद वे प्रांतीय संपादक बन जाएंगे। गुप्ता जी ने उन्हें आश्वासन भी दे रखा था, '' आने दीजिए समूह संपादक जी को, मैं बात करूंगा। आप ही इस कुर्सी के योग्य हैं।'' 
'' गुप्ता जी, आप अपनी कुर्सी के योग्य किसे समझते हैं ?'' विदाई समारोह में आए समूह संपादक ने गुप्ता जी से राय ली। 
'' एक यादव लड़का है। बड़ा ही मेहनती। मैं चाहता हूं कि उसे ही मेरा काम दिया जाए।'' 
'' हूं ... ! मिश्रा जी क्यों नहीं ? वे तो आपका दाहिना हाथ रहे हैं।''
'' नहीं, साहब। वे इस पद के कतई योग्य नहीं हैं। मैं तो उन्हें झेलता रहा। वे किसी काम के नहीं हैं। मैं तो कहूंगा कि उन्हें प्रांतीय से हटाकर ब्यूरो में कर दिया जाए। बाकी आपकी जैसी इच्छा। ''

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(21). सुश्री शशि बांसल जी

कोयला 

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"यकीन ही नहीं हो रहा है माँ , जो ससुराल वाले पहले दिन-रात मायके को लेकर दहेज़ के तानें मारते थे, वो अब मेरी बलैयाँ लेते नहीं थकते ।सास तो दिनभर यही कहती है कि उन्होंने तुझ जैसा हीरा दे दिया , अब और क्या चाहिए हमें ?"
" पता नहीं क्यों बेटी, अचानक ये सब सुनकर कुछ घबराहट सी हो रही है मन में ।"
"ओफ्फोओ... तुम भी न माँ... बिलावज़ह शक करती हो, और आगे सुनो । आज उन्होंने खुद अपने हाथों से जरी की सुन्दर नाइलोन साड़ी पहनने को दी है । अगर तुम सामने होतीं न, तो सच्ची... मेरी नज़र उतारे बिना न रहतीं ।"
"रत्ना... ओ रत्ना बहू..."
"माँ, सासुजी आवाज़ लगा रही हैं।मैं फ़ोन रखती हूँ अभी ।फिर बात करुँगी ।'बाय' ।"रत्ना ने रिसीवर रखा और सास के कमरे की ओर दौड़ी ।
"आपने मुझे बुलाया मांजी ?"
" हाँ बहू , तेरे ससुर चाय की कह रहे हैं ।मेरे सिर में तेज़ दर्द है । तू ही बना दे बेटी ।"
" आप आराम करिये मांजी।मैं अभी बना लाती हूँ ।" कहकर रत्ना ने रसोईघर में जा पानी का पतीला गैस पर रखा और लाइटर बर्नर के समीप लाकर दबा दिया ।चिंगारी निकलते ही धमाका हुआ और आग की तेज लपटें उठने लगीं ।वह चिल्लाकर दरवाज़े की ओर भागी । इससे पहले कि वह बचकर बाहर निकल पाती, फुर्ति भरे चार हाथों ने धम्म से दरवाज़ा बंद कर दिया ।अतिशीघ्र अग्नि चिता में जलते हुए सास के अमृत वचन " कोयला ही तो था , जल गया " ने तड़पते शरीर को मुक्ति भी दे दी।

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(22). श्री चौथमल जैन जी

दहेज़ 

राकेश अपनी पत्नी सुनीता को पूरा वीडियो दिखाने के बाद बोला - ' मैं नहीं जानता था कि मेरा जिगरी दोस्त इतना कमीना होगा। नहीं तो मैं अपने हनीमून के लिए उसे होटल बुक करने के लिए कभी नहीं कहता।  उसने हमारे कमरे में कैमरे लगा कर ये हमारा अश्लील वीडियो सूट कर लिया और अब मुझे ब्लेकमेल कर रहा है।  दस लाख रुपये मांग रहा है। अगर मैंने नहीं दिए तो वीडियो वायरल कर देगा। अगर ऐसा हुआ तो मेरे माता -पिता तो आत्महत्या कर लेंगे , और मैं भी किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहूँगा। मुझे बचालो सुनीता। "

"पर मैं क्या कर सकती हूँ , मैं भी तो बदनाम हो जाऊँगी। "

"हाँ हम दोनों ही बदनाम हो जायेगें , पर मैं दस लाख रुपये कहाँ से लाऊँगा ,मुझे गलत मत समझना।  तुम अपने पापा से दसलाख ले आओ उधार ,मैं उनका एक -एक पैसा चूका दूंगा।  तुम जानती हो मैं दहेज़ के बिलकुल खिलाफ हूँ। 

दूसरे दिन सुनीता अपने मायके से दस लाख का सूटकेश लेकर आई और दरवाजे पर दस्तक देने वाली थी कि उसे लगा भीतर से कुछ आवाजें आ रही है। वह दरवाजे से कान लगाकर सुनने लगी। 

"वह दस लाख ले तो आएगी ना ?"

"नहीं कैसे लाएगी माँ ,मैने उसे वीडियो ही ऐसी बनाकर दिखाई है। "

"पर उसे इसकी बिलकुल भनक मत लगने देना की ये सब हमारा किया धरा है। "

"अरे पापा वह सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी है , इतनी आसानी से पता थोड़े ही लगने दूंगा। "

सुनीता वहीँ से पलट गई और अपने मायके जा कर राकेश को फोन किया -"हेलो राकेश। "

"हाँ सुनीता तुम आई नहीं अभीतक ? मैं कब से तुम्हारा इंतिजार कर रहा हूँ। "

"मैं अब कभी नहीं आऊँगी , हाँ कल कोर्ट मैं ज़रूर जाऊँगी , तुमसे तलाक लेने के लिए। मैं तुम्हारा षड्यंत्र जान चुकी हूँ। "

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(23). श्री राजेन्द्र गौड़ जी

