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कोकिला क्यों मुझे जगाती है,

कोकिला क्यों मुझे जगाती है,
तोड़ कर ख्वाब क्यों रुलाती है.


नींद भर के मैं कभी न सोया था,
बेवजह तान क्यों सुनाती है.

चैन की भी नींद भली होती है 
मधुर सुर में गीत गुनगुनाती है 

बेबस जहाँ में सारे बन्दे हैं
फिर भी तू बाज नहीं आती है

(मौलिक व अप्रकाशित)

- जवाहर लाल सिंह 

गजल लिखने की एक और कोशिश, कृपया कमी बताएं 

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 29, 2015 at 2:00am

जी आदरणीय भ्रमर जी कोशिश जारी रहेगी 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 30, 2015 at 10:42am

बहुत सुन्दर भाव। .सुन्दर गजल। लोगों के सुझाव पर गौर फरमाइयेगा
भ्रमर ५

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 28, 2015 at 10:29am

हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जू शकूर साहब!


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 9:54am

आदरणीय जवाहरलाल जी अच्छा प्रयास है शेष तो चर्चा हो ही चुकी है प्रयासरत रहें शुभकामनायें

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 24, 2015 at 8:51pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब, सादर अभिवादन! अब मैं अवश्य सीख जाऊंगा आपलोगों का अतिशय आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 11:24pm

आदरणीय जवाहर भाई जी , प्रयास पहले से बहुत अच्छा है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । आ. बागी जी की बात सही है - 

2122   1212    22  /112  बह्र मे गज़ल के मिसरे सुधारे जा सलते हैं ,

कोकिला क्यों/  मुझे जगा/  ती है,   
तोड़ कर ख्वा/ ब क्यों रुला/ ती है.  --  ये शे र सही है


नींद भर के मैं कभी न सोया था,   --     नींद भर मैं/  कभी नहीं / सोया    ( के हटा दीजिये )
बेवजह तान क्यों सुनाती है.      -        बेवजह ता/ न क्यों सुना/  ती है.

अन्य दो को आप सुधारने का प्रयास कीजियेगा ॥

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 23, 2015 at 7:38pm

आदरनीय डॉ गोपाल नारायण साहब, पिछली बार आदरणीय गिरिराज भंडारी ने काफिया और रदीफ़ के बारे में बताया था इस बार मैंने उसे ही ठीक करने का प्रयास किया... बाकी कोशिश जारी रहेगी आपलोग मार्ग दर्शन करते रहें, यानी त्रुटियों की तरफ इशारा करते रहें ...सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 2:09pm

जवाहर जी

 गजल कई जगह मीटर में नहीं है  i आप आख़री शेर देंखे -

बेबस जहाँ में सारे बन्दे हैं

2 1  2  2   1  22  22 2

फिर भी तू बाज नहीं आती है

 2    2  2  2 1  1 2  2 2 2

जवाहर जी हिन्दी के मात्रिक छंदों के हिसाब से रचना करे  , सादर .

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 23, 2015 at 10:48am

परम आदरणीय बागी साहब, आपने सुझाव के साथ मेरा उत्साह वर्धन किया है, मेरा प्रयास जारी रहेगा ...सादर!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 23, 2015 at 10:46am

आदरणीय डॉ. विजय शकर साहब, सादर अभिवादन! मेरा हौसला आफजाई का शुक्रिया

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