For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-57 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन( चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन 

हालिया समाप्त मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| इस बार मश्के सुखन के लिए मिसरा-ए-तरह उस्ताद दाग देहलवी की ग़ज़ल से लिया गया था "मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया"| आप सबने यह ग़ज़ल पूरी ज़रूर पढ़ी होगी, इस ग़ज़ल कि खासियत ही इसका रदीफ़ "तो गया' है| उस्ताद दाग़ ने किस खूबसूरती के साथ इस रदीफ़ को इस्तेमाल किया है यह गौरतलब है| मुशायरे में प्रस्तुत अधिकाँश गजलों में इसी बात कि कमी रह गई कि वे रदीफ़ का सही निर्वहन नहीं कर पाई., कुछेक शेर जो इस रदीफ़ को निभा ले गए वो बेहतरीन हो गए| बहरहाल कहन का स्तर अनुभव और लगातार मश्क से ही सुधारा  जा सकता है, अच्छी ग़ज़लें पढ़ें और अच्छे शेर कहते रहें इसके लिए हार्दिक शुभकामनायें|

मिसरों में दो रंग भरे गए हैं, लाल अर्थात बहर से खारिज मिसरे और नीले अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आप का ईमान तो गया

दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें रही एहसान तो गया

अफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो जिल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया, जान तो गया

देखा है बुतकदे में जो ऐ शेख कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बेआरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया

क्या आई राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में
वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गया

गो नामाबर से कुछ न हुआ पर हज़ार शुक्र
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

बज़्म-ए-उदू में सूरत-ए-परवाना मेरा दिल
गो रश्क़ से जला तेरे क़ुर्बान तो गया

होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया

*******************************************************************************************************************

मिथिलेश वामनकर

माज़ी की याद में कोई कुर्बान तो गया
थे दिन हसीन प्यार के वो मान तो गया

सैलाब जलजले का असर देख आदमी
कुदरत को छेड़ने की सजा जान तो गया

छोटा सा एक दीप गया आँधियों के घर
लो रौशनी का आख़िरी इमकान तो गया

दीवार दर हमारे सभी आज छीन कर
बतला रहे है आपका दालान तो गया

अंदाजे-ज़िन्दगी किया तक्सीम उम्र भर
दुनिया से जब गया वही हैरान तो गया

जब से गया है यार मेरा छोड़ के मुझे
मेरे सुकून चैन का सामान तो गया

तुम शायरी के साथ में चलते तो हो मगर
इस ज़िन्दगी की दौड़ में दीवान तो गया

बरसों के बाद यार से मिल के सुकूं यही
“मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया"

***************************************************************************************************************

Samar kabeer

अब ये ज़माना मेरा हुनर जान तो गया
कुछ देर से सही मुझे पहचान तो गया

रखना पड़ेगी जान हथेली पे दोस्तों 
दुश्मन से जोड़ तोड़ का इम्कान तो गया

हम यूँ ही बुज़दिलों की तरह सोचते रहे
फिर ये समझ लो हाथ से मैदान तो गया

मलता है किस लिये कफ़-ए-अफ़सोस चारा गर
तू मेरी बे कली का सबब जान तो गया

मिल बैठने की अब कोई सूरत नहीं रही
जो अपने दरमियान था मैलान तो गया

जब असलियत खुलेगी तो पछताएगा बहुत
सुनकर वो मेरी बात बुरा मान तो गया

ऐसी हवा चली थी कि मेरे वतन के लोग
दहशत ज़दा हैं आज भी तूफ़ान तो गया

जब रूह मेरे जिस्म से परवाज़ कर गई
ख़ाली मकान रह गया महमान तो गया

उम्मीद तो नहीं थी मगर फिर भी दोस्तों 
"मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया"

तारीफ़ करना आ गया तुझ को भी ऐ "समर"
सद शुक्र आज तेरा अभिमान तो गया

*****************************************************************************************************************

दिनेश कुमार

दौलत दिलों में आ बसी ईमान तो गया
इनसानियत भी कह रही इन्सान तो गया

नेकी को अब जहाँ में कोई पूछता नहीं

मतलब ही ज़ह्न में रहा अहसान तो गया

मुश्किल समय में दोस्त भी बेगाने बन गए
चलिए यूँ ही सही, मैं उन्हें जान तो गया

बाँहों में जिसकी खेल के भाई जवाँ हुए
घर जब बँटा वो प्यार का दालान तो गया

शायद गले भी अब मिले, वो दोस्त था कभी
"मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया"