षडयंत्र

"अरे कमल, क्या बात T V बँद कर क्यों बैठे हो ? समाचार का समय हैं; तुम तो बड़े चाव से देखते हो ।" कहते हुए बाऊ जी सोफे पर बैठ गये
"अरे खोलो भाई, क्या बात हो गई ?" न खोलते देख बाऊ जी उतावले से होकर पुछ बैठे ।
"क्या देखेंगे आप नूरा कुश्ती जो रोज ये समाचार के रुप में दिखाते हैं, या कुंठित नेताओ के जले हुए व्यक्तव्य, जिनके चेहरे से ही साफ दिखता हैं, मजबूरी में बोल रहे हैं ।" कहते हुए कमल ने T V का रिमोट बाऊ जी को थमा दिया और उठ कर जाने लगा
"बेटा, इतने अधीर नही होना चाहिये, देश में क्या वतावरण हैं वो समाचारों से ही अवगत होता हैं, पक्ष या विपक्ष सभी की बात सुननी चाहिये ।" कहते हुए बाऊ जी ने tv खोल दिया ।
कमल बैठते हुए कह उठा "पापा, मुझे तो यह सब देख कर वितृष्णा हो जाती हैं कि कैसे बिना बात के ये लोग मुद्दे बनाते हैं, कैसे उसको प्रचारित करते हैं। आप को नही लगता की मानो सब एक निश्चित नीति के तहत करते हैं ।"
"बेटा, अब ये बाल ऐसे ही तो सफेद नही किये; सब समझ आता हैं, और यह सब देख कर किस प्रकार और क्यों दर्शकों को एक विचार की ओर मोड़ने का प्रयास हो रहा हैं । इन षडयन्त्रों से अपने विचारो को बचने के लिये तैयार करना हैं, इसीलिये यह सब सुन देखते हैं ।"

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(24). श्री शुभ्रांशु पाण्डेय जी

सुरक्षा

 “अब आप सब कुछ मुझ पर छोड़ दें, आपने अबतक अपना काम बहुत सही ढंग से किया है, विभव बाबू. लोगों को अपनी वैधानिक परेशानी के दौरान अब आपकी संस्था का नाम याद आने लगा है, जो एक बहुत बडी़ बात है.” - शंकर बाबू ने अपने बडे़ से ऑफ़िस में ऊँची कुर्सी पर अपने आप को लगभग ढकेलते हुये विभव से कहा.

“मैने क्या किया है, सर ! सारा कुछ तो लोगों के सहयोग का है. मेरे किये से या मेरी सेवा से लोगों की समस्याओं का समाधान मिल जाता है, तो मुझे वाकई बहुत खुशी होती है” -  विभव ने लगभग झेंपते हुये कहा.

 विभव ने एक ग़ैर सरकारी संस्था बना कर जन-सूचना के अधिकार-अधिनियम से मिली सूचनाओं के माध्यम से कई आम लोगों को उनके अधिकार दिलवाये थे. एक कार्यक्रम में शंकर बाबू ने विभव से मुलाकात के बाद उसके जन-सुधार के विचारों से प्रभावित हो कर उसकी संस्था में स्वयं को शामिल कर लेने की बात कर रहे थे. 

विभव ने एक नजर शंकर बाबू की विशाल काया, महँगी अँगूठियों से सजी उनकी उँगलियों और उनके ऑफ़िस की सज्जा पर डाली. बड़ी-सी कुर्सी, बडे़-से मेज़ के साथ-साथ बड़े-से शो-केस में कई संस्थाओं के सम्मान-पत्र और ट्राफ़ियाँ उनके सम्पर्क और रसूख का प्रदर्शन कर रही थीं. 

शंकर बाबू की ऑफ़िस से निकलते हुए विभव अपनी संस्था के विस्तार के साथ-साथ अपनी संस्था की सुरक्षा की गुत्थी को भी सुलझाने में लगा था.

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(25). डॉ विजय शंकर जी

राजनीति और मात

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माननीय जब बहुत फुरसत में होते तो अपने बेटे के साथ शतरंज खेलते। आज खेलते - खेलते उन्हें पहली बार लगा कि ये तो उनकीं ही मात होने जा रही है। धीरे से उन्होंने बिसात उलट दी और , " एक काम याद आ गया बेटे " , कहते हुए उठ लिए। फिर आहिस्ता से बैठ गए और गम्भीर होकर बेटे से बोले ,
" बेटे राजनीति में कभी भी अपनी मात नहीं होने देनी चाहिए , मात मौत से भी बुरी होती हैं ," अपने पुत्र को उन्होंने राजनीत का बहुत ही गूढ़ रहस्य समझाया।
" ऐसी क्या बात है , पिता जी जो आप मात को मौत से भी बड़ा बता रहें हैं ? " बेटे ने सामान्य उत्सुकता से पूछा।
" बेटे मौत के बाद सम्मान मिलता है , उत्तराधिकार परिवार में रहता है , मात के बाद न सम्मान रहता है न उत्तराधिकार। "
फिर उन्होंने एक ठण्डी सांस ली और बोले , " इसलिए जब भी लगे , अपनी ही मात होने वाली तो कुछ भी करो पर मात मत होने दो। शतरंज से अधिक अच्छी तरह बात तुम कहीं नहीं सीख सकते क्योंकि शतरंज और राजनीति ,दोनों , एक ही खेल हैं , यहां हर चालाकी या षड़यंत्र , चाल कहलाता है "
बेटे ने गर्व से पिता जी की ओर देखा और बिखरी हुई गोटियाँ डिब्बे बंद करने लगा।

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(26). श्री सौरभ पाण्डेय जी

प्लानिंग 
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कैपिसिटी बिल्डिंग में प्रेमशीला नयी-नयी वीपी आयी हैं । देखने से ही कड़क, नो नॉनसेन्स पर्सनलिटी टाइप, और काम करने के उत्साह से लबरेज़ । उनका एक सर्कूलर सारे स्टेट हेड्स के पास चला गया है । सभी से पिछले तीन तिमाही के दौरान अर्जित हुए मासिक लक्ष्य के सापेक्ष सारे के सारे कर्मचारियों की व्यक्तिगत भूमिका के रिकॉर्ड्स माँगे गये हैं ।

