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मेरी बेटी( दूसरी कविता) मनोज कुमार अहसास

मेरी बेटी
तपता सूरज
जब माथे पर सुलग रहा है
दो बातें अपने सीने की तेरे हिस्से मे रखता हूँ
ये सूरज एक बड़ा परीक्षक
ये सूरज एक बड़ा तपस्वी
ये सूरज एक सत्य अटल है
ये सूरज एक महा अनल है
इस सूरज के संरक्षण मे
जीवन के सब अर्थ खुलेगे
इस सूरज के साथ तू चलना
देख गगन से शब्द मिलेगें
चुपके चुपके....सुलग सुलग कर
चमक में हिस्सा मिल जाता है
तपते रहने से रंग जीवन का
एक ना एक दिन खिल जाता है
तपना जीवन को रंगना है
वरना सब फीका फीका है
इस सूरज को साथ में लेकर
तुझको जीवन भर तपना है
बेरंग हो चुकी है ये दुनिया
सतरंगी रंगो से इसको
बिटिया फिर से रंग देना है
सारे जग को रंग देना है
कभी अगर अकेला पाओ खुद को
और पापा भी साथ नहीं हो
इतना समझ लेना मेरी गुड़िया
सूरज तेरे साथ खड़ा है
इंद्रधनुष के रंगों को लेकर
तुझको उसके साथ है चलना
तपना,चलना,जीवन को रंगना
सारे जग को रंग देना
सारे जग को रंग देना



मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by मनोज अहसास on May 27, 2015 at 5:56pm
आप सभी ने इन पंक्तियों को कविता कह दिया
और भावों को समझा।
मेहरबानी
शुक्रिया
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 27, 2015 at 12:49pm

बहुत भावपूर्ण ....
बधाई मनोज जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 27, 2015 at 11:44am

मनोज भाई

आपकी कविता आखों में पानी लाने में समर्थ है. आपको बधाई .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 10:47am

वाह! भाई  वाह! आपकी इस कविता पर दिल कुर्बान! दिल से हार्दिक बधाई व् शुभकामनाए!

Comment by मनोज अहसास on May 27, 2015 at 8:36am
जनाब कबीर साहब
मेहरबानी
शुक्रिया
आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है
इससे पहले की एक रचना "कोशिश" के नाम से आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रही है
देखकर बताइये के क्या उसे ग़ज़ल कहा जा सकता है
तरही मुशायरे में मिले सुझावों के आधार पर वो रचना उसी ज़मीन पर कहने का प्रयास किया गया है
तन्हाई का साथी बनने के लिए पुनः आभार
Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 11:46pm
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,दिल को छू गई ये कविता ,बहुत अच्छा लिखते हैं आप ,लेकिन

"ग़ज़ल का ये प्रयास मत छोड़ देना
मैं तुमसे यही बोलना चाहता हूँ"

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