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“ बेटा!! अभी दो महीने पहले ही तेरी इकलौती जवान बहन का तलाक हुआ है. जैसे तैसे आस-पड़ोस वालो का मुंह बंद हुआ और तू गैर समाज की लड़की से चोरी छुपे शादी कर घर ले आया. तुझे अपने माता-पिता के मान-सम्मान का जरा भी ख्याल नहीं रहा..”

“ माँ! मैं पिछले चार-पांच साल से इस लड़की को प्यार करता हूँ, अब यह मेरे बच्चे की माँ बनने वाली है. अगर शादी नहीं करता तो बेवफ़ा कहलाता..”

      जितेन्द्र पस्टारिया

  (मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by Shyam Mathpal on April 2, 2015 at 7:56pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी,,

सामयिक चिंतन. हार्दिक बधाई.


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 4:41pm

बहुत सुन्दर विषय चुना है आपने , बढिया कथा लगी । आपको हार्दिक बधाइयाँ । वैसे आ. कृष्णा भाई जी की बात सही लग रही है , देख लीजियेगा ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 2, 2015 at 1:14pm

“ माँ! मैं पिछले चार-पांच साल से इस लड़की को प्यार करता हूँ, अब यह मेरे बच्चे की माँ बनने वाली है. अगर शादी नहीं करता तो बेवफ़ा कहलाता..”

इन पंक्तियों को और अच्छे से कहे जाने की गुंजाइश रह गई है..जैसे की  अगर मै इसे छोड़ देता तो इसके माँ-बाप कहीं मुह दिखने के काबिल नही रह जाते!....हार्दिक बधाईयां आदरणीय!!

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2015 at 11:49am
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें

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