शाम आठ बजे थे । नेशनल हेड ऑपरेशन, वीपी स्किल्स, नेशनल हेड ट्रेनिंग, वीपी मार्केटिंग, मतलब कि कम्पनी के सभी ’इमेज चमकाऊ’ अधिकारी सीएफ़ओ के चैम्बर में जमा हैं ।
’यार, नो डाउट अवर सीईओ इज अ विजनरी ! मगर उनके ख़यालों में बरसात होने लगे और मेंढकी का ख़्वाब आ जाये.. तो क्या ये उसको भी कम्पनी में बुला लायेंगे ? यू नो, मेंढकी विल रिमेन ऑलवेज अ मेंढकी !..’ - नेशनल हेड ट्रेनिंग हत्थे से उखड़े हुए थे ।
वीपी मार्केटिंग ने कस के फिकरा कसा - ’इसकी तो एकदम से सुलगी पड़ेली है ! वाकई ये है भी इसके ऊपर डाइरेक्ट अटैक ! ट्रेनिंग के पैरेलेल कैपिसिटी बिल्डिंग का फण्डा कुछ समझ में नहीं आया बाप !’
सीएफ़ओ एकदम से वीपी मार्केटिंग को लताड़ते हुए बोल उठे - ’यू नो, तू भी रेंज में है ! बता क्या किया है तूने इन दो सालों में ?.. तुम्हारा बजट एण्ड प्लानिंग मेरा टेंशन हुआ करता है..’
’सर प्लीज.. पहले बताइये, इस सर्कुलर का किया क्या जाय ?’ - नेशनल हेड ऑपरेशन पूरे तनाव में थे - ’यूपी स्टेट हेड का शाम से चार बार फोन कॉल आ चुका है । अल्टीमेटली उसी ने तो लगातार दो साल से हण्डरेड-फिफ्टी का टार्जेट शो किया हुआ है.. तो अपन सब की दाल रोटी चल रही है.. अब तो कुछ और स्टेट्स उसके फ़ण्डे पर उछाल मारने लगे हैं..’
’यार, ये जानती क्या है बिजनेस ? हाउ टार्जेट इज एचिइव्ड इज नॉन हर बिजनेस ! मास्टरी करे न वो, ह्वॉट शी इज मिण्ट फ़ॉर..’
’अब आग मत उगलो.. ’ - वीपी स्किल्स ने गंभीर स्वर में कहा - ’प्रेमशीला कण्ट्रोल में रहेगी.. मगर एक उपाय करना होगा । वो ये कि उसको सही रिपोर्ट दे दी जाय.. ’
’क्या ? हमें मरवाओगे क्या सर ? आ बैल हमें मार ?.. ’
’रुको यार ’ - वीपी स्किल्स ने अपनी बात ज़ारी रखी - ’..और उससे कहा जाये, कि करीब हर स्टेट में आधे से अधिक कर्मचारी कुछ नहीं करते । सो सारा प्रेशर बाकी कर्मचारियो पर रहा करता है । देन शी शुड प्लान ए प्रोसेस ऑव कैपेसिटी एनहान्समेण्ट.. इसमें सात से आठ महीना निकाल दो.. इस बीच नो टार्जेट फ़्रॉम टीम ऑपरेशन एट ऑल !.. अगर कुछ स्टेट हेड का विकट गिरता है तो गिरने दो.. बड़े खेल कुछ स्मॉल फ़्रॉइ कटते ही हैं..’
’तो फिर कम्पनी का क्या होगा सर ?..’ - नेशनल हेड ऑपरेशन ने अचकचाते हुए कहा ।
’मैं हूँ न अपनी टीम के साथ !.. तुम लोगों की टीम के सामने मेरी टीम का परफ़ॉर्मेन्स आजतक दबा हुआ ही दिखता रहा है । नाउ माय टीम विल बी सीन विद हिट्स ! ’ - वीपी स्किल्स ने इत्मिनान से कहा ।
’यानी, आपकी तो चमकने वाली है गुरु ! बिल्ली के भाग से छीका नहीं छींके ?.. ’
’शायद ! मगर सोच लो ! मेरा डिपार्टमेण्ट ऑपरेशन के लगुए-भगुए में नहीं आता.. सो हम ऐसे भी सेफ़ हैं । प्रॉब्लेम इस लाइंग विद यू ऑल..’
’वो तो ठीक, मगर फिर प्रेमशीला के प्रोसेस का क्या होगा ?’
नेशनल हेड ऑपरेशन एकदम से चीख पड़े - ’उसका प्रोसेस जायेगा तेल लेने ! आठ महीनों में प्रेमशीला हो जायेगी इस कम्पनी में एक भूली-बिसरी कहानी !’ - कहते हुए उसने वीपी स्किल्स के हाथ चूम लिये ।
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(27). सुश्री महिमा वर्मा जी

शठे शाठ्यं समाचरेत्


लाला जगन्नाथ जी ऑफिस के अपने विशाल कमरे में उपस्थित अपने दोनों बेटे ,बहुओं और बेटी-दामाद को निहारते हुये अभी-अभी अतीत बने पिछले कुछ सीख दे गये कड़वे दिनों को याद कर रहे थे.
उम्र के इस पड़ाव पर कम सुनाई देना शुरू हुआ तो दोनों बेटों और डॉक्टर दामाद की जिद पर उनके द्वारा सुझाये गये बड़े-बड़े चिकित्सकों को दिखाया गया,पर हुआ कुछ और,ये साधारण रोग निपट बहरेपन में बदल गया.
बहरेपन का असर बिज़नेस पर पड़ रहा था,तो उन पर दबाव पड़ने लगा कि अगली पीढ़ी को जिम्मेदारी सौंप दी जाये.प्रयोग के तौर पर एक महीने बेटों को जिम्मेदारी सौंप वो एक योग- शिविर में शान्ति से रहने चले गये 
यहाँ बहरेपन के उनके साथी बने उनके सबसे पुराने और विश्वस्त मुलाजिम राधेश्याम जी,जो परछाई की तरह उनके साथ चल शॉर्ट हैण्ड की भाषा में, जिस में लालाजी भी निष्णात थे,सभी के संवादों को लिखकर लालाजी तक सम्प्रेषित करने का काम कर रहे थे 
शिविर से लौट कर लालाजी ने घर में ही कुछ दिन बिताये,राधेश्याम जी की अनुपस्थिति में यहाँ पहले की तरह इशारों की भाषा में ही परिज़न उनसे बात करते.पर अब उनकी असहायता पर उठते सवालों के अतिरिक्त दबाव को महसूस करते हुये सभी को उनकी पसंद के अनुसार कंपनी में काम और हिस्सा सौंपने हेतु कागजात तैयार कर सबको आज यहाँ बुलाया था.

