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गज़ल...प्रेम दीवानी होती है.....

प्रेम दीवानी होती है.....

सबको अपनी उम्र निभानी होती है.

खुद अपनी पहचान बनानी होती है.

मत उलझो आडम्बर में यदि हो इंसा,

इंसा की खुद आत्म कहानी होती है.

धर्म कर्म आहार भुनाने में उसको,

सपनों की दीवार गिरानी होती है.

मत उगलो तुम जह्र आग तूफान यहां,

जीवन पानीदार सयानी होती है.

बाल न बांका तुम मेरा कर पाओगे,

सत्य-खुदा से आंख मिलानी होती है.

मत रोना संसार रुलाता है सबको,

हंस भी मत जब प्रेम दीवानी होती है.

मीरा राधा कबिरा तुलसी दास तकी,

सबके सब बेज़ार बयानी होती है.

‘सत्यम’ के सिर पर चढ़कर मत वार करो,

खुद प्रभु को भी लाज बचानी होती है.

 

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 29, 2015 at 5:58pm

आ0 उसमानी भाई व भंडारी भाई जी आप दोनो का तहेदिल से शुक्रिया. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 29, 2015 at 5:56pm

आ0  कांता रॉयजी,  आपका तहेदिल शुक्रिया. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 27, 2015 at 7:15am

आदरणीय केवल भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 8:08pm
बहुत सुंदर मतले के साथ भााव पूर्ण ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई जनाब के.पी.सत्यम साहब। शेष विशेषज्ञ मार्गदर्शन करेंगे।
Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 6:05pm

सबको अपनी उम्र निभानी होती है.
खुद अपनी पहचान बनानी होती है.
वाह !!! बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है आदरणीय केवल जी। बधाई।

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