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भागते हुए किसी तरह सबको चढ़ाकर वो ट्रेन में घुसे और अपनी फूली हुई साँसों को क़ाबू में करने की चेष्टा करने लगे। पत्नी और बच्चे उस भीड़ में घुस गए थे और बैठने की जगह तलाश रहे थे। गर्मी के दिन , छुटियों का समय , आरक्षण मिलना लगभग नामुमकिन था इसलिए आज ऐसी यात्रा करनी पड़ रही थी उनको।
सांसें सामान्य हुईं तो अजीब सी दुर्गन्ध महसूस होने लगी , लोगों के पसीने और सांसों की गंध। अब उनको बेचैनी महसूस होने लगी , फिर ध्यान आया कि परिवार को जगह मिली की नहीं, और थोड़ा अंदर घुसे। पत्नी और बच्चे किसी तरह सीट से टिक कर खड़े होने का प्रयत्न कर रहे थे और उनके चेहरे उनकी परेशानियों को व्यक्त कर रहे थे। बहुत प्रयत्न किया उन्होंने कि लोगों से कुछ फ़ासला रहे और उस दुर्गन्ध से राहत , लेकिन असफल रहे |
कुछ समय बीत चुका था ट्रेन चलते और अभी ६ घंटे का सफर बाक़ी था। वो सोच में डूबे थे कि कैसे कटेगा सफर पत्नी और बच्चों का इस हालत में तभी सीट पर बैठे कुछ लोगों ने उठ कर उनके परिवार को बैठने की जगह दे दी। अब वो लोग उनसे सट कर खड़े थे, उसी तरह पसीने की गंध से लिपटे हुए। उनकी साँसों से अब भी अजीब सी गंध आ रही थी लेकिन अब वो गंध उनको खटक नहीं रही थी।
पत्नी और बच्चे अब सीट पर बैठे हुए थे, ट्रेन अपनी रफ़्तार में चल रही थी, और वो भी अपने बगल के यात्री के ऊपर टिक कर खड़े खड़े झपकी ले रहे थे।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 11:08am

वाह! वाह! आज के समय रेलयात्रा के सच को बहुत ही शानदार तरीके से प्रस्तुत किया है! दिल से हार्दिक बधाई भाई विनय कुमार जी!

Comment by Shubhranshu Pandey on May 27, 2015 at 9:55am

आदरणीय विनय जी, 

यात्राओं में इस तरह के अनुभव और सहयोग का होना या मिलना अब कम हो गया है. इन जहर खुरानों ने इस सम्बन्ध को छिन्न भिन्न कर दिया है. 

सुन्दर कथा.

Comment by विनय कुमार on May 26, 2015 at 6:23pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया सुनंदा झा जी |

Comment by विनय कुमार on May 26, 2015 at 6:23pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी | आपकी शाबाशी मिलना बड़ी बात है..

Comment by sunanda jha on May 26, 2015 at 5:54pm
हुत अच्छी लघु कथा विनय जी !!!
गंध तो वही थी बस महसूस करने का नजरिया बदल गया था ।
Comment by Ravi Prabhakar on May 26, 2015 at 3:04pm

आदरणीय विनय जी आपकी प्रखर दृष्‍िट का मैं कायल हूं । एक अति साधारण घटना में से आपने बहुत सशक्‍त लघुकथा ढूंढ निकाली । बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय ।

Comment by विनय कुमार on May 26, 2015 at 2:35pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 1:55pm

सामान्य श्रेणी की बोगी में यह दृश्य आम है, हममे से कई लोग भुक्तभोगी भी होंगे. एक सामान्य सी घटना को आपने एक सुन्दर कथा के रूप में प्रस्तुत कर दिया है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय विनय कुमार जी.

Comment by विनय कुमार on May 25, 2015 at 10:21pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय केवल प्रसाद जी..

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 25, 2015 at 10:02pm

बेहतरीन कथा. वास्तव में ऐसा कई बार होता है.  हार्दिक बधाई स्वीकारे, आ0 विनय भाईजी.

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