राधेश्याम जी ने बारी-बारी सभी से कागजात पर दस्तखत करवा लिये.
दस्तखत कर सभी सन्तोष का भाव लिए एक दूसरे की तरफ देख मुसुकराते हुये चले गये.

उनके जाते ही लालाजी ने कानों से रूई निकाल एक फ़ोन लगाया - "हेलो वकील साब, जी हाँ,सभी के दस्तखत हो गये हैं .अब सब कुछ केवल मेरे नाम है .अब आगे क्या करना है ,इस बारे में सोचते हैं," फिर पलट कर राधेश्याम जी से बोले-
"हॉस्पिटल के सारे बिलों का भुगतान हो गया है न ?
शुभचिन्तक राधेश्याम जी की प्रश्नवाचक दृष्टि को ताड़ आगे उन्होंने कहा -
ये जो किया वो ज़रूरी था. 
मेरे कान का रोग लाइलाज नहीं था,पर विश्वास जो टूटा उसका कोई इलाज है क्या ?

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(28). श्री प्रदीप कुमार पाण्डेय जी

सूखा

 जैक और जिल बाल्टी थाम कर आज फिर पहुँच गए पहाड़ी पर पानी लाने I पहाड़ी में पानी का एक बडा टेंकर पानी बाँट रहा था I  पानी लेने वालों की लम्बी लाइन लगी थी I दोनों लाइन में सबसे पीछे खड़े हो गए I दोनों खुश थे कि  कायदे से काम हो रहा है और आज पानी मिल ही जाएगा और इतने वर्षों से उन दोनों पर लगा दाग कि बिना पानी लिए  लुढ़कते हुए नीचे आ जाते हैं ,आज मिट जाएगा I

दोनों लाइन में सबसे पीछे खड़े हो गए I एक व्यक्ति जो  लाइन की व्यवस्था देख रहा था चिल्ला चिल्ला कर सबसे कह रहा था I

“आप लोगों को पानी देने के लिए ठाकुर साहेब ने शासन के पीछे पड़ पड़ कर इस टेंकर की  व्यवस्था की हैI   आप सब शांति से लाइन में खड़े रहें “I

थोड़ी देर बाद एलान हो गया कि टेंकर ख़त्म,अब दो दिन बाद फिर आयेगाI लोग मायूस हो गएI व्यवस्था वाला आदमी फिर आ गयाI

“हमें पता है सबको पानी नहीं मिल पाया,  पर ठाकुर साहेब फिर शासन के पीछे पड़कर मंगवा लेंगे टेंकर i हर हाल में आप सब के साथ खड़े हैं  वो”I

जैक और जिल भी मायूस लौटने लगे I व्यवस्था वाला पीछे आ गया I

“तुम्हे तो यहाँ कभी नहीं देखा ,कौन हो तुम ?”

“जैक और जिल  “

ओहो वो कविता वाले I  इससे पहले कभी पानी मिला जो अब मिलेगा ,चलो भाग लो “I 

जैक और जिल घबरा कर दौड़े और फिर पहाड़ी पर से नीचे लुढ़कने लगे I पर पीछे लुढ़कती जिल ने देख लिया था कि लाइन में आगे खड़े हुए सारे आदमी जिन्हें पानी मिल गया था वो एक ट्रक में पानी लाद रहे थे I व्यवस्था वाला आदमी वहां भी लदवाने की व्यवस्था देख रहा था I  आगे ड्राईवर की  बगल में ठाकुर साहेब बैठे थे I

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(29). सुश्री कांता रॉय जी

विष

सुषमा जल्दी -जल्दी अपना काम निपटा रही थी कि एक और आवेदन सामने,उस पर नजर पड़ी तो अकचका उठी ।

" अरे आप ? सुधीर जी !"

" सुषमा ! " नज़र मिलते ही उदास आँखों में चमक-सी कौंध गई ।

" जी , आइये इधर बैठिये " सामने की कुर्सी की ओर इशारा किया।

" मुझे माफ कर देना , अपनी बेटी का रिश्ता करवाने के चक्कर में मैने तेरा रिश्ता तुड़वाने का पाप किया था "

" आपकी वजह से ही तो मै आज यहाँ हूँ , उस वक्त मेरी शादी हो गई होती तो आज यहाँ की कमिश्नर थोड़ी ना होती "

" तुम्हें देख कर मै हर्ष से पुलकित हूँ "

" मै भी आपकी ऋणी हूँ , आपके कारण मेरी जिंदगी बदल गई ।"

" इसमें कोई शक नहीं , तुम्हें ऋणी होना ही चाहिए । तेरे चरित्र पर जो लाँछन मैने लगाया था वो तुझे फलित हो गया , है ना ! हो हो हो हो ...."

