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ठंडा डब्बा कांच जड़ा [लघु कथा ]

उस गाँव के छोटे से स्टेशन में कोई गाड़ी नहीं रूकती थी , एक दो  पैसेंजर गाड़ियों को छोड़कर I वो और जस्सी ,धड धड करके  मुहँ चिढ़ाकर निकलती गाड़ियों को खुले  मुहँ  और फैली आँखों से  देर तक देखते रहते थे I उन गाड़ियों के ठन्डे डब्बे जो कांच से एकदम बंद होते थे ,जस्सी को बहुत लुभाते थे I उन दोनों सात आठ  साल के बच्चों की आँखों में एक ही सपना हुआ करता था कि  ठंडे   डब्बे वाली गाड़ी में बैठना है एक दिनI

 स्टेशन की बैंच  में बैठा वो इन्हीं पुरानी यादों में खोया था I आज स्टेशन का नज़ारा कुछ और ही था I उस छोटे से स्टेशन ने  इतनी रौनक आज से पहले कभी नहीं देखी थी   Iपूरे स्टेशन ने मानों तिरंगा ओढ़ लिया था I गाँव से  लोग  तिरंगा लिए दौडे आ रहे थे स्टेशन की ओरI  आज गाड़ी रुकने वाली थी यहाँ पर और ये काम भी जस्सी ने ही किया था I

धड धड करती रेल स्टेशन पर रुक गई I पूरी रेल ही कांच जड़े ठन्डे डब्बों की थी I वो बेंच से खड़ा हो गया I एक डब्बे का दरवाज़ा खुला और उसका यार जस्सी उर्फ़ शहीद जसविंदर सिंह तिरंगे में लिपटा चार कंधों पर शान से उतर रहा था  उस बड़े से ठंडे डब्बे से जिसकी खिडकियों में सफ़ेद काँच जड़े थेI  

 मौलिक व् अप्रकाशित    

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Comment by vijay nikore on March 14, 2016 at 1:00pm

इस अति मार्मिक लघु कथा के लिए बधाई।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 11, 2016 at 5:31pm
बहुत ही भावुक क्षण को प्रस्तुत करती अनोखी रचना।हार्दिक बधाई आदरणीया।
Comment by pratibha pande on February 9, 2016 at 10:33pm
कथा पर उपस्थित होकर मर्म का अनुमोदन करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2016 at 1:49pm
बढ़िया रोचक प्रवाह पूर्ण प्रस्तुति शीर्षक को सार्थक करती हुई बेहतरीन शैली में कथ्य को सम्प्रेषित करती है। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ने बहुत ही बारीकी से अवलोकन कर टिप्पणी की है। उन्हें व आपको तहे दिल बहुत बहुत बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 8, 2016 at 10:52pm
निःशब्द कर देती इस कथा के लिए बहुत बहुत बधाई , आदरणीय सुश्री प्रतिभा पाण्डेय जी , सादर।
Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 9:47pm

आदरणीया नीता जी ,उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार 

Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 9:45pm

कथा पर आकर स्नेहिल टिपण्णी करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया अर्चना जी 

Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 9:43pm

उ त्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर जी 

Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 9:40pm

उत्साह वर्धन के लिए आपकी आभारी हूँ आदरणीय मिथिलेश जी ,आपके इस कथन से मै पूर्णतया सहमत हूँ कि तिरंगे का जिक्र कथा के अंतिम प्रभाव को कम कर रहा है , आपके  सूक्ष्म विश्लेषण और मार्गदर्शन के लिए पुनः आभार प्रेषित है 

Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 9:34pm

 आपको कथा पसंद आई , आपका आभार आदरणीया जानकी जी 

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