तैय्यारियाँ हयात की मुँह ताकती रहीं
आयी क़ज़ा , वो जिस्म का मेहमान तो गया

तस्दीक़ नाख़ुदा जो करे, तब करो यकीन
बेशक सभी हों कह रहे तूफ़ान तो गया

महफ़िल में अपनी आज वो मुझको बुलाएगें
ये सोच कर मेरा दिल-ए-नादान तो गया

दिल जिन पे हो फ़िदा वो ग़ज़लगो नहीं रहे
अहमद फ़राज़ क्या गए इल्हान तो गया

*****************************************************************************************************************

गिरिराज भंडारी

फ़ित्रत ख़ुदाया तेरी मैं पहचान तो गया
अब आँधियों को भेज दे , तूफ़ान तो गया

मात्रायें खो गईं मेरी , ये जान तो गया
मिसरों की मौत हो गई ये मान तो गया

अब हर्फ़ ढूँढने का कोई फाइदा नहीं
आँखों की भाषा मैं तेरी सब जान तो गया

बूढ़ा दरख़्त टूट के धरती पे क़्या गिरा
दाना सभी कहे हैं कि , दरबान तो गया

माना कि मर गये हमीं प्यासे, मगर सुनो
गर्वीले सागरों का वो अभिमान तो गया

हाँ, जान बच गई है, मगर जी के क्या करूँ
जीने का आसरा, मेरा अरमान तो गया

जब तक किसी के होने का अहसास है जवाँ
दिल कैसे मान के चले, मह्मान तो गया

क्यों आदमी में आदमी आता नहीं नज़र
दावा है जब, छिपा हुआ शैतान तो गया

अब तो चला चली का ये लम्हा है मान लो
कल कारवाँ के साथ में सामान तो गया

मुर्दों की तर्ह ज़िस्म लिये घूमता हूँ मैं
जब से कहा है आपने , सम्मान तो गया

इतने भी ख़त्म अपने मरासिम नहीं हुये
‘मुझको वो मेरे नामसे पहचान तो गया ‘

***************************************************************************************************************

शिज्जु "शकूर"

ताउम्र दौड़ता तू पसे शान तो गया 
दौलत मिली मगर तेरा ईमान तो गया

कुछ रोज़ की तड़प थी फ़क़त ऐ मेरे हबीब
इक तज़्रिबा हुआ कि तुझे जान तो गया

तेरे अहम की जीत हुई पर ये देख ले
पहलू से उठ के तेरे वो इंसान तो गया

बेचैन क्यों न हो दिले ख़ानाख़राब यूँ 
दहलीज से मेरी वो निगहबान तो गया

जो वास्ता ग़ज़ल का दिया आख़िरश उसे
तडपा मगर कहा वो मेरा मान तो गया

जब जेह्न में मेरे हुई दाखिल तू ऐ ग़ज़ल
बस जान रह गयी मेरी औसान तो गया

 

इतनी नवाज़िशें ही बहुत हैं मेरे लिये
“मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया”

*******************************************************************************************************************

rajesh kumari

जाँ से बना के ताज वो इंसान तो गया
हाथों के उस हुनर को जहाँ मान तो गया

पहरे लगा दो खींच लो तलवार तुम भले
माशूक का खुतूत में फरमान तो गया

देखा जो बेनिकाब हसीना का वो फुंसूं
वल्लाह इक शरीफ़ का ईमान तो गया

अब अम्न है सुकून है कैसे यकीन हो
उन सरहदों पे जंग का सामान तो गया

आदाब वो करे न करे कुछ नहीं गिला
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

*****************************************************************************************************************

Nilesh Shevgaonkar

अच्छा हुआ कि मैं भी उसे जान तो गया 
दिल से चलो ये इश्क़ का अरमान तो गया.

पड़ ही गई जो खेत पे उनकी बुरी नज़र 
अब फ़िक्र घर की कीजिए खलिहान तो गया

जब से चबूतरा है बना देव आ गए 
बच्चो के खेलने का ये मैदान तो गया.

कश्ती के टूटने का करे कौन अब मलाल 
घर बच गया, किनारे से तूफ़ान तो गया.

जाने कहाँ क़याम करे रूह अब मेरी,
ये था पड़ाव आख़िरी, शमशान तो गया.

हर धर्म के दलाल मचाए हुए हैं लूट,
रुसवा हुआ जहान से, भगवान तो गया.

दो चार पाँच कम थे वो बच्चे जनेगी दस 
नारी मशीन हो गयी सम्मान तो गया. 

जुगनू सही मगर मैं लड़ा काली रात से 
सूरज का इस बहाने सही ध्यान तो गया. 

इक चाँद रूबरू है ये बाहें हैं बे-क़रार 
इक चाँद आसमाँ में है रमज़ान तो गया. 