समय की पिटारी का ढकना खुलते ही अजगर मुँह लपलपाने लगा । विषाक्त अनुभूतियाँ बदबदाती हुई बाहर आ चुकी थी ।

" ट्रिन ट्रिन ...." " जी ,मैम कहिये "चपरासी उपस्थित हुआ

" तुरंत इस कीटाणु को बाहर फेंक कर आओ "

" अरे , अरे सुषमा ये क्या कर रही हो ,मेरा काम तो करवा दो । "

" एक मिनट रूको , आsक थू ! ....जाओ ,अब फेंक आओ इसे "

------------------------------------------------------------------

(30). सुश्री बबिता चौबे शक्ति जी

षड्यंत्र

"अरे ओ हरिया ये क्या सुन रहे हैं रे हम ! तोहार महरी चुनाव लडवे का चाही है ! " ठाकुर ने कडक स्वर में कहा।
"जी मालिक "
"अरे मुरख घर की औरत जात बिना घूंघट गांव भर में घुमते फिरेगी तो तेरी इज्जत का का होगा भैया ! तोहार खानदान की मान मर्यादा को मिट्टी में ना मिल जायेगी "
"पर मालिक ! "
"अरे ये चुनाव औरतो के लिए नही है पराये मर्दों के सामने.. छी... छी."
और महिला आरक्षित सीट पर ठकुराईन निर्विरोध चुनाव जीत गई !

----------------------------------------------------------

(31). सुश्री उषा साहनी जी

बजट एवं कार्य

 

नए अधिकारी महोदय के स्वागत की तैयारी में सारे चाटुकार यू लगे हुए थे मानो सास- ससुर दामाद का स्वागत करने की तैयारी कर रहे हों। इधर अधिकारी महोदय की नीली बत्ती बंद हुई उधर कई सारे पुष्प गुच्छ दिखने लगे। कुर्सी पर विराजमान होते ही आधे घंटे में बैठक का सरकुलर आ गया।
अधिकारी जी बोले - मैने कार्यालय का दौरा कर लिया है।
महिला कर्मियों के बच्चों के लिए क्रैच की सुविधा होनी चाहिये , बजट मांग भेजिए , बड़े बाबू , हम दस्तखत करेंगे।
सारे कार्यालय में पुताई की ज़रूरत है। बजट मंगवाइए , हम दस्तखत करेंगे।
सारे शौचालयों को मरम्मत की ज़रूरत है। बजट मंगवाइए ,हम दस्तखत करेंगे।
सारे दफ्तर में अलमारियों का हाल खस्ता है। बजट मंगवाइए , हम दस्तखत करेंगे।
एक लम्बी सूची बन गयी, बजट मंगवाने और दस्तखत करने की।
बड़ा ही काबिल अधिकारी आया है इस बार। काया ही पलट जाएगी। कानाफूसी शुरू हो गयी।
दफ्तर सुबह नौ से शाम छेः बजे तक खुलेगा - अधिकारी महोदय बोले। मैं सूर्योदय से सूर्यास्त तक काम करने वाले अधिकारी के नाम से मशहूर हूँ।
कोई भी फालतू छुट्टी की दरख्वास्त लेकर नहीं आएगा। छुट्टी को अधिकार ना माने। एक कार्य की सूची बनाइये। उस की कार्य- समिति बनाइये। सारे
कर्मचारियों को व्यस्त और इतना अधिक व्यस्त कर दिया कि आज अधिकारी महोदय को आये तीन माह बीत गए और उनसे कोई कुछ पूछने नहीं जा पाता क्यूंकि वे तो बस दफ्तर में बजट पर दस्तखत करने मात्र आते हैं। नौकरी को मात्र आठ माह ही शेष हैं , जितना बजट पर दस्तखत हो और जितना शीघ्र हो उतना भला। और फिर सूर्योदय से सूर्यास्त वाले अधिकारी के नाम से यहाँ भी तो साख जमानी है।

--------------------------------------------------------

(32). श्री चंद्रेश कुमार छ्त्लानी जी  

तसल्ली

.

"पिताजी! क्या हुआ?" उसने आश्चर्य से पूछा| उसके पिता पलंग से उठकर जैसे ही चलने लगे थे कि लड़खड़ा गये, वो तो उन्होंने तुरंत ही पास की दीवार का सहारा ले लिया नहीं तो ज़मीन पर गिर जाते|

 

"मैं बिलकुल ठीक हूँ बेटा... मुझे कुछ नहीं हुआ, बस हल्का सा बुखार है, उससे चक्कर आ गये|" पिता ने मुंह से गहरी सांस भरते हुए धीमे स्वर में कहा और सहारा लेकर पलंग पर बैठ गए|

 

"पानी पी लीजिये..." तब तक वह पानी का एक ग्लास भर कर ले आया था, कहते हुए उसने तकिये के नीचे रखी अपने पिता की चिकित्सीय जांच की रिपोर्ट हाथ में ले ली| उसके पिता ने रिपोर्ट छिपा रखी थी, उसके हाथ लगते ही उनका चेहरा सफ़ेद पड़ गया|

रिपोर्ट के अनुसार उसके पिता का लीवर लगभग समाप्तप्रायः था, उसने अपने पिता की तरफ देखा, पलंग के नीचे ज़मीन पर बैठ कर उसने अपने पिता का हाथ अपने हाथ में लेकर भर्राये गले से कहा, "पापा, बचपन में जब मुझे गंभीर पीलिया हुआ था तब भी आप यही कहते थे कि, बेटा तू बिलकुल ठीक है, तुझे कुछ नहीं हुआ... और मैं ठीक हो गया... पापा, शब्दों की यह साजिश इस बार भी काम करेगी ना?"

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आदरणीय योगराज सर, “ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी” अंक-14 की सफलता हेतु हार्दिक बधाई एवं त्वरित-संकलन हेतु हार्दिक आभार. सादर 

हार्दिक आभार मिथिलेश भाई .

 वाह वाह त्वरित संकलन के लिए बधाई प्रेषित है आ.योगराज सर.

बहुत बहुत बधाइयाँ पूरी टीम को एवं सहभागियों को ।सादर ।

शुक्रिया नयना ताई

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी सर और सम्पूर्ण ओबीओ टीम को लघुकथा गोष्ठी के इस अंक की सफलता हेतु सादर बधाई|

हार्दिक आभार भाई चंद्रेश जी, आपकी बधाई सर-आँखों पर. 

ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी-14 के सफल आयोजन, सफल संचालन व त्वरित संकलन के लिए सम्मान्य मंच संचालक महोदय को संकलन में चयनित सार्थक रचनाकार सहभागियों को हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।
*** मेरी रचना को संकलन में स्थान नहीं मिल सका है या रचना किसी कारण संकलन से बाहर कर दी गई है, कृपया बताइयेगा ताकि उसमें सुधार किया जा सके और संकलन में स्थापित होने का अवसर मिल सके। सादर

**********
आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर जी, यह जानने की जिज्ञासा हो रही है कि किन कारणों से मेरी सहभागी रचना प्रदत्त विषय अनुरूप नहीं है! मुझे अपनी इस अभ्यास रचना को कई बार पढ़कर ऐसा लगा कि प्रस्तुत रचना के अंतर्गत ली गई दोनों लघुकथायें स्वत: प्रदत्त विषय 'षड्यंत्र' पर आधारित हैं तीखी पंचपंक्ति सहित। तथा मुझे ऐसा लगा कि मूल रचना के अंत में भी ईमानदारी को साज़िश की शिकार तीखी पंचपंक्ति के साथ कथ्य में सम्प्रेषित है। मुझे ऐसा लगा कि निहित दोनों लघुकथाओं में तथा रचना के अंत में षड्यंत्र की गहराई अप्रत्यक्ष रूप से कहे व अनकहे में सम्प्रेषित है। कृपया इस प्रवाहमय रचना में प्रदत्त विषयांतर्गत षड्यंत्र के कारण भ्रष्टाचार, जनता के धन की बर्बादी, सत्ता लोलुपता, वास्तविक निर्धन व वास्तविक पिछड़े वर्ग के शोषण/उपेक्षा की परिणति बताने का प्रयास किया गया है। षड्यंत्र/साज़िश के कारण ही तो है यह सब परिदृश्य। हो सकता है कि लघुकथा विधा विधान को इस नवीन अभ्यास-प्रयास में सही तरह से नहीं समझ पा रहा हूँ, कृपया मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा। मैं किस तरह का परिमार्जन इसमें कर सकता हूँ? इस विश्वास के साथ कि इसे सम्पूर्ण रूप में या इसमें निहित किसी एक लघुकथा को संकलन में स्थान दिया जायेगा, भवदीय, __शेख़ शहज़ाद उस्मानी शिवपुरी म.प्र. [३१/५/२०१६]

भाई उस्मानी जी, मुझे यकीन है एक लघुकथाकार होने के नाते लघुकथा विधा के प्रति मेरे जूनून से आप ज़रूर वाकिफ होंगेI गोष्ठी का संचालक और मँच का मुखिया होने के नाते भी आप मेरी इमानदारी, बेबाकी और निष्पक्षता से अवश्य परिचित होंगेI किसी रचना को सिरे से खारिज करना यूँ तो मैं कोई अक़ल्मंदी नहीं मानता, यदि ऐसा करना अपरिहार्य ही हो जाए तो मुझे उसमे भी कभी संकोच नहीं रहाI क्योंकि ग़ज़ल और छंद के बाद हमारा अगला मिशन लघुकथा है (जिसकी बागडोर मेरे हाथों में दी गई है) तो प्रतिभाशाली लघुकथाकारों से बेहतर की आस रखना और तनिक आग्रही हो जाना भी स्वाभाविक हैI शायद एक वजह यह भी थी कि मुझे जाती तौर पर आपकी रचना पसंद नहीं आईI लेकिन कोई भी संचालक अपनी जाती राय़ किसी पर नहीं लाद सकता, अत: मैं अब बताना चाहूँगा कि आपकी रचना संकलन का हिस्सा क्यों नहीं बनीI

.

बकौल आपके यह रचना “2+1 त्रिवेणी” है, शायद यह सोशल मीडिया पर इजाद की हुई कोई तथाकथित विधा होगी जिससे मैं तो परिचित नहीI बहरहाल, आपने इसमें एक से अधिक घटनायों को “फिट” करने की कोशिश की हैI जब लघुकथा किसी विशेष क्षण के खुर्दबीनी उभार का नाम है तो इसमें एक से अधिक घटनायों का समावेश कैसे हो सकता था?               

.

दूसरी बात, हर घटना को लघुकथा नहीं बनाया जा सकताI रचनाकार को यह पता होना चाहिए कि कौन सी घटना लघुकथा बनने योग्य है कौन सी नहींI क्योंकि यह कथानक लघुकथा के लिए मुफीद था ही नहीं था तो लघुकथा अनावश्य रूप से विस्तार पाकर बोझिल हो गई और अपनी धार खो बैठीI क्योंकि यह विषय कहानी के लिए परफेक्ट थाI और मेरे भाई, जिस कथानक पर कहानी कही जा सकती है उसपर लघुकथा हरगिज़ नहीं कही जा सकतीI और इसी तरह जिस कथानक पर लघुकथा कही जा सकती हो उस पर कहानी नहीं कही जा सकती, यह मेरा नहीं विद्वानों का मत हैI यदि आप चाहते तो एक लघुकथा मुख्य अतिथि के व्यक्तव्य से पहले (दिया-बाती-तेल संवाद) की घटना पर दूसरी व्यक्तव्य के बाद वाली घटना परI

.

आशा है कि मैं अपना पक्ष रखने में सफल रहा होऊँगाI 

आदरणीय मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर जी मेरी टिप्पणी के उत्तर में अपनी राय/सुझाव से अवगत कराने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद। इस उत्तर से संबंधित अपने विचार व्यक्त कर रहा हूँ , कृपया इसे रचना का बचाव या कुतर्क न मानकर मुझ जैसे प्रि-नर्सरी के एक अभ्यर्थी हेतु "कार्यशाला गतिविधियों" की तरह लीजिएगा-

[मैं भी निष्पक्ष, निर्गुट, स्वतंत्र, उदार व न्याय प्रिय अभ्यर्थी ही हूँ]

1-'त्रिवेणी' {2+1+3=} शब्द केवल टिप्पणी को 'रोचक' बनाने के लिए लिखा था, जिसे शायद मंच संचालक महोदय ने अन्यथा लिया। यह न किसी विधा का सोशल साइट वाला नाम है ,न ही मेरी कोई सोच। * मुझे टिप्पणियों को पढ़कर ऐसा लगा कि किसी ने भी मेरी रचना में निहित ** दो प्रतियोगियों द्वारा पढ़ी गई लघुकथाओं *** के विषयांतर्गत संदेश पर कुछ नहीं कहा, तो पाठकों का उन दोनों लघुकथाओं पर 'ध्यान आकृष्ट' कराने मात्र के लिए 'त्रिवेणी' शब्द का प्रयोग मैंने किया। रचना लिखते समय पूर्व से ऐसा लिखने का न तो मंतव्य था, न ही चेष्टा की गई थी। इसी तरह वास्तव में ओबीओ के साहित्य उत्सवों से मात्र दृश्यांकन लिया ,न कि कथानक, और न ही उन पर केंद्रित रचना थी!

