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झन्नाटा : लघु कथा : हरि प्रकाश दुबे

“गुरु देव !”

“हाँ बोलो बेटा !”

“लेखन में आपने बहुत कुछ सिखा दिया पर !”

“पर क्या ?”

“पर लगता है आप कहीं चूक गए !”

“अच्छा ! कैसे और तुम्हे ऐसा क्यों लगा ?”

“मेरे लेखन मैं वो बात नहीं आ पा रही है !”

अब गुरु जी थोड़ी देर तक सोचते रहे और तभी एक आवाज़ आई ...पटाक !

शिष्य का गाल लाल हो चुका था , आँख के आगे तारे दिखाई देने लगे .

“अब बोलो बेटा !”

“जी ,समझ गया गुरूजी, बस यही ‘झन्नाटा’ नहीं आ पा रहा था !”

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

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Comment by Saurabh Pandey on April 21, 2015 at 11:33pm

आदरणीय हरि प्रकाशजी, आपकी कलम, आपके हाथ, आपका की-बोर्ड.. कहिये क्या चूम लूँ !!
अद्भुत !
बार-बार बधाइयाँ लीजिये.


थोड़ा लाइटर मूड में आज की स्थिति कहूँ? 

तो अपनी लघुकथा का अंत सुनिये -

अब गुरु जी थोड़ी देर तक सोचते रहे और तभी एक आवाज़ आई ...पटाक !
शिष्य का गाल लाल हो चुका था. कि, फिर उससे भी तेज़ आवाज़ आयी - फट्टाऽऽक्क्क ..
“अब बोलो बेटा? ..साले, गुरु बनते फिरते हो !" खनखनाती हुई आवाज़ बदस्तूर जारी रही, "..तुम क्या समझाओगे साले.. मैं समझ गया आगे करना क्या है... टेक केयर..”


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Comment by मिथिलेश वामनकर on April 21, 2015 at 10:34pm

वाह .... झन्नाटेदार लघुकथा 

मुझे भी झन्नाटे की जरुरत है 

Comment by neha agarwal on April 21, 2015 at 7:25am
वाह
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 20, 2015 at 9:30pm

बचपन याद आ गया! अब कहाँ ऐसा होता है,आजकल तो गुरु शिष्य को डांट भी नही सकता...सुन्दर लघुकथा पर बधाई सरजी!

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 20, 2015 at 9:08pm

गुरु काआशीर्वाद किसी भी रूप में मिले उससे  तो शिष्य आगे ही बढ़ता है| मैं भी मेरे विद्यार्थियों को व्यवहारिक ज्ञान सिखाने के लिये कई तरह के झन्नाटे देता हूँ...हालाँकि ऐसा नहीं, व्यवहार के!! बहुत ही गजब की लघुकथा !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2015 at 12:18pm

गजब!! आदरणीय हरिप्रकाश जी. बधाई

Comment by savitamishra on April 20, 2015 at 9:17am

hhhh भय बिन कहा ज्ञान ..जोर का झन्नाटा ...शुक्र हैं सिखाने वाले दूर हैं बैठे ..वर्ना

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 20, 2015 at 7:38am

जी बिलकुल सही झन्नाटा आ ही गया ....चोट दिल पे लगे तो और अच्छा होगा .....

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 20, 2015 at 4:34am
चोट कुछ खास सिखा देती है ,
चाहे हलकी हो या गहरी ॥
बहुत खूब, आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, बधाई।
Comment by वीनस केसरी on April 20, 2015 at 4:02am

जय हो ...
आजकल मेरी लेखनी भी सुस्त हो रही है
इलाज़ मिल गया .. कल सुबह ही मिलता हूँ उस्ताद साहिब से ..

कृपया ध्यान दे...

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