For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर- नए मिज़ाज के लोगों में तल्खियाँ हैं बहुत,

१२१२/११२२/१२१२/२२ (११२)
.
नए मिज़ाज के लोगों में तल्खियाँ हैं बहुत,
कई ख़ुदा से, कई ख़ुद से सरगिराँ हैं बहुत.
.
किसी के मिलने मिलाने का पालिये न भरम,
ज़मीं-फ़लक में उफ़ुक़ पर भी दूरियाँ हैं बहुत.
.
अभी ग़ज़ल में कई रँग और भरने हैं,
अभी ख़याल की शाख़ों पे तितलियाँ हैं बहुत.
.
सियासी चाल है हिन्दी की जंग उर्दू से,
सहेलियाँ हैं ये बचपन की; हमज़बाँ हैं बहुत.
.
परिंदे यादों के, आ बैठते हैं ताक़ों पर,
उजाड़ माज़ी के खंडर में खिड़कियाँ हैं बहुत.
.
गुरूर ‘नूर” न कर; सिर्फ़ तू नहीं तन्हा,
ज़माने भर में तेरे जैसे राएगाँ हैं बहुत.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 839

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2016 at 12:21am

आदरणीय निलेश जी, हमेशा की तरह एक शानदार ग़ज़ल. ये मिसरा पढ़कर तो चमत्कृत हूँ- //ज़मीं-फ़लक में उफ़ुक़ पर भी दूरियाँ हैं बहुत. // 

इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद ओ मुबारकबाद 

सादर 

Comment by Anuj on May 5, 2016 at 5:55pm

 हाय तबियत की रवानी तेरी ! 

Comment by Samar kabeer on May 5, 2016 at 2:54pm
जनाब निलेश जी आदाब,वाह बहुत ख़ूब क्या कहने अच्छी ग़ज़ल कही बधाई स्वीकार करें।
Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on May 5, 2016 at 1:04pm

KYAA BAAT HAI WAH WAH WAH

Comment by नादिर ख़ान on May 5, 2016 at 12:42pm

 मतले के शेर से मक्ते के शेर तक जवाब नहीं आपका आदरणीय नीलेश जी.... आपने कल लिखा था आपने शुरुआत की ३०० ग़ज़ल फेंकी है ये उन्हीं ग़ज़लों की तपिश है जो आज आपकी ग़ज़ल सोने की तरह चमक लिए हुए है | बहुत मुबारकबाद आपको .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2016 at 9:49pm
वाह बहुत बढ़िया आ. निलेश भाई बेहतरीन मत्ले से शुरूआत हुई आखिर तक बाँधे रखती है
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 7:48pm

सियासी चाल है हिन्दी की जंग उर्दू से, 
सहेलियाँ हैं ये बचपन की; हमज़बाँ हैं बहुत. 
.
परिंदे यादों के, आ बैठते हैं ताक़ों पर, 
उजाड़ माज़ी के खंडर में खिड़कियाँ हैं बहुत. 
बहुत खूब | 

Comment by Sushil Sarna on May 4, 2016 at 7:26pm

परिंदे यादों के, आ बैठते हैं ताक़ों पर,
उजाड़ माज़ी के खंडर में खिड़कियाँ हैं बहुत.
.
गुरूर ‘नूर” न कर; सिर्फ़ तू नहीं तन्हा,
ज़माने भर में तेरे जैसे राएगाँ हैं बहुत.

दिल कैसे न डूबे ऐसी ग़ज़ल के समंदर में .... खूबसूरत अहसासों की महक से लबरेज़ इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय नीलेश जी।

Comment by amita tiwari on May 4, 2016 at 7:26pm

परिंदे यादों के, आ बैठते हैं ताक़ों पर, 
उजाड़ माज़ी के खंडर में खिड़कियाँ हैं बहुत.

बहुत ही सजीव शब्द- चित्र ...........बधाई 

Comment by दिनेश कुमार on May 4, 2016 at 7:00pm
अभी ख़याल की शाख़ों पे तितलियाँ हैं बहुत. वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service