2- आदरणीय संचालक महोदय, आपको ऐसा क्यों लगा कि आपके द्वारा बताए गए लघुकथा के आवश्यक तत्व व गुण आप व वरिष्ठजन मुझे अभी तक बिलकुल भी नहीं सिखा पाये? वास्तव में आप लोगों ने मुझे इतना तो सिखा दिया है कि मैं पूरी रचना के बजाय आपके द्वारा सुझाए दो विकल्पों वाली रचना गोष्ठी में रख सकता था।
( ग़ैर फ़रमाइयेगा) ******

//**** I यदि आप चाहते तो एक लघुकथा मुख्य अतिथि के व्यक्तव्य से पहले (दिया-बाती-तेल संवाद) की घटना पर दूसरी व्यक्तव्य के बाद वाली घटना परI ***//

==बिलकुल मैं ऐसा ही कर सकता था, लेकिन मुझे विश्वास था कि यह रचना एकांगी [ लघुकथा सृजन प्रतियोगिता का क्षण] होने के कारण आदरणीय मंच संचालक महोदय द्वारा स्वीकृत व मान्य कर ली जायेगी। यह रचना 20 मई, 2016 को फाइनल तैयार हो चुकी थी, मैं किसी वरिष्ठ साथी से मशविरा ले सकता था लेकिन मुझे विश्वास इतना था कि "लघुकथा सृजन प्रतियोगिता के आयोजन " वाले क्षण में प्रवाहमय विषयांतर्गत रचना में प्रतियोगियों द्वारा प्रस्तुत विषयांतर्गत दोनों लघुकथाओं के होते हुए अध्यक्ष महोदय की पंचपंक्ति के साथ अवश्य ही स्वीकृत की जायेगी। षड्यंत्र विषय पर ही केन्द्रित करते हुए लघुकथा कहने का प्रयास किया था। इसमें मेरे विचार से विषयांतर्गत संदेश सम्प्रेषित है, समाहित है।

* एक पल = तात्कालिक लघुकथा सृजन के फाइनल राउंड में 'ईमानदारी' विषय की उपेक्षा

* एक विसंगती = दो प्रतियोगी विषयांतर्गत प्रतियोगिता नियम अनुसार अपनी अपनी दो लघुकथायें पेश करते हुए षड्यंत्र और भ्रष्टाचार की शिकार "ईमानदारी" की उपेक्षा कर बैठते हैं, जिस पर अध्यक्ष महोदय ने कटाक्ष पूर्ण टिप्पणी एकांगी लघुकथा के समापन पर पंचपंक्ति सहित कही!


2- ***// मुझे यकीन है एक लघुकथाकार होने के नाते लघुकथा विधा के प्रति मेरे जूनून से आप ज़रूर वाकिफ होंगेI गोष्ठी का संचालक और मँच का मुखिया होने के नाते भी आप मेरी इमानदारी, बेबाकी और निष्पक्षता से अवश्य परिचित होंगेI //****

== जी बिलकुल, हमें भी जानकारी व विश्वास है! लेकिन इस बार के विषय पर आई रचनाओं के संदर्भ पर कोई 'प्रश्न' उठा सकता है।

3- ***// आपने इसमें एक से अधिक घटनायों को “फिट” करने की कोशिश की हैI जब लघुकथा किसी विशेष क्षण के खुर्दबीनी उभार का नाम है तो इसमें एक से अधिक घटनायों का समावेश कैसे हो सकता था? // ***

= इन पंक्तियों से मुझे दुःख हुआ है। 'फिट करने की कोशिश नहीं की है', बल्कि यह लिखते समय संयोग हुआ जो मुझे अच्छा लगा।
*** भला कौन पुराना सहभागी चाहेगा कि उसकी मेहनत से बनी रचना संकलन से  बाहर कर दी जाये!

*** ( कृपया ग़ौर करियेगा कि मैं 'ऐसा क्यों फिट करने की कोशिश करूँगा कि मुझे संकलन से 'किक आउट' कर दिया जाए!)   ******      
***********

#### यहाँ मैं यह बतला देना भी चाहता हूँ कि गोष्ठी-14 के प्रदत्त विषय पर आधारित इस रचना के अलावा भी मैंने दो अन्य छोटी-छोटी लघुकथायें भी 25 मई तक लिख रखीं थीं। लेकिन मुझे सर्वश्रेष्ठ व 'संकलन में सम्मिलित होने योग्य' जो लगी, वही मैंने गोष्ठी में पोस्ट की। मुझे इस रचना के माध्यम से बहुत कुछ सीखना भी था, लेकिन मुझे इस रचना पर तारीफ़ें तो मिलीं, लेकिन ऐसी कोई टिप्पणी मेरी रचना को नहीं मिली कि मुझे कुछ सीखने को मिले। रचना को इग्नोर करते हुए अन्य रचनाओं को समय व टिप्पणियाँ मिलती रहीं।

***** गोष्ठी के समापन होने के ठीक पहले मेरे द्वारा सादर विनम्र निवेदन करने पर एकदम से "शॉक" देती हुई आपकी टिप्पणी रचना पर मिली।
*******
# [काश ऐसी टिप्पणी रचना पोस्ट करने के तुरंत बाद किसी सुधीजन या आपसे मिल जाती, तो वाह-वाही से मनोबल ऊपर उठकर एकदम से गिरकर "चोटिल" न हो पाता।] #