मकते कहे थे चंद तख़ल्लुस के साथ ‘नूर’ 
मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया.

*****************************************************************************************************************

Nidhi Agrawal

औरत बना दिया फिर अनजान तो गया
औलाद गोद देकर एहसान तो गया

दोस्ती नहीं मुहब्बत का कोई नाम अब
बेनाम का तआलुक बदनाम तो गया

दीवार से नहीं मिट पायी लकीर क्यों
ताबूत में छिपा शव शमशान तो गया

क्या मानेगी अदालत दावा गुनाह का
डोली बिदाई का अब अरमान तो गया

मैंने छिपा लिया उसका नाम अजनबी
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

*******************************************************************************************************************

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

आँखों से दूर वस्ल का मैदान तो गया
थे आशना हुजूर कभी मान तो गया

देते सभी विसार खुदा शुक्र है अभी

“मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया”

माना कि रंच उम्र बड़ी थी गरीब की
जाने से किन्तु एक मेहरबान तो गया

अब राहतों तले कहो कैसे भला जियें
इस बाढ में मिरा सभी सामान तो गया

हाँ आज आ गयी मेरे घर आफते बड़ी
परवरदिगार नील गगन तान तो गया

दो चार कौर सिक्के जो हमने चबा लिए
कहते सभी हमे यही ईमान तो गया

भौंरा चला गया है कहाँ छोड़ के चमन
गुल का किया धरा कि वो अहसान तो गया

की कोशिशे बहुत कि अभी रोक लूं उसे
पर काट के कफस भी वो महमान तो गया

मैं चंद ही कदम तो चला साथ था तिरे

‘गोपाल’ बावफा अभी तू जान तो गया

*****************************************************************************************************************

Ashok Kumar Raktale

कहने से मेरे झूठ ही वह मान तो गया
अनजाने आया क्रोध का तूफ़ान तो गया

चहरे का रंग रूप उसे याद न सही
“मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया”

जख्मों पे मेरे आज नमक डाल कर भले

खातिर हमारी शख्स वो कुर्बान तो गया

दौलत मिली तमाम हमें शान भी मिली
जज्बात जोश बोल के इंसान तो गया

धोखा न कोई घात मगर तोल मोल से 
बेवज्ह पूछताछ से ईमान तो गया.

**************************************************************************************************************

सूबे सिंह सुजान

मैं देर से सहीह मगर जान तो गया
अब उनसे प्यार करने का अरमान तो गया

उम्मीद तोड़कर मुझे मासूम कर गये
आखिर में बेवफा तुझे पहचान तो गया

ठुकरा दिया हमारी महब्बत को आपने
शर्मिन्दा और कर दिया अहसान तो गया

इंसानियत लड़ी तो नतीजा यही रहा
शैतान रह गया यहाँ ,इनसान तो गया

ऊँचे महल बनाये मगर हाथ खाली हैं
इनसान खाक -खाक है ईमान तो गया

गालिब असर तुम्हारा बहुत तो हुआ नहीं
पढ़ -पढ़ के आपको मैं ,गजल जान तो गया

उम्मीद उनसे इतनी नहीं थी मगर "सुजान "
"मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया "

************************************************************************************************************

मोहन बेगोवाल

हर दौर में गरीब का सम्मान तो गया 
दौलत के दौर खुद लगा इंसान तो गया 


धीरे से अलविदा मुझे दीवारें कह गई,
मैं रूह छोड़ साथ ले सामान तो गया 

उस रोज़ बाप की नजर जब धोखा दे गई 
"मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया" 


