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ब्राँडेड मवाली ( लघुकथा ) कान्ता राॅय

ब्राँडेड मवाली ( लघुकथा )


" कितनी अचरज की बात थी कि वो बाई होकर ख्वाब देख रही है । "

" तुम्हें क्या लगता है कि बाई को स्वप्न नहीं देखना चाहिए ...!!"

" स्वप्न देखने का आधार भी तो होना चाहिए । आपने देखा नहीं कि वो दो बार दसवीं में फेल होकर बडी मुश्किल से बारहवीं में सप्लीमेंटरी से पास हुआ है और वो है कि बेटे को इंजीनियर बनाने की बात कर रही थी ।इधर बेटा सड़कों पर मवालीगिरी करता फिरता है और उधर माँ के स्वप्न.. हुँह !!! "

" यही मवाली तो पढ लिख कर ब्राँडेड मवाली बनेंगे ।"




कान्ता राॅय
भोपाल
मौलक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 1:15pm
बिलकुल सही कह रहे है आप आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी ...... जल्दी ही इस पर और मेहनत करती हूँ मै । आभार आपको प्रतिक्रिया देकर मुझे त्रुटि इंगित करने के लिए ।
Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 1:13pm
इस कथा पर तो जैसे मेरा दिमगवा ही जाम हुआ बैठा है आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर जी । कई दिनों से इसे देखती हूँ और कुछ प्रयास की कोशिश करती हूँ लेकिन वही ढाक के तीन पात ही साबित होते है मेरे लिए । कुछ दिनों बाद इसे हमारे लघुकथा कक्षा नामक इसी मंच के अस्पताल में भर्ती कर दूंगी जिससे मृत प्रायः हो चुके इस कथा को कही जीवन मिल सके । नमन आपको ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2015 at 1:18am

प्रस्तुति पर सार्थक चर्चा हो रही है. अच्छे सुझाव भी आये हैं. अनुकरण करना श्रेयस्कर होगा, आदरणीया

सादर शुभकामनाएँ ..

Comment by maharshi tripathi on July 5, 2015 at 9:50pm

आ.  kanta roy जी, कौन ,किससे कह रहा ये स्पष्ट कर दें ,ऐसा मैंने आपके किसी लघुकथा पर कहा था ,,जिससे  संवादों पर ज्यादा दिमाग न लगाना पड़े ,,,मुझे यही लगता है ,,,  ,मुझे ये समझ नही आया की ,,,आप सन्देश क्या देना चाहती हैं ,,,कृपया स्पष्ट करें |

Comment by kanta roy on July 5, 2015 at 1:41pm
बहुत सार्थक टिप्पणी की है आपने आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी , ब्राँडेड को लेकर आपका विवेचना बेहद सटीक और गंभीर लगा । हमें कथा निर्माण के समय कहाँ कहाँ क्या सावधानी रखने की जरूरत है इस कथा से मुझे समझने की बहुत जरूरत है । कोशिश करूंगी कि मै अपनी अगली कथाओं में यह गलती फिर ना दोहराऊँ । आभार तहे दिल से
Comment by Shubhranshu Pandey on July 5, 2015 at 1:24pm

आदरणीया कान्ता जी,

सुन्दर भाव के साथ कथा आयी है. मिथिलेश जी के विचार ध्यान देने लायक हैं.

शीर्षक के साथ दो औरतों का वार्तालाप सम्बन्ध नहीं जोड़ पा रहा है.

//उधर माँ के स्वप्न.. हुँह !!!// ये अभिजात्य वर्ग की औरतों का बाई के प्रति नजरिया बतलाता है. जिसे शायद कथा में प्रमुखता नहीं दी गयी है.

यहां बाई याने माँ की मेहनत और बेटे के पैसा लुटाने के तरीके पर थोडा़ ज्यादा विस्तार दिया जा सकता था. जिससे ब्राण्डेड समान के मोह के साथ जोड़ने की बात स्पष्ट हो जाती.  

वैसे ब्राण्ड के साथ ज्यादातर अभिजात्य वर्ग ही जाता है, और वैसे घरों के बिगडे़ लड़कों को शायद ब्राण्डेड मवाली कह सकती हैं. 

सादर.

Comment by kanta roy on July 3, 2015 at 7:09pm
बिलकुल सही कह रहे है आप आदरणीय गिरीराज जी , यह महज़ एक प्रयास ही रह गई है । हालांकि मै इस कथा से बिलकुल भी संतुष्ट नही लेकिन इसके संप्रेषण में कहाँ चुक हुई है मै अवश्य जानने को आतुर हूँ ॥ हमारे वरिष्ठ जनों का मुझे इस कथा पर इंतजार है । सादर नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 3, 2015 at 6:30pm

आदरणीया , आपकी लघुकथा में सच मे वो बात नही आयी जो आपकी अन्य कथा मे होती है , मै चूँकि जानकार नही हूँ और कुछ नही कह सकता । प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by kanta roy on July 3, 2015 at 3:25pm
इस कथा में शायद मै जो कहना चाह रही थी वो भाव स्पष्ट नहीं कर पाई हूँ । आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी मै भी बिलकुल नई हूँ इस विधा में । कोशिश जारी है निरंतर कि शब्दों में कथ्य और तथ्य का सामावेश सही तालमेल के साथ रोपित करने में । हर विषय पर सही प्रस्तुति को अभी साधने की मुझे बेहद जरूरत है । इस कथा पर मै भी श्रेष्ठ जनों के मार्गदर्शन की अभिलाषी हूँ । अपेक्षा है उनसे कि वो इस कथा की सही विवेचनात्मक टिप्पणी कर हमें अनुग्रहित करें । सादर नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 3:06pm

आदरणीया कांता जी, 

इस लघुकथा को मैंने कई बार पढ़ा 

संशोधन के बाद भी पढ़ा ( ये संशोधन -दो बार दसवीं में फेल होकर बडी मुश्किल से बारहवीं में सप्लीमेंटरी से पास हुआ है )

इन सबके बावजूद मैं लघुकथा के शीर्षक के आशय और लघुकथा के मर्म तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ. 

अंतिम पंक्ति सोचने के लिए तो विवश कर रही है पर क्या सोचना है ये समझ नहीं पा रहा हूँ. 

इस विधा और इसके शिल्प हेतु बिलकुल नया अभ्यासी हूँ इसलिए मार्गदर्शन चाहता हूँ.

सादर 

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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