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अब जो जायेंगे......."जान" गोरखपुरी

 २१२२     २२१२      २१२२      २२

 

अब जो जायेंगे उस गली तो सबा छेड़ेगी

वारे उल्फ़त! मुझको मेरी ही वफ़ा छेड़ेगी

 ..

जिसको आँखों में भरके फिरते थे हम इतराते

हाय जालिम तेरी कसम वो अदा छेड़ेगी  

..

  जो गुजरते हर एक दर पे थी हमने मांगी  

राह में मिलके मुझसे वो हर दुआ छेड़ेगी

..

 वो जो बातें ख्यालों की ही रह गई बस होकर

बेसबब बेवख्त आ मुद्दा बारहा छेड़ेगी

..

 सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े

हाँ फजाओ में गूंजती वो सदा छेड़ेगी

..

 

चूम के हाथ अपने  हवाओं के बोसे देना

अब तो सांसों की आती जाती हवा छेड़ेगी

..

था नजर आया जिनमे वो ’जान’ सौ रंगों में

अरगनी से लिपटी पड़ी वो कबा छेड़ेगी

*****************************************

मौलिक व् अप्रकाशित (c)"जान" गोरखपुरी

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Comment by shree suneel on July 3, 2015 at 7:09am
था नजर आया जिनमे वो ’जान’ सौ रंगों में
अरगनी से लिपटी पड़ी वो कबा छेड़ेगी... बढ़िया शे'र
आ० कृष्ण मिश्रा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. ख़ूबसूरत भाव पिरोये हैं. बधाई आपको.
क्या मतले में 'जायेंगे' की जगह 'जाऊंगा' उचित होगा. सादर.

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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 1:21am

आदरणीय कृष्ण भाई आप बहुत गहराई से लिखते है 

शेर को समझने के लिए बहुत दिमाग लगाना पड़ता है.

इस कठिन अशआर वाली सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:36pm

सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े

हाँ फजाओ में गूंजती वो सदा छेड़ेगी------बहुत बढ़िया ,,,भाई आपकी गजल में निखार आ रहा है |

Comment by MAHIMA SHREE on July 2, 2015 at 9:27pm

वो जो बातें ख्यालों की ही रह गई बस होकर

बेसबब बेवख्त आ मुद्दा बारहा छेड़ेगी

था नजर आया जिनमे वो ’जान’ सौ रंगों में

अरगनी से लिपटी पड़ी वो कबा छेड़ेगी...शानदार अशअारों के लिए बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 1:06pm

आ० धमेंद्र जी! सादर आभार!

मार्गदर्शन बनाये रक्खे!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 1:05pm

आ० कांता जी, आपकी आत्मीय प्रसंशा से बहुत उर्जा मिली ,तहेदिल से शुक्रिया आ० हार्दिक आभार!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 12:57pm

आ० Pari M Shlok जी तहेदिल से शुक्रिया! आपके अनुमोदन से बहुत बल मिला !आभार!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 12:51pm

 हौसलाफजाई के लिए हार्दिक आभार!आ० राहुल जी आगे प्रयास रहेगा और बेहतर करने का! आप मार्गदर्शन बनाये रक्खे!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 12:43pm

आ० manoj भाई सादर आभार! जी गजल में एक ही भाव पे सभी शेर है इसलिये ये एक मुसलसल गज़ल की श्रेणी में आनी  चाहिए, जो और जिसको के संबोधन भाववाचक संज्ञा के गजल के हर शेर में होने के कारण अधिक हुआ है,जो लिखते समय स्वत: आ गए है! गायन में मेरे ख्याल से ये अखरते नही है पढने में ये निगाह में अवश्य चढ़ रहें होंगे,फिर भी इस ओर सुधार करने के प्रयास रहेगा!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 2, 2015 at 11:22am
बहुत खूब

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