जब मौका ही न था मिले अश’आर क्या कहे 
तब कब हुई ग़ज़ल, वो फिर दीवान तो गया 


हर कोई आया इस जहाँ फिर कब यहाँ रहा 
जो था हमें लिया यहाँ एहसान तो गया 

जो कल रहा हमारा क्यूँ वो आज भी रहे 
ये जिन्दगी रहे ,यही इम्कान तो गया 

*******************************************************************************************************************

भुवन निस्तेज

जाता जहाँ मैं साथ बयाबान तो गया
मैं इस बहाने ज़िन्दगी को जान तो गया

दौलत भी कमाई तू ने शोहरत भी कमाई
था जिस पे तुझे नाज़ वो ईमान तो गया

यूँ भी हिसाब रखके नहीं बात बनेगी
गिनने लगो तो आपका एहसान तो गया

ये भाग दौड़ और अना की ये आग सी
अब हो चुका मशीन वो इन्सान तो गया

अब खुद ही चल के मुझको है पानी ये मंजिले
अब मुझसे रूठ के वो निगहबान तो गया

दुनियावी दौड़ में चलो शामिल तो हो गए
गठरी में क्या रखे हो ये ? सामान तो गया

ये आशियां, बहार-ओ-चमन पे है क्या असर
तिनके बटोरता हूँ मैं तूफान तो गया

जुगनू, चिराग और सितारे छुपे कहीं
नेपथ्य में ये शोर था- मैदान तो गया

दस्तक तुम्हारी कौन सुनेगा तुम्ही कहो
वीरान खंडहर है ये, ... मेहमान तो गया

यूँ ज़िन्दगी से रूबरू वो हो गया चलो
आजाद हसरतों से है अरमान तो गया

तूफान ने चेहरे तो मिटा ही दिए मगर
'मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया'

******************************************************************************************************************

vandana

बहुरंग हर विचार है मन मान तो गया
पर बुलबुले की जात भी पहचान तो गया

जाने कहाँ ले जाए तरक्की का यह सफ़र
निन्यानवे के फेर में इंसान तो गया

कालीन अब उठा दो कभी काम लेंगे फिर
जिसके लिए बिछा था वो मेहमान तो गया

यूँ तो मेरा वजूद था बरसाती घास पर
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

हँसता रहा है चाँद मेरी पीर देखकर
वो भी तमाशबीन है खुद मान तो गया

जब भरभरा के गिर पड़ा बरसों पुराना पेड़
मुझको लगा कि जैसे निगहबान तो गया

ये निस्बतें ही थीं न कि रूठा था मुझसे जो
दिल से जरा पुकारा सहज मान तो गया

********************************************************************************************************************

नादिर ख़ान

इतना बुरा नहीं हूँ मै वो जान तो गया
मजबूरियों के दर्द को पहचान तो गया

मुमकिन है मेरा दर्द वो महसूस अब करे
गलती को अपनी देर से ही मान तो गया

अपनी जुबां से कुछ भी उन्होने कहा नहीं
मै भी पिता हूँ दर्द को पहचान तो गया

सौदा जो कर रहा है तू अपने उसूल से
मुझको है फिक्र तेरी कि ईमान तो गया

अपना समझ के मैंने निभाया था आपसे 
क्यों हो मुझे मलाल के एहसान तो गया

सच बोलता था वो तो बहुत ज़ोर ज़ोर से
मालूम था सभी को ये नादान तो गया

हम मुद्दतों के बाद मिले आज राह में
मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया

************************************************************************************************************

umesh katara

गमगीन करके आज वो महमान तो गया
जो बस गया दिलों में वो अनजान तो गया

धोखा दिया फरेब किया कत्ल कर मुझे
है शुक्र ये बहुत के वो अब मान तो गया

है दर्द आसुओं से भरी जिन्दगी मेरी
क्या कुछ दिया नसीब ने ये जान तो गया

है आखिरी ये रात मेरी तेरे शहर में
सुनले मेरी ऐ जान के सामान तो गया

पैसा ये रिश्वतों से कमाया बहुत मगर
खातिर जरा सी बात के ईमान तो गया

बर्षों के बाद आज भी हूँ याद में उसे
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

******************************************************************************************************************

दिगंबर नासवा

इक उम्र लग गयी है मगर मान तो गया
मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया

अब जो भी फैसला हो वो मंजूर है मुझे
मुंसिफ़ मेरे बयान का सच जान तो गया

दीपक हूँ मैं जो बुझ न सकूंगा हवाओं से 
कोशिश तमाम कर के ये तूफ़ान तो गया

टूटे हुए किवाड़ हैं सब खिड़कियाँ खुली
बिटिया के सब दहेज़ का सामान तो गया

बिल्डर की पड़ गई है नज़र रब भली करे
बच्चों के खेलने का ये मैदान तो गया

कर के हलाल दो ही दिनों में मेरा बजट
अच्छा हुआ जो घर से ये मेहमान तो गया

******************************************************************************************************************

khursheed khairadi

बेटी का ब्याह होगा ये अरमान तो गया
रोता रहा किसान अजी धान तो गया

जिन पर हुई कृपा वो समझदार हो गये
रघुनाथ की शरण में न नादान तो गया

हैरान मौलवी भी है इस बात पर बहुत
क्यों गाँव रोजादार है रमजान तो गया

माना कि ज़हन में थे मफ़ादात आपके
दीवार के फ़साद में दालान तो गया

कोई मुरीद होता तो तकरार करता वो
मेरा हरीफ़ बात मेरी मान तो गया

नीलाम कर ज़मीर को ज़रदार हो गये
कोठी है गाड़ियाँ भी हैं ईमान तो गया

‘खुरशीद’ नीमजान अँधेरे से पूछ लो
‘मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया’

