For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- जन्नत में हर इक चीज़ है,दुनिया तो नहीं है

इक बात है यारों कोई शिकवा तो नहीं है
जन्नत में हर इक चीज़ है दुनिया तो नहीं है

हूँ लाख गुनहगार मगर ऐ मेरे मौला
सर मैंने कहीं और झुकाया तो नहीं है

मैं चाँद के बारे में बस इतना ही कहूँगा
दिलकश है मगर आपके जैसा तो नहीं है

वो आज अयादत के लिये आए हैं मेरी
जो देख रहा हूँ कहीं सपना तो नहीं है

करता ही रहा है ये ख़ता करता रहेगा
इन्सान फिर इंसाँ है फ़रिश्ता तो नहीं है

सर मैं भी झुकाता हूँ तेरे सामने लेकिन
सजदा मेरा,शब्बीर का सजदा तो नहीं है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 815

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on November 30, 2015 at 10:45pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,अस्ल में सबब यह है कि ओबीओ से लम्बी ग़ैर हाज़री की वजह से नए सदस्य मुझे नहीं जानते ,और आज कल ओबीओ पर पुराने सदस्य भी कभी कभी ही नज़र आते हैं ,ख़ैर ,ग़ज़ल आपको पसंद आई,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत से दिल बाग़ बाग़ हुवा,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,यह ग़ज़ल तरही मुशायरे के चलते ही पोस्ट की थी इसलिये जल्द बाज़ी में अरकान लिखना भूल गया,इसके अरकान हैं :-

मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुन
Comment by Ravi Shukla on November 30, 2015 at 4:46pm

आदरणीय समर साहब इस ग़ज़ल की बह्र कृपया बता दें थोड़ी आसानी हो जाएगी

Comment by Ravi Shukla on November 30, 2015 at 3:28pm

आदरणीय आशुतोष जी आपकी टिप्‍पणी में आपके भाव अभिव्‍यक्‍त नहीं हो पाये वस्‍तुत: आप कहना क्‍या चाहते है

यदि आपको समर कबीर जी द्वारा पेश इस ग़ज़ल में कथित मीटर की कमी नजर आई तो उस तरफ ध्‍यान दिलाने का निवेदन समर साहब ने भी किया था किन्‍तु आप विषय से हटकर और ही बात रख रहे है और विषयांतर कर रहे है । यह मंच सीखने और सिखाने का है यदि आप इसी भाव से सीखने के लिये तत्‍पर है तो कुछ ग्रहण कर पाएंगे ( आपने स्‍वयं ये भी लिखा है कि आप नौसिखिया है )   नहीं तो शेर तो क्‍या आप अल्‍फाज के मानी तक भी नहीं पंहुच पांएगे

समर साहब का ही एक शेर तरही मुशायरा संख्‍या 65 से लेकर यहां सन्‍दर्भ के लिये पेश कर रहे है ।

शाइरी क्या है,मियाँ ख़ुद ही समझ जाओगे
मेरे अशआर की तह में तो उतर कर देखो 

 बादल तो मुक्‍त भाव से पानी की बारिश करता है किन्‍तु यह पात्र की सामर्थ्‍य है कि वह कितना ग्रहण कर पाता है । सादर

Comment by Ashutosh kumar on November 30, 2015 at 1:42pm

समर कबीर जी  इसी साईट पर ग़ज़ल लिखने की कला सिखाने का बहुत उम्दा प्रयत्न किया गया है. मैं खुद नौशिखिया हूँ. लेकिन मैं क्या क्या गलती करता हूँ वो मुझे पता है .

कलाकार का हर  कला में उसके दिल के उदगार सामने आते हैं. उससे पता चलता है की आपकी सोच की सुन्दरता कितनी है. इस स्तर पर आपकी अभिवयक्ति काफी सुन्दर और सार्थक है. मगर ग़ज़ल लिखने की विधि काफी कठिन है क्यूंकि मैं खुद उसे सिख रहा हूँ. 

इंसान इंसान ही रहे तो दुनिया जन्नत हो जाये 

नफरत की हवा जो बह रही है उसका अंत हो जाये 

लोग जियें तो मिल जुलकर कुछ इस अदा से 

हर हाल में दिल में प्रेम हो ये फितरत हो जाये 

हर आदमी यहाँ बेमिशाल है खुदा का करम है ये 

यही कामना है लोगों की पूरी हर मन्नत हो जाए 

Comment by Ravi Shukla on November 30, 2015 at 12:57pm

आदरणीय समर साहब आपके और आुशतोष जी के संवाद को पढकर कई भाव एक साथ आये गये पहले तो हंसी आई अफसोस हआ और आश्‍चर्य भी ।

आशुतोष जी आपके लिये शायद ये शेर सही रहेगा

करता ही रहा है ये ख़ता करता रहेगा
इन्सान फिर इंसाँ है फ़रिश्ता तो नहीं है

मैं चाँद के बारे में बस इतना ही कहूँगा
दिलकश है मगर आपके जैसा तो नहीं है वाह वाह क्‍या बात है रवायती अंदाज के शेर हमें बहुत बहुत पंसद आते है

आदरणीय आखिरी शेर के लिये अपने मित्र से थोड़ी पृष्‍ठ भूमि की जानकारी लेनी पड़ी बहुत उम्‍दा ख्‍याल हुआ है सलाम के शेर के लिये दिली मुबारक बाद कुबूल करें ।सादर ।

Comment by Samar kabeer on November 29, 2015 at 3:59pm
जनाब आशुतोष जी , पहली बार ग़ज़ल कही है , मीटर के बारे में कृपया मार्गदर्शन देने का कष्ट करें। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service