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मुझसे नकाब क्यों ? : हरि प्रकाश दुबे

दिल में रहने वाले मुझसे नकाब क्यों ?

इतना मुझे बता दे मुझसे हिज़ाब क्यों?

 

साकीं यह सुना तू है मदिरा का सागर

लाखों को तूने तारा मुझको जवाब क्यों?

 

मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना

गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?

 

तूने जिसको अपनाया उसको खुदा बनाया

उनका नसीब है अच्छा मेरा खराब क्यों?

 

छोटी सी ये हस्ती में है कुल कमाल तेरा

बेहद का है तू दरीया फिर मैं हुबाब क्यों?

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 3, 2015 at 5:36pm

आदरणीय मिथिलेश भाई ,बहुत बहुत आभार आपका आपने अपना अमूल्य समय इस रचना को दिया , अब धीरे -धीरे  समझ आ रहा है ! सादर !


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Comment by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 7:39am

आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी, आपने जो मुशायरे की बह्र पर ये ग़ज़ल कही है दरअसल बह्र के अनुसार कुछ यूं होगी-

1212 - 1122 - 1212 -  22

जो दिल में आप के हम है नकाब क्यों बोलो

हमें बता भी दो ऐसा हिजाब क्यों बोलो ( जहाँ अंडरलाइन है मात्रा गिराई गई है यानी गुरु-2 को लघु-1 किया गया है )

 

मेरे हिसाब से आपकी रचना के मिसरों को इस बह्र में कहने से ग़ज़ल अधिक लयात्मक होगी -

221-2121-1221-212

ऐ दिल में रहने वाले मुझी से नकाब क्यों ?

इतना मुझे बता दे मुझी से हिज़ाब क्यों? ( जहाँ अंडरलाइन है मात्रा गिराई गई है यानी गुरु-2 को लघु-1 किया गया है )

 

 

आदरणीय शिज्जु भाई जो ने जो बह्र सुझाई है उसमे इस ग़ज़ल को बिठा सकते है बस थोड़ा शब्द संयोजन कर लयात्मकता भर ले आये.

 22- 22 – 22 - 22 - 22 – 2

 

दिल में रहने वाले मुझसे नकाब क्यों ?

इतना मुझे बता दे मुझसे हिज़ाब क्यों?

 

सादर

 

 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 10:35pm

आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी रचना पर उपस्तिथि और उत्साहवर्धक टिपण्णी के लिए आपका हार्दिक आभार , सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 10:26pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया साहब , आपकी रचना पर उपस्तिथि और उत्साहवर्धक टिपण्णी के लिए आपका हार्दिक आभार , सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 10:23pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत बहुत धन्यवाद ,आपकी प्रतिक्रिया ने और आपके मार्गदर्शन ने उत्साहित किया, आभार आपका ! बह्र को लेकर मैंने  अपनी बात पूरी इमानदारी से  रख ही दी है, सादर ! 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 10:19pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर आप जैसे विद्वान् लोगों के सामने ये एक तुच्छ प्रयास है ,आपकी सह्रय्द्यता आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! अभी सर मुझे आप जैसे विद्वानों से ही सीखना है ,बह्र का मुझे वास्तव में तकनीकी ज्ञान नहीं है ,बस एक लहर में लिख दिया , आगे सचेत रहूँगा !  सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 10:12pm

आदरणीय खुरशीद भाईसाहब आपकी उत्साहवर्धक टिपण्णी से मन प्रसन्न हो गया , आपका हार्दिक आभार , सादर !  

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 10:10pm

आदरणीय अरुण कुमार निगम जी आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 10:06pm

आदरणीय उमेश कटारा जी , ग़ज़ल पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 10:04pm

आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर सर ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद  ! सादर 

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