***************************************************************************************************************

बृजेश नीरज

अब खेल इस जहाँ के सभी जान तो गया
पर पेट की ही आग में ईमान तो गया

ठहरी है ज़िंदगी में अमावस की रात यूँ
इस स्याहपन में भोर का अरमान तो गया

बदली हुई सी इस मेरी सूरत के बाद भी
‘मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया’

इक चाँद की फिराक में फिरता था वो चकोर
इस आशिकी के फेर में नादान तो गया

परछाइयों के साथ पे इतरा रहा था मैं
सूरज ढला तो साथ का यह भान तो गया

****************************************************************************************************************

मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें

Views: 2933

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय राणा सर, आपके द्वारा साझा किये गए मार्गदर्शन अनुसार चार मिसरों में निम्नानुसार संशोधन किया है यदि उचित हो यथास्थान प्रतिस्थापित करने की कृपा करें . अभी भी त्रुटी हो तो मार्गदर्शन प्रदान करने की कृपा करें,  पुनः प्रयास करता हूँ -

सैलाब जलजले तो यही सीख दे रहें
कुदरत से छेड़छाड़ की इंसान तो गया

छोटा सा एक दीप चला आँधियों के घर 
सरगोशियाँ हवा में कि नादान तो गया

सबको बता रहा था जो अंदाज़े-ज़िन्दगी
खुद ही लहूलुहान सा हैरान तो गया

संशोधित अशआर-

सैलाब जलजले का असर देख आदमी

कुदरत को छेड़ने की सजा जान तो गया

 

छोटा सा एक दीप गया आँधियों के घर

लो रौशनी का आख़िरी इमकान तो गया

अंदाजे-ज़िन्दगी किया तक्सीम उम्र भर

दुनिया से जब गया वही हैरान तो गया 

आपने पुछल्ले के एक अशआर में जो मार्गदर्शन साझा किया था उसके हवाले से निम्नानुसार संशोधन का प्रयास किया है-

लफ्जों के फेर में बड़ा गच्चा मिला हमें

बह्रों के साथ साथ ही अरकान तो गया 

संशोधित शेर -

लफ्जों के फेर में बड़ा गच्चा मिला हमें

बह्रों के साथ लज्जत-ए-अरकान तो गया 

सादर 

वांछित संशोधन कर दिया है|

आदरणीय राणा सर, हार्दिक आभार !

आदरणीय मंच संचालक जी से अनुरोध है कि, दूसरे और छठवें शेर को निम्न लिखित अशआर  से बदलने का कष्ट करें ।

मुमकिन है मेरा दर्द वो महसूस अब करे
गलती को अपनी देर से ही मान तो गया

 

सच बोलता था वो तो बहुत ज़ोर ज़ोर से

मालूम था सभी को ये नादान तो गया

धन्यवाद 

आदरणीय नादिर खान जी , वांछित संशोधन कर दिया है |

आदरणीय राणा सर व्यस्तताओं के बावजूद आपके द्वारा निरंतर इस मंच पर सीखने वालों को समय देना स्तुत्य है | सर कृपया मेरी ग़ज़ल के मतले व आखिरी शेर में कुछ संशोधन कर दीजिये -


बहुरंग हर विचार है मन मान तो गया
पर  बुलबुले की जात भी  पहचान तो गया

तथा 

ये निस्बतें ही थीं न कि रूठा था मुझसे जो
दिल से जरा पुकारा सहज मान तो गया

और साथ ही आदरणीय अंक 56 में भी मैंने संशोधन हेतु निवेदन किया था कृपया देखिएगा | सादर |

आदरणीया वन्दना जी, वांछित संशोधन कर दिया है|

वाह क्या कहने सभी ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक हैं ...
इंकलाबी मुशायरा हुआ है /......

आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी सादर, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक-५७  की गजलों का  चिन्हित मिसरों के साथ संकलन प्रस्तुत करने के लिए बहुत आभार व् बधाई.

कृपया मेरी प्रस्तुत गजल के चिन्हित मिसरे  चहरे का रंग रूप उसे याद न सही

को "चहरे का रंग रूप उसे याद हो न हो" से बदली कर दें. सादर.

आदरणीय, नमस्कार
बहित बहित सादर प्रणाम सभी को यह तरही ग़ज़लों का क्रम यूँ ही चलता रहे , मेरी गडजडल में कुछ जल्दबाजियाँ रहीं हैं उनमें सुधार करूँगा , हैँ मासूम... लिखा गया है ...यहाँ गलत टाइप है मायूस लिखना था

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service