For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- कौन है यह रूबरू.... दिनेश कुमार

2122-2122-2122-212

वक़्त के गुज़रे हुए लम्हात की तफ़्सीर है
मेरी हस्ती मेरी माँ के ख़्वाब की ताबीर है

मुझको दुनिया भर की दौलत से नहीं कुछ वास्ता
मेरे क़दमों में पड़ी अलफ़ाज़ की जागीर है

आइना देखा जो बरसों बाद, मैं हैरान हूँ
कौन है यह रूबरू, किस शख़्स की तस्वीर है

अहले महफ़िल के लिए बेशक मआनी और हो
शाइरी मेरे ग़मों की पुरख़लिश तहरीर है

नित नई परवाज़ केवल ख़्वाब ही रह जाएगा
इन परिन्दों को बताओ बुज़दिली ज़ंजीर है

भूख बेकारी गरीबी क्यूँ नहीं कम हो रही
हुक़्मराँ की गर नहीं तो किसकी ये तक़्सीर है
.
शे'रगोई का न फिर उस्ताद दुनिया में हुआ
आज भी सबकी ज़ुबाँ पर नाम केवल 'मीर' है

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on September 7, 2015 at 3:09pm

आदरणीय दिनेश जी । आदाब, बहुत ही उम्‍दा ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर क्‍या बात कही है आपने । समर साहब की इस्‍लाह से शेर और खूबसूरत हो गया है ।

अहले महफ़िल के लिए बेशक मआनी और हो
शाइरी मेरे ग़मों की पुरख़लिश तहरीर है         बहुत खूब ।

पूरी ग़ज़ल बहुत सुन्‍दर हुई है बधाई स्‍वीकार करें ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on September 7, 2015 at 2:55pm
वाह वाह वाहभाई जी बहुत दिनों बात मंच पर आया हूँ । आते ही आपने मन मोह लिया । कमाल कमाल। ी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 9:01pm

आदरनीय दिनेश भाई , लाजवाब ग़ज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Samar kabeer on September 4, 2015 at 11:27pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

इस मिसरे की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा :-
"पास मेरे बेहतरीन अलफ़ाज़ की जागीर है"

ये मिसरा लय में नहीं है,उचित लगे तो इस तरह कर लें:-

"मेरे क़दमों में पड़ी अल्फ़ाज़ की जागीर है"
Comment by gumnaam pithoragarhi on September 4, 2015 at 8:18pm


मुझको दुनिया भर की दौलत से नहीं कुछ वास्ता
पास मेरे बेहतरीन अलफ़ाज़ की जागीर है

वाह भाई जी क्या खूब ग़ज़ल ,,,,,,,,,, बधाई स्वीकारें ,,,,,,

Comment by मोहन बेगोवाल on September 4, 2015 at 5:45pm

आदरणीय दिनेश जी,ग़ज़ल में कुछ अल्फाज उर्दू न जानने वालों  के लिए समझना मुश्कल होता है, सभी अश'आर लाजवाब - बधाई कबूल करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 4, 2015 at 4:28pm

आदरणीय दिनेश भाई जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

अलिफ़ वस्ल का बढ़िया प्रयोग किया है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service