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(बह्र - 1222-1222-1222-1222)


किसी दिन ख़त्म होगी डोर, धागा टूट जाएगा -
अचानक ज़िन्दगी! तुझसे भी नाता टूट जाएगा -

जो बोलूँ झूठ तो खुद की निगाहों में गिरूँगा मैं
जो सच कह दूँ तो फिर से एक रिश्ता टूट जाएगा -

बस इतनी बात ने ताउम्र हमको बाँधकर रक्खा
किसी के दिल में कायम इक भरोसा टूट जाएगा -

चराग़ों ने ये जो ज़िद की है अबकी आजमाने की
हवा का हौसला भी, देख लेना, टूट जाएगा -

वो हों जज़्बात या फिर कोई नद्दी हो कि दोनों में
उफ़ान इक हद से ज्यादा हो, किनारा टूट जाएगा -


(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2015 at 8:58pm

मज़ा आगया भाई विवेक. मन खुश हो गया.
ग़ज़ल तो पूरी ही उम्दा है. लेकिन इस शेर ने कहीं दूरतक छुआ है.
बस इतनी बातने ताउम्र बाँध कर रक्खा
किसी के दिल में कायम इक भरोसा टूट जाएगा .. . वाह

शुभेच्छाएँ


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Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 2:47am

वाह वाह वाह 

आदरणीय विवेक जी बहुत ही बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल कही है आपने 

एक एक शेर नायब है 

इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिल से दाद हाज़िर है 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 8:59pm

आ० विवेक जी इस लाजवाब गजल पर आपको दिल से बधाई!दिल बाग़ बाग़ हो गया!सादर!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 13, 2015 at 4:08pm
अच्छे अश’आर हुए हैं आ. विवेक जी, दाद कुबूल करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 13, 2015 at 3:53pm

आदरणीय विवेक भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , सभ्ही अशार खूब हुये हैं , दिली बधाई आपको ।

Comment by Samar kabeer on June 13, 2015 at 10:44am
जनाब विवेक मिश्र जी,आदाब,वाह वाह वाह,क्या ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है,सुनकर दिल बाग़ बाग़ हो गया,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by shree suneel on June 13, 2015 at 8:56am
चराग़ों ने ये जो ज़िद की है अबकी आजमाने की
हवा का हौसला भी, देख लेना, टूट जाएगा -.... उम्दा!
शानदार, ख़ूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय विवेक जी. बधाई.. बधाई आपको.
Comment by वीनस केसरी on June 12, 2015 at 11:18pm

जो बोलूँ झूठ तो खुद की निगाहों में गिरूँगा मैं
जो सच कह दूँ तो फिर से एक रिश्ता टूट जाएगा -

बस इतनी बात ने ताउम्र हमको बाँधकर रक्खा
किसी के दिल में कायम इक भरोसा टूट जाएगा -

चराग़ों ने ये जो ज़िद की है अबकी आजमाने की
हवा का हौसला भी, देख लेना, टूट जाएगा -


वाह विवेक बाबू दिल खुश कर दिया ....

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 12, 2015 at 7:58pm

विवेक जी

सुन्दर गजल के लिए दाद कबूल फर्माएं

जो बोलूँ झूठ तो खुद की निगाहों में गिरूँगा मैं
जो सच कह दूँ तो फिर से एक रिश्ता टूट जाएगा -

Comment by narendrasinh chauhan on June 12, 2015 at 11:03am

लाजवाब , खूब सुन्दर गजल रचना ,बधाई हो,

कृपया ध्यान दे...

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