4- हर बार कम से कम 15 व अधिकतम 49-45 सहभागियों की रचनाएँ रहती हैं। यदि यह गोष्ठी "सीखने-सिखाने की कार्यशाला/आयोजन" है, तो केवल 'स्पार्क' वाली रचनाओं पर ही क्यों मंच की कार्यकारिणी व पदाधिकारी या लघुकथा-विशेषज्ञ उद्देश्यपूर्ण टिप्पणियाँ करते हैं, सभी पर क्यों नहीं? जबकि रचनाएँ सभी पढ़ी जाती हैं!!!!!!! ***48 घंटों के आयोजन में यह संभव क्यों नहीं है???? ***
हर सहभागी अपनी रचना पर वाह-वाही की टोफियां ही लेना नहीं चाहता (?) , वह मंच संचालक महोदय श्री योगराज प्रभाकर जी, श्री सौरभ पाण्डेय जी, श्री गणेश जी बागी जी, श्री मिथिलेश वामनकर जी, श्री चन्द्रेश कुमार छतलानी जी, सुश्री कान्ता राय जी और ऐसे अनेकानेक लघुकथा-पुरोधा-सुधीजन/वरिष्ठजन से सच्चा मार्गदर्शन लेना चाहता है।

** वाह-वाही की टोफियां देखते ही देखते अचानक ठेंगा देखने के लिए नहीं*** जैसा कि कतिपय सोशल साइट्स के ग्रुप्स पर आरोप लगते रहते हैं !!!!!!!!******

[लघुकथा कक्षा में हम अपनी रचना पर गोष्ठी सा हासिल नहीं कर सकते अपनी रचना के साथ!!]

5- संकलन में शामिल कुछ साथियों की रचनाओं को परिमार्जन का स्पष्ट अवसर देने से पहले ही संकलन में स्थापित रचनाओं पर आड़ी लाइनों से निरस्त करने से संकलन की परम्परा प्रभावित हुई है। इन रचनाओं के साथ संकलन में मेरी रचना भी स्थापित कर टिप्पणी में परिमार्जन करने का निर्देश दिया जा सकता था, उससे परम्परा बरकरार तो रहती न!

6- अपनी रचना प्रेषित करने से पहले मैं अपनी रचना उपरोक्त बिंदु में बताये गये सुधीजन को न तो दिखाना चाहता हूँ, न ही मशविरा लेना चाहता हूँ क्योंकि ओबीओ के भव्य मंच व उसके आयोजन को ही 'कक्षा' मानता हूँ व सभी सहभागिता करने वालों, पाठकों, टिप्पणी कर्ताओं, ओबीओ पदाधिकारियों व कार्यकारिणी को सम्मान्य शिक्षक मानता हूँ, गुरुजी नहीं। शब्द "गुरुजी" प्रायः संबोधन मात्र बनकर रह गया है।

7- गोष्ठी-14 में मेरे द्वारा पोस्ट की गई लघुकथा
पोस्ट करने से पहले न तो मैंने किसी को दिखाई, न ही किसी से चर्चा की, और न ही किसी से कोई मशविरा लिया, क्योंकि यह सब मुझे गोष्ठी से लेना था, जो नहीं मिला क्योंकि इसमें कोई 'ख़ास' बात नहीं पायी गई! गोष्ठी के उपरांत 'कुछ' मिलना, गोष्ठी के उद्देश्य के लिए कई सवाल पैदा कर देता है!

[मेरा उद्देश्य किसी से बहस करना, मर्यादा तोड़ना कतई नहीं, अपना मंच मानकर सब कह दिया है, कोई ग़ुस्ताख़ी हुई हो, त्रुटि हुई हो, तो हाथ जोड़ कर मुआफ़ी की ग़ुजारिश करता हूँ। सादर]

__शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.
{01 जून, 2016}
(रात दस बजे

इतनी लम्बी टिप्पणी से बेहतर ये नहीं था कि आप अपनी त्रिवेणी से दो अलग अलग लघुकथाएँ लिख देते भाई उस्मानी जी? आड़ी पंक्तियों से किसी रचना को मार्क करना मुझे भी अच्छा नहीं लगताI यहाँ गुरु जी कोई नहीं है, सब स्टूडेंट्स हैं, इसलिए इस प्रकार का कटाक्ष करना मुझे अच्छा नहीं लगाI मँच क्या करता है या क्या करना चाहिए, उस पर प्रश्न चिन्ह लगाने से पहले कई दफा सोचें भाईI जैसा कि आपने फ़रमाया है मुझे आपसे क्या और क्योंकर खुन्नस होगी? आश्वस्त रहें ये कतई किक आउट नहीं है, केवल वेक अप काल हैI एक रिजेक्शन से ये हाल है तो खुद की रचना को रिजेक्ट करने का हुनर कब सीखोगे?

इति श्री !       

सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मंच संचालक महोदय जी। यदि मेरी कोई पंक्ति/शब्द से आप को दुःख हुआ है तो मुआफ़ी चाहता हूँ। संबोधन शब्द "गुरुजी" पर कटाक्ष नहीं, बल्कि सादा विचार था सभी के लिए। गोष्ठी में पोस्ट की गई उलझन वाली रचनाओं पर 8-10 घंटों के भीतर ही टिप्पणी में निर्देश दिए जाने की परम्परा शुरू कर रचना पुनः पोस्ट करने का अवसर दिया जा सके, तो ऐसी परिस्थिति नहीं बनेगी। आपकी अंतिम पंक्ति में पते की बात है । सादर पुनः विनम्र निवेदन है कि इस संकलन की आड़ी लाइनें हटा कर पूर्वावस्था में स्थापित कर दीजिएगा। मेरी रचना के कारण ऐसा नहीं होना चाहिए था। सादर। क्या मैं अपनी रचना "ब्लोग पोस्ट रूप" में या कहानी के रूप में अब प्रेषित कर सकता हूँ, या टुकड़े टुकड़े ही करने होंगे, क्या टुकड़े ब्लोग पोस्ट में डाल दूँ ?

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